गुरुवार, 24 मार्च 2016

" लग जा गले कि फिर ........"


प्रकृति में जीवन है ,इसे प्रतिपादित करने के लिए ईश्वर ने मनुष्य को जीवन दिया । मनुष्य के कण कण और रोम रोम में जीवन ऊर्जा प्रवाहित होती रहती है । इस ऊर्जा का संचार और इसकी मात्रा मनुष्य के हृदय से ही नियंत्रित होती है । एक प्रकार से प्रत्येक मनुष्य चलता फिरता एक ऊर्जा-स्रोत है ।

कभी कभी परिस्थितिवश किसी मनुष्य के हृदय में खिन्नता , दुःख अथवा ग्लानि उत्पन्न हो जाती है । ऐसे में उसे तत्काल एक अन्य ऊर्जा  स्रोत की आवश्यकता होती है ,जिससे वह अपने क्षय की प्रतिपूर्ति कर सके । ऐसे में यदि इस व्यक्ति को कोई अपने गले से लगा कर ढाढस बंधा देता है तो वह व्यक्ति पुनः ऊर्जा से संचरित हो कर नई उमंग से जीवन जीने को तत्पर हो जाता है । गले से लगा कर आलिंगन बद्ध कर कुछ क्षणों के लिए उस व्यक्ति को ऐसे ही अपने पाश में बांधे रखना चाहिए , इससे वह व्यक्ति तत्काल संजीवनी बूटी सा प्राप्त कर लेता है । इसी के सन्दर्भ में एक पुराना गाना है , जिसमे अभिनेत्री स्वयं उदास होने के कारण किसी के गले लगना चाहती है ।


गले लगाते ही दुखी व्यक्ति को अत्यंत सुकून और भरोसा मिलता है ,जिससे वह एक भयंकर निराशा के मकड़जाल से मुक्ति पा लेता है ।

जब दो  लोगों में परस्पर प्रेम होता है , तब इसकी अभिव्यक्ति भी गले लगा कर ही की जाती है । प्रायः प्रेम की अभिव्यक्ति करने में संकोच / विलम्ब में यह अवसर निकल जाता है और बाद में पश्चाताप होता है । जिनसे प्रेम होता है उन्हें गले लगाने में देर नहीं करनी चाहिए नहीं तो कुछ इस गाने जैसा न हो जाए ।



होली अथवा ईद पर परम्परा है ,आपस में गले मिलने की , जिसमे व्यक्ति बस औपचारिकता निभाने के लिए अनमने  भाव से सामने वाले से गले मिल लेता है । अच्छा तो तब होता है जब दोनों गले मिलने वाले लोग पूरी बाँहे खोल कर एक दूसरे को अच्छे से सीने से  भींच कर सामने वाले की पीठ पर हाथ का दबाव देते हुए गले मिले । परन्तु ऐसा नहीं होता । अब तो इन अवसरों पर गले मिलने से पहले व्यक्ति सामने वाले व्यक्ति का दर्जा , कपड़ा और स्तर देखता है और अनमने भाव से अपने से निम्न आर्थिक स्तर के व्यक्ति को अनदेखा  कर देता है । कुछ लोग तो बिना बांहे खोले ही  कंधे टकरा कर बस गले मिलने की रस्म अदायगी  कर लेते हैं ।

अब बात गले पड़ने की भी हो जाए । जब न चाहते हुए भी कोई जान पहचान  वाला या अनजान व्यक्ति अपनी समस्या सामने वाले के सिर कर दे और यह जानने की चेष्टा भी न करे कि वह व्यक्ति अपनी समस्या से कहीं सामने वाले को संकट में न डाल दे । इसी स्थिति को गले पड़ना भी कहते हैं । न चाहते हुए भी दूसरे की मुसीबत से सामना ही गले पड़ना कहलाता है ।

                       "दोगलों की भीड़ में सच्चे दो गलों से मिलना हो जाए अगर प्यार से तो जनम सफल हो जाए । "


बुधवार, 23 मार्च 2016

" वक्त के रहल पे..........."

अक्स कुछ यूँ था उनका कि उनसे रश्क हो गया,
न जाने कब उन्हीं से क्यूँ तब इश्क हो गया ।

आँखों ही आँखों में उस दिन जब इज़हार हो गया ,
सुर्ख गाल उनका खुद इश्के-इश्तिहार हो गया ।

नज़रें मिली उन शोख नज़रों से जब मेरा तो वुज़ू हो गया ,
उनसे इश्क थी इबादत मुझको इश्क अब इबादत से हो गया ।

कल ख्वाब की नींद में एक गुनाह ख्वाहिश सा हो गया ,
पलकों को उनकी चूम लबों से एक दास्ताँ लिख गया  ।

चंद अल्फ़ाज़ थे या थे कुछ हर्फ़ ,सब न जाने कहाँ खो गया ,
वक्त के रहल पे एहसास उनका एक किस्सा सजा  गया ।