पिछले साल भी यहीं खड़े थे जब २०१२ को विदा कर रहे थे और २०१३ के लिए सबको शुभकामनायें दे और ले रहे थे और आज फिर वही मुकाम और मौका बस लेन देन का । क्या किया पिछले एक बरस में ,कुछ भी तो नहीं ,वही रोजमर्रा की ज़िन्दगी । बस अपने और अपनों के लिए जीना ,न कभी अपनों के अलावा किसी के लिए कुछ सोचा ,न किया । लगता है जैसे हम आगे नहीं बढ़ रहे हैं बल्कि हम साल भर इस पूरे समूचे साल को पीछे धकेलते रहते हैं और हमें गुमान होता है कि हम आगे बढ़ रहे हैं ।
कुछ सवाल जिनकी कसौटी पर मैं खुद को खरा नहीं पाता :
१. क्या मेरे किसी कार्य से किसी अनजान के चेहरे पर ख़ुशी आ पाई !
२. क्या मैंने कोई ऐसा कार्य किया जिसके लिए न रहने पर भी मुझे याद किया जाए !
३. क्या समाज में व्याप्त किसी रूढ़ि को तोड़ पाने में सफल हुआ !
४. क्या कोई ऐसा कार्य किया जो अन्य लोगों के लिए अनुकरणीय हो !
५. क्या किसी अनजान अशिक्षित को शिक्षित करने में कोई योगदान किया !
६. क्या कभी रक्तदान किया ।
७. क्या बिना स्वार्थ के किसी की कोई मदद की ।
८. क्या कभी किसी रोते हुए को चुप कराने का सामर्थ्य जुटा पाये !
९. क्या सक्षम होते हुए भी कभी मदद न कर पाने का बहाना नहीं किया !
१०. क्या कभी जानते हुए भी गलत बात को जोर देकर सच साबित करने का प्रयास नहीं किया ।
उपरोक्त सभी बिदुओं पर मै पूरे साल असफल रहा ,बस एक बार रक्तदान अवश्य किया । इसके अतिरिक्त इस साल ऐसा कोई काम मैंने नहीं किया जिस पर आप लोग 'वाह' कह सकें । अपने परिवार का भरण पोषण तो जो मनुष्य नहीं है ,वह भी कर लेते हैं ।
अब नए साल पर फिर वही शुभकामनाओं का दौर ,पता नहीं क्यों सब खोखला सा लगता है ।