रविवार, 31 जुलाई 2011

"रिश्तों" में भी "गुठली" होती है शायद....

          बड़े मन से आम खा रहा था | बहुत ही मीठा आम था | स्वाद इतना अच्छा था कि, उसे छोड़ने का मन ही नहीं कर रहा था , फिर गुठली पे लगे बचे खुचे रस को भी उदरस्थ कर लिया | बची गुठली बेमतलब की थी | गलती से भी उसे काट कर खा लूँ, तो मुंह का स्वाद  कसैला हो जाता है | पर गुठली ही पूरे आम को बांधे रखती है ,स्वयं में बे-स्वाद होते हुए भी दूसरों को मधुर स्वाद का पान कराती है | फल कोई भी हो ,सभी में गुठली अवश्य होती है ,जो चारों और से मधुर रस से परिपूर्ण होती है | परन्तु गुठली से छेड़छाड़ करने से कुछ भी हासिल नहीं होता ,सिवाय कसैलेपन के |
           कुछ इसी तरह से मानवीय रिश्ते भी होते हैं ,शायद | रिश्ते चाहे पति-पत्नी के हों,माँ-बाप और उनके बच्चों के बीच के हो ,भाई भाई के हो ,दोस्तों के मध्य हो ,या किन्ही भी दो लोगों के बीच के हो ,इन रिश्तों के पनपने के लिए शुरुआत में एक बीज ही होता है ,धीरे धीरे रिश्ते प्रगाढ़ होते जाते हैं और स्वभाविक तौर पर उनके मध्य प्रेम और पारस्परिक सम्मान का रस बढ़ने लगता है | परन्तु साथ ही साथ रिश्ते की नीव ,वह बीज बड़ा होते होते एक गुठली का आकार ले चुका होता है | किसी भी रिश्ते में प्रेम का रस तभी तक प्रवाहित होता रहता है , जब तक रिश्ते के दोनों सिरे के लोग संबंधों के रस को बना रहने देते हैं और उसे एकदम निचोड़ कर 'गुठली' से छेड़छाड़ नहीं प्रारम्भ कर देते हैं | गुठली से छेडछाड की नहीं कि, मन तो फिर कसैला होना ही है |
            समझने वाली बात केवल इतनी सी है कि जिस "कारण" से कोई रिश्ता बनता है ,वही "कारण" तो बड़ा होकर "गुठली" का आकार लेता है ,उससे छेड़छाड़ का सीधा मतलब "गुठली" पर आघात होता है  और फिर मन और रिश्ते दोनों का खट्टा होना तय हो जाता है |
             "बस इतनी सी बात है कि "रिश्ते" बने क्यों हैं ,उस पर आघात ना करते हुए बस उन पर पनपते रस का आनंद लेते रहें क्योंकि "गुठली" को चोट पहुंचाने से रस कभी नहीं निकलने वाला |"        

गुरुवार, 21 जुलाई 2011

"गैस के गुब्बारे"

                एक छोटा बच्चा गैस के गुब्बारे बेचने वाले से गुब्बारा खरीदने गया ,तो उसने गुब्बारे वाले से पूछा ,भैया तुम्हारे पास तो बहुत सारे रंग बिरंगे ,छोट बड़े गुब्बारे है | क्या जो गुब्बारा बहुत सुन्दर है ,या जो बहुत बड़ा है ,आकाश में सबसे ऊपर वही गुब्बारा जाएगा | गुब्बारे वाला हंसने लगा और बोला, नहीं बेटा ,गुब्बारे के रंग और आकार से यह नहीं तय होता कि आकाश में कौन  सा गुब्बारा सबसे ऊपर जाएगा | गुब्बारे में गैस  होती है ,जिसके कारण गुब्बारा ऊपर जाता है | जिसमे जितनी ज्यादा गैस ,और वह भी देर तक रहेगी ,वह गुब्बारा ज्यादा ऊपर तक आकाश में पहुँच जाएगा | 
                   ऐसा ही कुछ मनुष्य के जीवन में भी होता है | मनुष्य के रंग, रूप ,आकार ,प्रकार ,जाति, धर्म से यह कभी निश्चित अथवा सिद्ध नहीं होता कि वह व्यक्ति जीवन में कितनी उंचाई तक तरक्की करेगा | उसके अन्दर बस ऊपर उठने के लिए गैस रुपी प्रबल इच्छा शक्ति और दृढ़ संकल्प होना आवश्यक है |
                  विद्यालयों में शिक्षक और घर में माँ-बाप का बस इतना सा दायित्व है कि बच्चों के भीतर बस उसी  "गैस" का आवश्यक दबाव बनाए रखे ,फिर तो उसे आसमान में परिंदों को चुनौती देनी ही है |    

मंगलवार, 19 जुलाई 2011

"निवेदिता" आज तुम्हारे ’जन्म दिन’ पे क्या लिखूँ......


      
           आज तुम्हारा जन्मदिन है | क्या तोहफा दूँ ? तोहफे को कोई क्या तोहफा देगा | तुम तो खुद ही मेरे लिए तोहफा बन मेरी जिंदगी में आ गईं और 'better half' से कितनी जल्दी  'butter half' बन गईं, पता ही नहीं चला | ईश्वर ,तुम्हे सदा हँसता हंसाता  रखे ,क्योंकि तुम्हे पता है, मैंने कई बार यह कहा है कि, हँसते हुए तुम बहुत  खूबसूरत लगती हो | बस हमेशा खिलखिलाती रहो | मेरे साथ आज तुम्हारा २३ वां जन्मदिन है | 
            जन्मदिन की शाम को बच्चे बड़ी उत्सुकता से देखते हैं उन्हें क्या तोहफा मिला ,कौन आया कौन गया | उसी तरह आज मै तुम्हारे जन्म दिन पर सोच रहा हूँ कि इतने बीते दिनों में, मै तुम्हे कितनी खुशियाँ दे पाया और तुम्हारी ज़िन्दगी में कितने लोगों को जोड़ पाया और कितने ना जाने किन कारणों से छूटते गए | जन्म दिन मनाने की परंपरा का शायद यही कारण होगा कि उस दिन उस व्यक्ति के जीवन को महत्वपूर्ण बना कर उसके होने और उसके ना होने का अर्थ समझा जाए | जीवन को जीने के प्रति या  दुनियादारी के सम्बन्ध में हम तुम एक राय बहुत कम ही रहे, पर पल भर के लिए भी तुम आँखों से ओझल होती हो तो जीना दुश्वार हो जाता है ,हम सभी का | बच्चे बड़े हो रहे थे ,उन के साथ हम भी बड़े हो रहे थे ,अब वे दोनों हॉस्टल (I I T-K) में चले गए,हम फिर वापस अपने शुरूआती दिनों में आ गए | इसे यूँ समझो कि बच्चे गर्भ में दो बार आते हैं ,पहली बार माँ के गर्भ में जब बढ़ते हैं तब माँ का भी पेट बच्चे के बढ़ने के साथ बड़ा होता जाता है ,बच्चे के जन्म के बाद माँ का पेट पुनः वापस छोटा हो जाता है  | उसी तरह बच्चा फिर जन्म के बाद परिवार के गर्भ में आता है और विकसित होता रहता है ,जिसके विकास के साथ माँ-बाप भी अपने को बड़ा होता महसूस करते  रहते हैं | फिर जब बच्चा परिवार से बाहर चला जाता है ,पुनः माँ-बाप वापस शुरूआती ज़िन्दगी के दौर में आ जाते हैं | शायद यही कारण है कि मै अभी भी कभी कभी बचपना कर जाता हूँ और तुम कह उठती हो "अब तो बड़े बन जाइए "|
            मेरी कमी शायद यह रही कि, मै बहुत vocal नहीं रहा या यह  कहो कि मुझे यह सब आपस में flirt  करना जैसा लगता था ,पर इसका खामियाजा यह रहा कि मेरे दिल की बात हमेशा मेरे दिल में ही रह गई और तुम इसे कमी मान अपने में सिमटी रहीं |
              कभी कभी लगता है, जीवन एक उस पज़ल जैसा  है ,जिसमें अंग्रेजी के अक्षर या अंक बेतरतीब से होते हैं ,जो एक दूसरे के ऊपर खिसका खिसका कर चलाये जाते है और उन्हें सही क्रम में लगाना होता है | उसमे उन अक्षरों या अंकों को चलाने के लिए एक खाना खाली होता है ,अगर वह एक खाली खाना ना हो तो उस पज़ल को हल करना नामुमकिन होता | उसी तरह ज़िन्दगी में "कमी" का एक खाना खाली होता है, उसी space को अन्य चीज़ों यथा 'रिश्ते','नाते', 'धन दौलत' इत्यादि से लोग  भरते रहते हैं ,फिर भी "कमी" वाले space को बनाए रखना होता है ,तभी जीवन की पज़ल को हल कर सकते हैं  | शायद इसी लिए सब कुछ होते हुए भी तुम कुछ रिक्तता महसूस करती हो ,पर मै नहीं करता, क्योंकि वह रिक्तता अत्यंत आवश्यक है ,जीवन को चलाने के लिए |  
                 तुम  सदा रिक्तता को पूर्णता से भरती रहो ,बस ईश्वर से यही प्रार्थना है | "जन्म दिन की बहुत बहुत शुभकामनाये |"

                                                                

शनिवार, 16 जुलाई 2011

"माँ"

माँ !
एक ओस की बूंद, 
जिसमे चमक सूर्य सी, 
शीतलता अमृत सी, 
तरल सी फिर भी समग्र, 
माँ !
घने पेड़ की छाया सी, 
बयार एक मंद मंद सी, 
मीठी नदी सी, 
माँ !
पास हो, ना हो, 
बस हो, चाहे जहाँ भी हो, 
एक ऐसा सहारा सी, 
माँ !
सूखी  रोटी पर गुड़  की  डली  सी,
जिसके होने पे,
लगे सारी दुनिया अपनी सी, 
और ना होने पे,
कोई ना अपना सा, 
माँ !
तुम बस माँ हो, 
माँ !!

रविवार, 10 जुलाई 2011

"बारिश हो तो ऐसी हो ..."

बारिश गर कुछ,

यूँ होती,

कि,

हमारे दरमियां,

सूखे पड़ते रिश्ते,

कुछ तो नम हो जाते ।

गाल पे ढुलके आँसू,

धुल जाते,

शायद,

सूखने से पहले ।

और कुछ धब्बे,

(हाँ,धब्बे ही तो हैं

जो उजले मन को

धूमिल सा कर चले हैं)

धुल जाते,

इस बारिश में,

तो अच्छा होता ।

थोड़ा वो भीगते,

थोड़ा मैं भीगता,

पर,

हो तो जाते,

गीले दोनों सिरे |

फ़िर,

भीगे भीगे,

मन से,

होती बातें,

भीगी भीगी,

जो कर जातीं,

हम दोनों को  तरबतर ।

काश ! ! ! ! !

शनिवार, 9 जुलाई 2011

"पलकोँ में समाई बारिश"



        
बारिश  को खुली आंखोँ  से देखने की एक बार कोशिश की ,
                                बूंदे पलकोँ में उलझ गईं और आँसू बन आँखों में समा गईं शायद,
              तभी शायद ये आँसू कभी सूखते नही,
                                                    और वैसी बारिश भी तो अब नही होती ।
                                                                

गुरुवार, 7 जुलाई 2011

"बरसात, बिजली और सावधानियाँ"

             अखबार में छपी खबर,इन्वर्टर के करेंट से व्यक्ति की मौत , कूलर में चिपका रह गया बच्चा , घर में फ़्रिज़ छूते ही महिला की मॄत्यु । इससे अधिक दुखद और कुछ नही हो सकता कि जिसका आविष्कार मनुष्य के जीवन को सरल और आरामदायक बनाने के लिये किया गया हो ,उसी से मनुष्य के अमूल्य जीवन का अंत हो जाय । बिजली के साथ परेशानी यही है कि वह अत्यंत घातक भी है और दिखाई भी नही पड़ती । इसके प्रयोग में अत्यंत सावधानी बरती जानी चाहिये । कुछ आसान एवं अत्यंत आवश्यक सुझाव निम्नवत है:
                 १. इन्वर्टर का प्लग टॉप निकालने से यह नही समझ लेना चाहिये कि आप को बिजली का स्पर्शाघात नही हो सकता | जिस थ्री पिन के प्लग को आपने निकाल लिया है ,उसी के एक पिन से बिजली प्रवाहित हो रही  होती है,अगर आपको इनवर्टर में कुछ काम करना है ,जैसे बैटरी में पानी डालना या ,तार इत्यादि अच्छे से कसना ,इसके लिए इनवर्टर में एक ऑफ़ स्विच भी होता है ,उसे अवश्य ऑफ़ कर लें ,तभी कुछ काम करें | 
                २. घर में विद्दुत संयोजन देने के लिए विद्दुत विभाग द्वारा केबल के साथ साथ अर्थ वायर का तार भी खींचा जाता है ,जिसे घर के अन्दर सभी उपकरणों की बॉडी से ,अर्थ वायर द्वारा जोड़ दिया जाता है ( यह कार्य टॉप की अर्थ पिन से स्वतः हो जाता है ) | अब दुर्घटना किस प्रकार हो जाती है ,इस पर गौर करना आवश्यक है |यदि विभाग की लाइन में ,बरसात ,हवा,आंधी इत्यादि से तार टूटते हैं और फेज़ का तार टूट कर अर्थ के तार पे गिर जाता है , ( टेक्निकली यदि सुरक्षा के सारे सिस्टम कार्य कर रहे हैं तो विद्युत् प्रवाह बंद हो जाना चाहिए,पर ऐसा होता नहीं है ) तो अर्थ वायर में पूरा करेंट दौड़ने लगेगा और आपके घर के प्रत्येक उपकरण की सतह पर वह करेंट मौजूद होगा ,जैसे ही कोई व्यक्ति उस उपकरण को छूने का प्रयास करेगा ,उसे स्पर्शाघात हो जाएगा | इससे बचने का उपाय है कि आप के घर में एक स्वतन्त्र अर्थिंग की जानी चाहिए ,जिससे इस प्रकार की स्थिति में सारा का सारा करेंट अर्थ हो जाए | इसके लिए आज कल बाज़ार में  "अर्थ लीकेज सर्किट ब्रेकर" भी उपलब्ध हैं ,जो अर्थ वायर में मामूली करेंट भी आने पर सर्किट ब्रेक कर देते हैं |
                ३.कूलर भी प्रायः मौत का कारण बन जाता है , कूलर में पानी भरते समय हर हालत में प्लग टॉप निकाल दें ,स्विच ऑफ़ करने से हो सकता है बिजली ना बंद हुई हो क्योंकि घर की वायरिंग में अक्सर दोष पाया जाता है कि बिजली मिस्त्री ने स्विच फेज़ की  जगह न्यूट्रल वायर में लगा दिया हो ,इसकी भी जांच अवश्य करा लेनी चाहिए |
                 ४.सभी तार और स्विच उपयुक्त रेटिंग के ही होने चाहिए | 
                 ५.कूलर के स्टैंड में कभी भूल से भी अपने पालतू जानवर यथा कुत्ते ,बिल्ली को चेन  ना करें |
                 ६.जहाँ पर मेन सप्लाई  आ रही हो ,वहां उसे बंद करने के लिए एम. सी. बी. अवश्य होनी चाहिए और घर के सभी सदस्यों को उसके प्रयोग के बारे में जानकारी होनी चाहिए |
                 ७. बिजली में हमेशा बस दो ही फाल्ट होते हैं ,पहला लूज़ कनेक्शन और दूसरा ओवरलोडिंग | इसके अतिरिक्त कुछ नहीं होता |
                 ८.बरसात मे आकाश से बिजली गिरने का भय रहता है ,अतः बारिश मे कभी पेड के  नीचे ना खड़े हों | यदि आप कार में हैं तो कार में ही बैठे रहें ,नीचे ना उतरें | यदि बिजली कड़क रही हो तो खुले में छाते का प्रयोग ना करें |
                 ९.जिस जगह पर ट्रांसफार्मर लगे होते है ,अक्सर दुकानदार उसके पास अपनी पटरी वाली दूकान लगा के बैठ जाते हैं | कभी भी उस दूकान पर ना जाये ,क्योंकि कभी फाल्ट की स्थिति में फ्यूज़ उड़ने पर वहां ब्लास्ट हो सकता है और कभी कभी आग भी लग जाती है | अक्सर ट्रांसफार्मर के आस पास लोग कूड़ा घर भी बना देते है जिससे कूड़ा बीनने वाले या जानवर खाने की तलाश में वहां आते हैं और बिजली से चिपक कर मर जाते हैं | 
               सदैव किसी जानकार मिस्त्री से ही घर का काम  कराएँ और यदि आपको जानकारी नहीं है, तब कभी भी स्वयं बिजली का काम करने की कोशिश ना करें | मेरा मकसद आपको भयभीत करने का कतई नहीं है, बस थोड़ा सा सतर्क होने की  आवश्यकता जरूर  है |