"शब्द भीतर रहते हैं तो सालते रहते हैं, मुक्त होते हैं तो साहित्य बनते हैं"। मन की बाते लिखना पुराना स्वेटर उधेड़ना जैसा है,उधेड़ना तो अच्छा भी लगता है और आसान भी, पर उधेड़े हुए मन को दुबारा बुनना बहुत मुश्किल शायद...।
गुझिया जैसी आंखें
मिश्री जैसी बातें
रेशम से बाल
नपी तुली चाल
आत्म विश्वास की निगाहें
गुज़रें तो महक जाए राहें
न मुस्कुराएं तो खूबसूरत
मुस्कुरा दें तो बला की खूबसूरत
दिल तो किया
लिख दें ये इबारत
हाँ तुम इत्र हो इत्र हो
बस इत्र ही हो।