रविवार, 25 नवंबर 2018

" एक सुनहरी सुबह बनाम अधखुले नयन ......"


क्षितिज पर टिकी सुनहरी सुबह ये 
और उससे भाप रौशनी की उठते हुये  

जैसे अधखुले नयन हों तेरे 
और पलकों की क्षितिज पर ठहरी निगाहें 

हवाएं चलीं जब कुछ हौले से यूं 
कुछ तो कहा है तुम्हारे लबों ने जैसे 

बाहें फैलाए समेट न लूँ इन फ़िज़ाओं को 
जैसे घुल जाता था मै तेरे आगोश में कभी | 

#मधुर स्मृति 

चित्र: साभार पीयूष , दूनगिरी 


मंगलवार, 11 सितंबर 2018

" चरण स्पर्श ......"


मुझे शिक्षण कार्य को करते हुए लगभग तीस वर्ष हो गए | एक किस्सा अक्सर याद आ जाता है | मेरी कक्षा में तीन विद्यार्थी अत्यंत मेधावी थे | तीनो ही अपने विषयों को भलीभांति पढ़ते एवं समझते थे | प्रदेश स्तर पर उनके द्वारा रैंक प्राप्त करने की संभावनाओं को देखते हुए उन्हें मैंने अपने घर पर अलग से थोड़ा समय देना प्रारम्भ कर दिया | परिणाम अच्छा रहा , उनके द्वारा अच्छी रैंक प्राप्त करने की सम्भावना प्रबल होती गई |

तीनो विद्यार्थी प्रतिदिन मुझे हाथ जोड़कर प्रणाम करते थे | अचानक से एक दिन उनमे से एक विद्यार्थी ने मेरे चरण स्पर्श कर लिए | मुझे थोड़ा आश्चर्य हुआ | धीरे धीरे उस विद्यार्थी की यह प्रतिदिन की आदत हो गई |

अब प्रतिदिन वो एक अकेला विद्यार्थी चरण स्पर्श करता जबकि अन्य दोनों विद्यार्थी हाथ जोड़कर नमस्कार करते थे | चरण स्पर्श करना उसका मुझे कुछ यूँ अच्छा लगने लगा कि अचानक से अन्य दोनों विद्यार्थी मुझे बद्तमीज लगने लगे |

यही  व्यक्ति की आंतरिक कमजोरी होती है |

---एक शिक्षक के मुख से |

शनिवार, 8 सितंबर 2018

" ज़िंदगी का तर्जुमा ....."


Not forever does the bulbul sing

In balmy shades of bowers,
Not forever lasts the spring
Nor ever blossom the flowers.
Not forever reigneth joy,
Sets the sun on days of bliss,
Friendships not forever last,
They know not life,who know not this.

~Khushwant Singh
Train To Pakistan


बुलबुल
रोज़ नही गाती
शजर की नरम छांव मे
वसन्त नही ठहरता
सदा के लिए
फूल खिलने के मौसम
होते है कभी कभी
उल्लास का आलिंगन
यूँ फिर कहाँ
दोस्ती कब ठहरी है
ताउम्र
इतना गर जो नही जानता
फिर वो ज़िन्दगी कहाँ जानता।
( मेरे द्वारा अनूदित )

सोमवार, 13 अगस्त 2018

" खरोंच ....."


वास्ता रोज़ ही होता है,
गुफ़्तगू मगर नही होती।
जुगनू तो मचलते रोज़,
मगर रोशनी नही होती।
मुख्तलिफ अंदाज़ उनके,
मुख्तसर सी ज़िन्दगी अपनी।
दुआओं में तो रखते खूब,
कहर भी वो मेरे नाम करते।
मोहब्बत की खरोंच सारी अब,
जिस्म पे मेरे सरेआम कर दी।

सोमवार, 30 जुलाई 2018

" मिड नाईट इंक ...."


नींद का क्या है जब आएगी तब आएगी,
ख्वाब तो उनके तस्व्वुर का पलकों पे है।
जान का क्या है जब जाएगी तब जाएगी,
खयाल तो एक शाम उनका होने का है।
उसूलों की बात जब होगी तब होगी,
रिवाज़ तो अभी मोहब्बत निभाने का है।
नाम उनकी जुबां पे जब होगा तब होगा,
हिचकी मेरे ख़्याल से ही रुकती होगी।
खुदा का ज़िक्र जब होगा तब होगा,
इबादत में बस मुराद उनकी ही होगी।
गुफ़्तगू उनसे जब हो न जाने कब हो,
अभी सिलसिले दरमियां निगाहों के हैं।
तस्दीक मोहब्बत की ही होगी जब होगी,
लबों पे किस्से अभी तलक गुनाहों के है।

रविवार, 29 जुलाई 2018

" एक मुट्ठी बारिश ......"

'बादल' जब सागर का समर्पण संजोते संजोते थक जाते हैं और हवाएं भी साथ नही देती तो 'बारिश' बन फना हो जाते हैं।
लफ़्ज़ों का समर्पण संजोते संजोते आंखें थक जाती हैं और पिघल कर पैमाना बन जाती हैं।
लम्हों का समर्पण संजोते संजोते काल खंड फना हो जाते हैं।
समर्पित हों जाना सरल है, किसी का समर्पण स्वीकार कर निभाना मुश्किल।

रात और सुबह की गुत्थम गुत्थी में अक्सर रातें हार जाती हैं।
यथार्थ से स्वप्न कब जीत सका है।
कड़ी धूप के आगे बारिश कितनी ठहरती भी भला। चली गई मायूस होकर कहीं।
धूप में मासूमियत नही होती , यह कहाँ पता था बारिश को।

पुरानी खूब पढ़ी हुई किताब के पन्ने अक्सर पलटने पर एक जगह आ कर रुक जाते है, शायद वहाँ अक्सर ही बुकमार्क लगाया गया रहा होगा।
कुछ बारिशें भी ज़िन्दगी में बुकमार्क की तरह होती हैं। पुराने पन्ने पलटने पर आज भी तरबतर कर जाती हैं।

यूँ ही तसव्वुर में एक नज़्म मचलते मचलते कान में गुनगुना गई कुछ। आंखे खोल कर देखा तो सिरहाने एक बारिश पसरी मिली।
पसरी हुई बारिश की गोद मे सिमटने का लुत्फ ही कुछ और होता है।
पर बारिश का होना और होकर गुजर जाना कुछ यूँ होता है जैसे कभी महक उठे कहीं और किसी रूह की चहलकदमी का अंदेसा हो जाये।
वो पसरी हुई बारिश पनाह पा गई है अब आंखों में , जब देखो तब बरस जाती है।

बारिश हल्की हल्की सी हो तो उससे बचने के लिये आँखों पर हथेली रख लेते हैं।
थोड़ा बारिश और तेज़ होती है तो सिर पर हथेली रख लेते है उससे बचने को।
और बहुत तेज़ जब हो ही जाये बारिश तो फिर दोनों हथेली ऊपर कर भीगने का ही दिल करता है।
"बारिश मोहब्बत की दूसरी स्पेलिंग ही तो है।"

बारिश में नदी किनारे यह समझ नही आ रहा था कि बादल बरस कर नदी से मिल रहा है या नदी बारिश की बूंदों के सहारे बादल से मिलने की गुहार लगा रही है।
"परस्पर प्रेम में प्रवाह की दिशा और गति का आकलन सम्भव नही होता।"

दो दिलों के दरमियानी फ़ासले दिनों,महीनों,सालों के हों तो भी तय हो जाते हैं पर अगर यह फ़ासले मौसमों के हो जायें तो फिर तय नही हो पाते।
बारिशों का मौसम खतम न हो जाये , हो सके तो फासले तय कर लेना।
"....क्योंकि मौसमों की दहलीज पर ही किस्से फ़ना होते है अक्सर।"

गर आसमान के कोने दिखते तो उन्हें खींच चारों ओर से जमीन पर खूंटे से बांध कर एक तम्बू बना लेता।
फिर अपनी खुद की एक बारिश होती और बादल भी।
पर बादल और बारिश किसी एक के कहाँ होते है।

फुहार सी बारिश बहुत शानदार होती है, तन नही भीगता इसमें पर मन भीग जाता है।
झिसिर झिसिर बारिश होती है ,लगातार पानी गिरता है इसमें मन ऊब जाता है।
तड़पड़ तड़पड़ बारिश होती है आवाज के साथ और जल्दी ही खत्म, इसमें न मन भीगता है और न तन।
एक बारिश होती है मूसलाधार यानी मोटी मोटी बारिश , इसमें मन मे किसानों के लिए हर्ष होता है कि उनकी मुराद पूरी हो रही।
प्रकृति की इस व्यवस्था में कभी कभी जब उथल पुथल होती है तब बारिश बनने से पहले ही बादल फट जाते हैं। जैसे मन फट जाता है न किसी के व्यवहार से और फिर अंत की कामना होती है वैसा ही दुःख और प्रलय आता है बादल के फटने से।
बारिश में इतनी विभिन्नताएं है और उसको नापते है मिलीमीटर में। इतनी छोटी इकाई से इतने व्यापक स्वरूप का आभास और एहसास इस मिलीमीटर से बनता नही।
"बारिश और मोहब्बत का कोई भी पैमाना न्यूमेरिकल
वैल्यू में नही हो सकता।"

शुक्रवार, 27 जुलाई 2018

" गुरु पूर्णिमा ....."

खरी खरी
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मुझे शुरुआती पढ़ाई से लेकर प्रोफेशनल पढ़ाई तक कोई भी शिक्षक ऐसा नही मिला जिसने कोई ऐसी किताबी शिक्षा दी हो या जीवन का मंत्र दिया हो जिसके लिये उन्हें याद रख सकूँ या श्रद्धा उमड़ पड़े।
जो भी शिक्षक मिले ,वे सारे आम लोगों की तरह ही पढ़ने वाले बच्चों के पारिवरिक पृष्ठभूमि और उनके आर्थिक स्तर से प्रभावित हो बच्चों के प्रति भेदभाव करते हुए ही मिले।
यह अलग बात रही कि अगर कोई सामाजिक और आर्थिक रूप से कमजोर वर्ग का बच्चा मेधावी प्रतीत हुआ तो उसे शिक्षकों ने इसलिए अपने करीब कर लिया जिससे कि उसकी सफलता का श्रेय खुद भी ले सकें।
सच तो यह है कि बच्चों के मन मे शिक्षक के प्रति बहुत सम्मान होता है और उसे यह लगता है कि वो उनके हर सवाल का जवाब होगा। पर जब वह अपने सवालों को उपेक्षित होता देखता है तो कारण समझ नही आता। यह अस्पष्टता अपने सवालों के प्रति जब उपजती है तो प्रारंभ में उसे अपने प्रति हेयता होती है फिर वही हेयता शिक्षक के प्रति उदासीनता उत्पन्न करती है।
"यह दायित्व शिक्षक का है कि वह मनन चिंतन करे कि ऐसा क्या उसने सिखाया अथवा पढ़ाया है जिसके लिए उसके विद्यार्थी याद रख सकें।"
"जाति, धर्म,आर्थिक भिन्नता का पहला सबक बच्चा स्कूल में अपने प्रति किये जा रहे व्यवहार से ही सीखता है। प्रोफेशनल शिक्षा में यही आखरी सबक भी होता है जो शिक्षक वहां पढ़ाते है।"
अगर कोई याद आता है आज तो वो लोग साधारण से है पर मेरे लिए बहुत खास :
१. वो साइकिल मिस्त्री जिसने मुझे साइकिल की उतरी हुई चेन चढ़ाना सिखाया।
२. स्कूल की आया जिसने टिफिन के ढक्कन से छुपाते हुए टिफिन करना सिखाया था नही तो मैदान में ऊपर उड़ती चील झपट्टा मार देती थी।
३. वो मोची जो हमेशा झुका हुआ ही दिखा और चमकाता रहता था जूतों को। उससे सीख कर मैं भी बहुत अच्छी पॉलिश करता था अपने स्कूल शूज़ की।
४. सर्विस स्टेशन वाला मिस्त्री जिसने कार का पहिया बदलना सिखाया।
५.पतंग में कन्ना बांधने के बाद सिर के दबाव से हल्का ताव देना सीखा था मोहल्ले के सबसे बिगड़े और बदनाम लड़के से।
६.दूध वाले का वो लड़का फिरोज़ जिसने मुँह में अंगुली डाल कर सीटी बजाना सिखाया था। इसी सीटी ने कॉलेज में मुझे मशहूर कर दिया था बाद में।
यह एक लम्बी फेहरिस्त हो सकती है।
ज्यादातर मैंने जो कुछ भी सीखा अपने से उम्र में कम वाले लोगों से ही सीखा। बड़ों को शायद सिखाना या पढ़ाना कम आता है या उनके अंदर मानसिक ग्रंथियां बहुत होती हैं।
मेरे तो दोस्त ही मेरे गुरु रहे लगभग सारी कक्षाओं में, उनके कारण ही आज जो कुछ भी है, हासिल हो पाया है।

शनिवार, 17 मार्च 2018

झुकी निगाहें........"



डूबता सूरज
झुकी निगाहें
तासीर एक सी
बादलों की ओट
पलकों का आगोश
मद्धम सा उजाला
बिखरी सी किरणे
खुशबू सी नज़रें
खिंचती सी लकीर
ज़ुल्फें आड़ी तिरछी
जैसे
आसमान का कगार
डूबती रही शाम
लिए लाल से होंठ
जैसे लालिमा सूरज की।