गुरुवार, 21 मई 2020

बड़ा मंगल....

लखनऊ का मिजाज़
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आज ज्येष्ठ माह का प्रथम मंगल है। यूँ तो प्रत्येक मंगलवार को हनुमान जी का दिन होता है, उन्हें स्मरण करने और उनकी कृपा के पात्र बनने के लिए , परन्तु ज्येष्ठ माह के सारे मंगलवार विशेष होते है, ऐसी मान्यता है।

विद्वान लोग, आचार्य, ज्योतिषाचार्य, गणितज्ञ, वेदज्ञ इन समस्त मान्यताओं, ग्रह नक्षत्रों, दिन काल के विषय मे जानते है और उससे हम सभी को अवगत कराते रहते है।

मान्यताएं आस्था का function होती है और आस्था नितांत मौलिक और व्यक्तिगत domain का विषय होता है, उस पर जब तक सामाजिक रूप से किसी दूसरे की स्वतंत्रता में बाधा न हो रही हो तब तक वाद विवाद अथवा तर्क कुतर्क नही करना चाहिए।

धार्मिक विश्लेषण में अगर न भी उलझा जाए तो आज के दिन और पूरे ज्येष्ठ माह में जिस उमंग ,उत्साह ,स्नेह और उदारता से यहां लखनऊ के लोग भंडारा करते है , वो सच मे प्रशंसीय और अनुकरणीय होता है।

पूरे लखनऊ शहर में , क्या गली और क्या मुख्य मार्ग , सभी जगह कदम कदम पे इन भंडारों के दृश्य नजर आ जाते। पूड़ी , कद्दू की सब्जी और नुक्ती यह मुख्य और न्यूनतम व्यंजन है जो खिलाया जाता , इसके अतिरिक्त अब मीठा शर्बत, कोल्ड ड्रिंक और आइस क्रीम भी प्रचलन में आ गया है।

महिलाएं भी इन भंडारों में बढ़ चढ़ कर हिस्सा लेती है और इस भयंकर गर्मी में , पसीने से चुहचुहाते हुए भी चेहरे पर मुस्कान लपेटे दोनों हाथों से खिलाने में मगन दिखाई पड़ती हैं।

टीका टिप्पणी के उद्देश्य से कुछ लोग ऐसे आयोजन को लेकर साफ सफाई की बात, खाना बनाने के तौर तरीके को लेकर, बहुत पास पास भंडारे को लेकर और न जाने क्या क्या आपत्ति करते है और  फिर करेंगे।

ऐसे लोगो के लिए बस इतना कहना है कि जो ऐसे आयोजन करते है , उनके बारे में दो मिनट सोचिए कि वह किसी सफलता से प्रेरित हो या किसी सफलता की कामना में या निस्वार्थ भाव से यह सब करते है। उनके लिए तो हमे कृतज्ञ होना चाहिए कि वे ऐसा कर रहे हैं।

"आप जो आज स्वस्थ सफल और खुश है न , यह जान लीजिये और मान भी लीजिये कि आपके शुभचिंतकों ने , माता पिता ने भी न जाने कितने अवसरों पर आपके भविष्य के लिए कितनी प्रार्थना, मनौतियां और व्रत किये होंगे।"

"बचपन मे गणित में अक्सर माना कि मूलधन क है , यह मान कर गणना प्रारम्भ करते थे और अंत में काल्पनिक क का मान ज्ञात कर लेते थे" बस यही मान लेना ईश्वर को , मान लेना ख़ुदा को, मान लेना किसी अपने को, मान लेना किसी की चाहत को , मान लेना किसी की मोहब्बत को , आखिर में उस माने हुए काल्पनिक तथ्य का मूल्य और अस्तित्व ज्ञात भी करा देता है और सिद्ध भी कर देता है।

......और मनोरथ जो कोई लावै,
       सोई अमित जीवन फल पावै।

#बड़ामंगल

बुधवार, 20 मई 2020

पगडंडी ......

पगडंडियों पर चलने में एक अलग अनुभूति होती है। पगडंडियाँ अपनी राह में आने वाले पेड़ पौधे ,घास फूस, झाड़ी ,नदी नाले ,जंगल  इत्यादि को कभी रौंदती नही बल्कि उन सबके अस्तित्व को बचाते हुए आगे बढ़ती जाती है। पगडंडियों पर कभी भीड़ नही होती , कभी रास्ते रुकते या बन्द नही होते।

पगडंडियाँ तो बस आने जाने से ही अपने आप बन जाती है जबकि सड़के बनाने में विध्वंस भी शामिल होता है।

"दिलों के भीतर भी रास्ते तो बहुत सारे होते हैं , जिन्हें भीड़ रौंदती रहती है पर पगडंडियाँ बहुत कम और वह भी अक्सर अधूरी होती है और जो प्यार में होते हैं वो इन्ही अधूरी पगडंडियों पर चल कर उन्हें पूरा करते हैं।"

वक्त के साथ पगडंडियाँ गुम भी हो जाती है पर मंजिलों को जोड़ने में बनाई गई भव्य सड़कों में इन पगडंडियों की रूहें शामिल रहती हैं।

"एक अधूरी सी पगडंडी पर कभी अकस्मात पांव पड़ गये थे और वह सफर आज भी जारी है।"