यह उन दिनों की बात है जब शाहजहाँपुर तैनाती के दौरान प्रायः ट्रेन से लखनऊ से आवाजाही लगी रहती थी । एक बार स्लीपर क्लास में दो सिपाही एक मरियल से लडके को लेकर चढ़े थे । उस लडके के हाथ में हथकड़ी पड़ी थी । बर्थ पर खिड़की की तरफ मैं था और मेरे बगल उस लडके को बिठा कर उसकी बगल में वह दोनों सिपाही बैठते ही अपनी रायफल के सहारे ऊँघने लगे थे । पहले तो मैं बड़ी हिकारत से उस लडके को देख रहा था और उन सिपाहियों को गुस्से से बोलने वाला था कि ऐसे कैसे स्लीपर में अपराधी को लेकर चढ़ गए । फिर मैंने सोचा क्या फ़ायदा ,यह तो इनका रोज़ का पेशी के लिए आना जाना है ,बेकार में पंगा क्या लेना । इससे बेहतर है इस लडके से बात चीत कर कुछ समय गुजारा जाय ।
मैंने उस लड़के से पूछा ,क्या गुनाह कर डाला जो यह हथकड़ी लगी है । खिसियाते हुए वह बोला पॉकेटमारी की है मैंने । अरे तो पाकेटमार तो बहुत होशियार होते हैं कैसे पकड़ गए तुम । इस पर वह बहुत दार्शनिक अंदाज़ में बोला , बस टाइम ख़राब था ,साहब । मैंने कहा चलो कोई नहीं ,अगली बार सावधानी बरतना और हाँ ,मुझे इतना जरूर बता दो कि पॉकेटमारी से बचने के लिए मुझ जैसों को क्या करना चाहिए ।
इस पर उसने बताया कि पहचानने के लिए जान लीजिये कि जेबकतरा हमेशा मरियल सा और कमजोर सा दिखने वाला लड़का ही होता है । उसको सपोर्ट करने के लिए उसके पीछे मजबूत लडके होते हैं । कई बार पकड़े जाने पर कमजोर से लडके को बिना मारे पीटे लोग छोड़ देते हैं । आगे उसने बताया कि पॉकेटमारी से बचने के लिए सबसे सुरक्षित जेब कमीज़ या कोट की ऊपर की होती है और अगर उसी जेब में कुछ सिक्के भी पड़े हों तो और भी बेहतर क्योंकि सिक्के अलार्म का काम करते हैं । किसी ने हाथ लगाया नहीं कि खनखना उठती है जेब । सबसे असुरक्षित जेब पीछे वाली होती है । कई बार तो लोग दोनों हाथ से बस अथवा ट्रेन का डंडा पकड़ कर उतरते रहते हैं और उनकी आँखों के सामने उनकी पीछे की जेब से बटुआ मार देते हैं ,अब अगर हाथ छोड़ेंगे तो जान से ही जाएंगे । वैसे जींस में सामने की जेब भी काफी सुरक्षित होती है ।
उस जेबकतरे ने आगे बताया कि अक्सर हम लोग यह जानने के लिए कि लोगों ने पैसा अथवा बटुआ कहाँ रखा है ,अचानक से कहते हैं कि अरे किसी का बटुआ तो नहीं गिरा है । यह सुनते ही स्वाभाविक रूप से हर व्यक्ति अपना हाथ वहीँ ले जाता है जहाँ उसने रूपया रखा हुआ है । हमारे दूसरे आदमी बस इसी को देखते रहते हैं और जानकारी हो जाती हैं कि माल कहाँ है ।
जेब हमेशा शिकार की गतिशील अवस्था में काटी जाती है । चलती ट्रेन अथवा बस में जेब कभी नहीं कटेगी । जैसे ही ट्रेन / बस रुकती है और मुसाफिर गतिशील होते हैं या जब सिनेमा का शो छूटता है ,बस उसी समय जेब काटने का सबसे मुफीद समय होता है । सारे रास्ते लोग बहुत होशियार रहते हैं पर घर के निकट पहुंचते ही असावधानी कर बैठते हैं ।जब किसी के दोनों हाथ व्यस्त होते हैं ,जैसे मंदिर में प्रसाद लिए हुए अथवा हाथों में बच्चे को लिए हुए या एक हाथ में मोबाईल लिए और दूसरे में कोई भारी सामान वगैरह लिए हुए व्यक्ति भी जेबकतरे का आसान टारगेट होता है ।
पॉकेटमारी से बचने का सबसे आसान उपाय बटुआ ऊपर की जेब में रखे । रूपया दो तीन जगह रखें । अधिक धन लेकर न चलें । प्लास्टिक मनी का उपयोग सर्वाधिक करें । यह कभी न सोचें कि आपके साथ ऐसा नहीं हो सकता ।
मैंने सोचा ,यह ऐसे ही सबको बताता फिरेगा तो इसका तो धंधा चौपट हो जाएगा । मेरी बात चीत सुनकर दोनों सिपाहियों में से एक आँखों आँखों में ही मुझे टटोल कर बोला ,क्या बात है ,बहुत इंट्रेस्ट ले रहे हो । बड़ी बारीकी समझ रहे हो इस धंधे की ।
मैंने मन ही मन कहा तुम नहीं समझोगे । मैं भी ठहरा पाकेटमार ,देखो उस जेबकतरे की जेब से कुछ तो माल निकाल लाया और अब उड़ेल भी दिया सब के सामने ।