बुधवार, 31 अक्टूबर 2012

" इस बार करवा चौथ पे ....."


सुनो, उस दिन बिंदी वो वाली लगाना , गीली वाली , अरे, जिसमें खुशबू होती है | मैं हर बार नाम भूल जाता हूँ , पर तुम समझ तो जाती हो न | हाँ ! वो कुमकुम वाली , जो पतली तीली से लगाती हो न माथे पे , वही | अच्छा, मंदिर के लिए गेंदे के फूलों की लड़ी लाऊँगा तब बेले के फूल भी लेता आऊंगा तुम्हारे बालों के लिए | अच्छे लगते हैं |

"आपको तो पूजा / व्रत में आस्था है नहीं , फिर इस बार इतना क्यों याद रख रहे हैं ", पूछा निवेदिता ने | मैंने कहा ," मुझे वो सारे उपक्रम बहुत अच्छे लगते हैं जो तुम पूजा / व्रत की तैयारी में करती हो | पूरा घर सुगन्धित हो उठता है और पूजा के बाद मन भी |

रही बात 'करवा चौथ' के व्रत की , तो वह तुम करो ,न करो ज्यादा फरक नहीं पड़ता | व्रत तो तुमने उसी दिन रख लिया था ,जीवन भर के लिए , जब तुम अपना प्यार भरा मायका छोड़ , एक अनजान परिवार में कल्पनाओं का संसार लिए चली आई थीं | तुम्हारा व्रत तो मुझे रोज़ दिखता है अपनी ज़िन्दगी में | ऑफिस में टिफिन भी खोलता हूँ जब , तब करीने से रखी कटोरियाँ , फ्वाएल में लपेटे अचार और मिठाई में तुम्हारा ही एहसास होता है |

तुमने कई बार कहा है , "मेरे बारे में मत लिखा करिए " | पर मन करता है कभी कभी मन उड़ेलने के लिए | अतः फिर गुस्ताखी कर रहा हूँ | इस बार पूजा में तुम मुझे डाटना मत , जब मैं सामने देखने के बजाय तुम्हारे डिम्पल निहारता मिलूं | मेरा मानना है ,पूजा करते समय ध्यान की अवस्था होनी चाहिए बस, और मैं तो हमेशा तुम्हारे ध्यान की अवस्था में ही रहता हूँ , फिर दोष कैसा |

तुम्हारे जीवन में हमेशा सुगंध भर सकूँ ,बस इतना ही अनुरोध है तुम्हारे उस भगवान् से जिसे तुम ज्यादा मानती हो और मैं तनिक कम |

                                             "करवा चौथ व्रत की महिमा बनी रहे "




मंगलवार, 23 अक्टूबर 2012

" कच्ची रसीद........."


तुम,
'हाँ' नहीं कहते ,
यह सच है ,
'ना' भी नहीं कहते , 
यह और भी सच है ,
लबों से बोलकर ,
पक्की रसीद न दो न सही ,
आँखों ही आँखों में ,
कच्ची रसीद ही जारी कर दो |

गर हुआ मिलना कभी ,
दुनिया के किसी मोड़ पर ,
रसीद दिखा तुम्हें ,
अपनी चाहत रसीद कर दूँगा |
अपनी चाहत वसूल कर लूँगा |

गुरुवार, 18 अक्टूबर 2012

" इतनी ख्वाहिश बस ............"



अल्फाज़ मेरे,
लब तेरे ,
आँखें तेरी ,
जुगनू मेरे,
इतनी ख्वाहिश बस |

दिल मेरा ,
धड़कन तेरी ,
मन तेरा ,
उमंग मेरी ,
इतनी ख्वाहिश बस |

कदम मेरे ,
आहट तेरी ,
नींदे तेरी,
ख़्वाब मेरे ,
इतनी ख्वाहिश बस |

तबस्सुम तेरी ,
ख्याल मेरे ,
अश्क तेरे ,
प्यास मेरी ,
इतनी ख्वाहिश बस |

चाहत तेरी ,
हसरत मेरी , 
फ़िदा मै ,
कबूल तुम ,
इतनी ख्वाहिश बस |

शनिवार, 13 अक्टूबर 2012

" हमारे यहाँ सातवाँ कब आयेगा......."


सातवाँ बहुत खूबसूरत है | महंगा तो अवश्य है ,परन्तु है, सब से हटकर | उसको लेने वाले भी अलग से दिखते हैं | मुझे लाइन में लग कर यह कहने में ही हीनता हो रही थी कि मेरा तो अभी तीसरा ही है | मैं शक्ल से दीन हीन तो लगता ही हूँ ,मेरे साथ मेरा सिलंडर भी शर्माते हुए जमीन में धंसा जा रहा था | सातवें और उससे अधिक वालों की लाइन एकदम अलग | उस काउंटर पर बैठा आदमी भी एकदम फ्रेश और दुरुस्त | फटाफट नए नोट कडकडाते हुए मुट्ठी में दबोच रहा था और सातवाँ जारी पर जारी किये जा रहा था | सातवाँ सिलंडर भी खुद ब खुद चलकर लुढ़कता हुआ गाड़ियों की डिक्की में दुबकने को तत्पर था | हम थे कि सिलंडर पर कम, बचे पैसों की चिल्लर पर ज्यादा ध्यान लगाए थे कि इस मारामारी में इस लाइन के काउंटर पर बैठा मैला कुचैला सा आदमी हमारी बची चिल्लर न दाब जाए | 

खैर सिलंडर जो हमें मिला ,वह भी तीन जगह से पिचका सा था जैसे बिना मन से तीसरा बन कर जा रहा हो | अब तो हर सिलंडर सातवाँ बनना चाहता है बस | महंगा बिकने का मजा ही कुछ और है ,चाहे वह हीरो हो , हीरोइन हो , क्रिकेटर हो या हो, लीक हुआ पर्चा किसी प्रतियोगी परीक्षा का | मेरी गैस सिलंडर की किताब को देखकर काउंटर वाला आदमी बोला , तुम्हारा तो सातवें का नंबर ही नहीं आयेगा कभी | महीने में पंद्रह दीन फांका रखते हो क्या ! मैंने कहा अरे नहीं भाई , थोड़ा किफायती हैं और थोड़ा कंजूस भी | 

सुना है, जिनके यहाँ सातवाँ पहुँच गया है उनके यहाँ उस पर बनी चाय का जायका भी बहुत शानदार है | विद्वान लोग , मेरे जैसों को छोड़कर , चाय सूंघ कर ही बता देते हैं कि चाय सातवें पर बनी है | पिलाने वाला भी बहुत गर्मजोशी के साथ यह कह कर पिलाता है कि लीजिये साहब यह चाय सातवीं पर बनी है | जैसे पहले कभी जब लोग मोबाइल पर किसी से बात करते थे,तो छूटते ही पहले यह जरूर बताते थे कि मोबाइल से बोल रहा हूँ |

सरकार को एक काम यह भी करना चाहिए ,गैस का सिलंडर ट्रांसपैरेंट बनवा दें और उसमें दवा की शीशी की तरह दिनों के हिसाब से ६० दिन के लिए बराबर बराबर निशान लगा दें | थोड़ा मुश्किल जरूर है क्योंकि सिलंडर के अन्दर गैस तो द्रव की शक्ल में होती है और उसका आकार और आयतन बदलता रहता है फिर भी बाहर से दिखेगा तो आदमी उसी हिसाब से खाना पकाएगा और समय रहते ही फांका मार एक दो दिन गैस को बचाने की  कोशिश भी करेगा |   

समाज के वर्गीकरण का एक नया आधार मिल गया अब | वार्षिक आमदनी की बजाय अब सिलिंडर की वार्षिक खपत के आधार पर वजीफा , बेरोजगारी भत्ता ,रेल किराए में छूट , गाँवों में इंदिरा आवास , पेशन आदि योजनायें लागू की जायेंगी | 

                सातवें की तो बात ही कुछ और है | हमारे यहाँ सातवाँ कब आएगा .......पता नहीं |

गुरुवार, 11 अक्टूबर 2012

" चूहे दानी ......"


आज ऑफिस में एक महत्वपूर्ण फ़ाइल मांगने पर स्टाफ जब फ़ाइल लाया तब मैंने देखा , उसके कुछ पन्ने कुतुरे हुए से थे | मैं थोड़ा चकित हुआ और घबराया भी कि लगता है ऑफिस में चूहे हो गए हैं जो अच्छा खासा नुकसान कर सकते हैं | मेरी व्यथा देख सबने विचार विमर्श के बाद ऑफिस में ' रैट किल ' डालने को कहा | परन्तु मैं चूहों के प्राण लेने में साझीदार नहीं बनना चाह रहा था | अतः मैंने स्टाफ से एक चूहेदानी लाने को कहा | मैंने कहा उसमें चूहा कैद हो जाएगा , फिर उसे दूर कहीं छोड़ देना | इस पर सब लोग सहमत हो गए | और वे एक चूहेदानी बाज़ार से ले आये |

मैं कौतूहलवश चूहेदानी को हाथ में लेकर देख कर रहा था कि इसमें चारा कहाँ लगाते हैं और कैसे चूहे के दाँत लगते ही चूहेदानी अपने आप बंद हो जाती है और एक आवाज़ जोर से होती है जिससे मालूम चल जाता है कि फँसा एक चूहा | सोचते सोचते मैं चूहे की मानसिकता के बारे में सोचने लगा कि जहां कहीं भी चूहे दानी को लगाते हैं वहां चूहे को खाने लिए चूहे दानी के आलावा बहुत कुछ खाने और कुतुरने के लिए होता है , फिर वह चूहा उसमें क्यों जा कर फंस जाता है | जवाब मिला :" लालच " | हाँ ! लालच के ही कारण चूहा उसमें घुसकर अपनी जान की आफत मोल ले लेता है | 

मैंने प्रयोग के तौर पर जो चारा चूहेदानी में लगाया उसी खाद्य पदार्थ को उस चूहे दानी के आस पास और भी अधिक मात्रा में बिखेरने को कहा  | फिर भी अगले दिन चूहे दानी में चूहा फँसा मिला | निष्कर्ष "लालच" | कितना ही पेट भरा हो चूहे का , फिर भी अपनी आदत वश कुछ नया पाने को , नया खाने को , नया कुतुरने को वह लालच वश उस चूहे दानी में घुसता है और कैद हो जाता है और कुछ माउस ट्रैप तो ऐसे होते हैं जिसमें चूहे मर भी जाते हैं | "लालच कितनी बुरी बला है" ,यह कितनी आसानी से सिद्ध हो जाता है , केवल चूहे दानी को देखने से ही |

एक पलांश की लालच और उम्र भर की सज़ा या मौत | मेरा तो मानना है कि प्रत्येक कार्यालय में दीवारों पर गांधी जी के चित्र भले ही न हो परन्तु चूहे दानी का चित्र अवश्य लगाना चाहिए | इसे देखकर लोगों को लालच से अवश्य छुटकारा मिल सकता है | लालच के दुष्परिणाम को समझने के लिए इससे शोर्ट तरीका और कोई नहीं | केजरीवाल को अपनी पार्टी का चुनाव प्रतीक भी 'चूहेदानी' ही रखना चाहिए | बच्चों को भी घर और स्कूलों में चूहेदानी के डेमो से लालच के बारे में समझाया जाना चाहिए |

मनुष्य भी अच्छी खासी ज़िन्दगी जीते जीते अकस्मात एक लालच के चक्कर में ऐसे ही अक्सर फंस जाता है और खुशहाल जीवन से हाथ धो बैठता है | रास्ता तय करते वक्त लोग चढ़ाई पर कभी नहीं गिरते हैं ,जब भी गिरते हैं ढलान पर ही गिरते हैं अर्थात सरल आकर्षण प्रायः चूहेदानी समान ही होते हैं |

यह आकर्षण धन , वैभव , जायदाद या सौन्दर्य कुछ भी हो सकता है |

शुक्रवार, 5 अक्टूबर 2012

" एक कोलाज उनके... जो शरीक हैं मेरी ज़िन्दगी में........"



                                                                                           (चित्र पर क्लिक करें) 

कुछ ख्याल आज यूँ आया कि जो लोग मेरी ज़िन्दगी से जुड़े हैं या जिनसे सरोकार है मेरा , अगर उन ज़िन्दगियों को जोड़ जोड़ कर एक कोलाज बनाया जाये तब वह  कैसा बनेगा और कैसा दिखेगा | पुरानी स्मृतियों से लेकर अब तक सभी को याद कर एक जिग-सा पज़ल की तरह करीने से जोड़ने का प्रयत्न कर रहा हूँ पर अचंभित हूँ यह देख कर कि सारी कतरने मेरी लगाईं हुई जगह पर नहीं ठहर रही हैं | वह खुद-ब-खुद चल कर अपनी जगह ढूंढ कर वहीँ चिपक जा रही हैं | आकृति एक मनुष्य की ही बनती जा रही है ,शायद मेरी ही | 


देखते देखते एक कोलाज मेरे ही चित्र सा तैयार हो गया | जिनकी तरह से मैं सोचना चाहता हूँ , उन सब ने मिल कर सर का आकार ले लिया | जिन्हें मैं दिल में बसाना चाहता था , वे एक भी दिल के स्थान पर नहीं ठहरे | सब बस दिल के इर्द गिर्द एकत्र होकर दिल को आकार दे रहे थे और दिल में झाँकने का प्रयत्न कर रहे थे (देखें चित्र में ) | चूंकि वहां का स्थान रिक्त था,अतः वहां कोई उतरने की हिम्मत नहीं कर पाया | शायद लोग वहीँ रहना और जाना पसंद करते हैं ,जहाँ भीड़ भाड़ होती है |अतः कोलाज में भी मेरे दिल का स्थान रिक्त ही रहा | अब चूंकि काम तो बहुत अधिक करना पड़ता है और जो लोग भी मेरे सहयोगी है ,वे सब मेरे दायें ओर एकत्र हो गए | यह  सब कोलाज बनाते समय अपने आप हो रहा था | चाह कर भी मै कुछ लोगों की कतरनों को इधर से उधर नहीं कर पाया | अचानक से सभी जिंदगियां जीवंत जो हो चुकी थीं |

जिन्हें मैं अपनी नज़र में बसा कर रखता हूँ ,वे सब आँखों के स्थान पर आकर ठहर गए | मेरे अधरों पर मुस्कान लाने वाले बहुत कम ही लोग हैं मेरी ज़िन्दगी में , वे चंद लोग ठहरे से हैं मेरे होंठों पर | उनका मैं दिल से अहसान मंद हूँ |

कुछ लोग ऐसे भी हैं जो अब मेरे संपर्क में नहीं हैं और मुझसे बहुत दूर हैं | वे दूर तो खड़े हैं परन्तु वास्तविक आकार मेरे जीवन का उनके वहां होने सी ही है | वाह्य रेखाएं किसी भी चित्र की सबसे महत्वपूर्ण रेखाएं होती हैं |

और कुछ यूँ बन गया कोलाज, मेरी ज़िन्दगी में शामिल लोगों का |

ज़िन्दगी एक कोलाज ही तो है तमाम उन ज़िन्दगियों का , जो आपकी ज़िन्दगी से वास्ता रखती हैं |

बुधवार, 3 अक्टूबर 2012

"सी.टी.सी."........अर्थात.... "कॉस्ट टू कंपनी"..........."


एक साधारण सा टर्म आजकल प्रचलन में है 'सी टी सी ' , जिसका सीधा सा अर्थ है कि कोई व्यक्ति जिस कंपनी / ग्रुप में काम करता है उस कंपनी को उस व्यक्ति को अपने यहाँ काम के बदले कुल कितनी कीमत चुकानी पड़ती है | उस 'सी टी सी' में सभी प्रकार के लाभ , वित्तीय अथवा गैर वित्तीय , जुड़े होते हैं | 

इसी टर्म का प्रयोग अगर एक दूसरे सन्दर्भ में किया जाय तब और ही ज्यादा व्यापक अर्थ निकल आता है | 'कंपनी' का अर्थ किसी का 'साथ' भी होता है | और अक्सर किसी का साथ पाने के लिए कीमत भी चुकानी पड़ती है यथा :

१. किसी राज नेता की सी.टी.सी. -----------अपने सिद्धांतों और निजी जीवन से समझौता |
२.किसी पत्रकार की सी.टी.सी. --------------आपकी निजता और गोपनीयता समाप्त |
३.किसी पुलिस वाले की सी.टी.सी. ---------अपने ही घर में चोर घोषित हो जाएँ ,पता नहीं |
४.किसी माफिया की सी.टी.सी. -------------उसके लिए आप फिरौती के सिवाय कुछ नहीं |
५.ममता की सी.टी.सी. ----------------------समर्थन वापसी का भय |
६.अमर सिंह की सी.टी.सी.---------------- --जया प्रदा विलुप्त  |
७.केजरीवाल की सी.टी.सी.------------------अन्ना का विलीनीकरण |
८.दिग्विजय सिंह की सी.टी.सी.-------------कांग्रेस को लुप्त प्राय करने की ओर अग्रसर |
९.नरेंद्र मोदी की सी.टी.सी.-------------------मुस्लिम वर्ग से बैर , विश्व को नकारात्मक सन्देश |
१०.मायावती की सी.टी.सी.-------------------एक वर्ग विशेष का राज, शिक्षा विहीन समाज | 
११.ट्रेन में महिला सहयात्री की सी.टी.सी.------'आई.ए.एस.' जेल में |
१२. गर्ल फ्रेंड की सी.टी.सी.-------------------समय , सुकून का सत्यानाश और भीगा रूमाल जेब में ।
१३.पत्नी की सी.टी.सी. ------------------------उनके पक्ष में 'एस्क्रो' खाता प्यार का | (escrow account)
१४.बच्चों की सी.टी.सी.-----------------------मुस्कराहट , खिलखिलाहट  और जीवन्तता से भरपूर जीवन |
१५.ब्लॉगर की सी.टी.सी.---------------------बस तारीफ़ करती टिप्पणियाँ |
१६.फेसबुक फ्रेंड की सी.टी.सी.------------------रातों की नींद  |
१७. बॉस की सी.टी.सी. -----------------------पत्नी से नाराजगी |
१८."उनकी" सी.टी.सी.  -----------------------जोखिम जान का |


                            "मेरी सी.टी.सी. --------बस दो बोल प्यार के , फिर तो जान भी हाजिर है |"