"दुल्हनियां तो बहुत सुन्दर है" यह सुनने का सिलसिला जो मंडप से शुरू हुआ था ,वह घर वापस बारात लौटने तक रास्ते भर चलता रहा था | रास्ते भर मै तुम्हे कनखियों से देखता और लोगों की बातों से मेल कराने की कोशिश करता कि उनकी बातों में सत्य का प्रतिशत कितना है ,पर चूँकि कार तुम्हारा देवर चला रहा था ,वह भी रियर व्यू मिरर में पूरी नज़र मुझी पर रखे था कि, मैं कितना संयम बरत रहा हूँ, सो अपने आंकलन में सफल नहीं हो पा रहा था | मुझे घूँघट की ओट से निकलती तुम्हारी नाक और उस पर झूलती नथ और हाथों की दसों उंगलियाँ आपस में उलझी हुई गोद पर रखी, आज भी याद हैं | तुम्हारा सुबकना बार बार मुझे अपराध बोध सा करा रहा था कि, जैसे मैंने तुम्हे रुलाने का पाप किया हो, पर दूसरे ही पल किसी ज्ञानी की तरह ज्ञान प्राप्त होने लगता कि यह तो दुनिया का दस्तूर है ,हाँ मन ही मन यह जरूर कई बार प्रण कर रहा था की, कोशिश मेरी यही होगी कि ये आंसू तुम्हारे आखिरी आंसू हों |
घर पहुँचने के बाद सारे रीति -रिवाज़ संपन्न होते होते बहुत देर भी हो गई थी,सच कहे तो ऊब भी गए थे और थक भी |
और फिर देर शाम मेरा प्रथम परिचय हुआ था तुम्हारे सौन्दर्य से |
बहू को ससुराल में कितना भी प्यार मिले, पर उसे अपने माएके में मिले दुलार से सदा वह कम ही लगता है और इसी के साथ शुरुआत होती है, माएका और ससुराल में मिलने वाले माहौल और कम्फर्ट के नापतौल की | मै तो उस समय बहुत असहज सा रहा हूंगा क्योंकि अचानक तुमसे मिले सामीप्य और प्यार के लिबास में एकाधिकार की मादकता में चौबीसों घंटों डूबा ही रहता था ,कुछ हद तक ठीक भी रहा होगा शायद | क्योंकि किसी को बुरा लगा हो ऐसा किसी ने एहसास भी नहीं कराया कभी | धीर धीरे समय बीतने लगा और अब तो खटर-पटर भी होनी शुरू हो गई थी, जो संकेत था सफल वैवाहिक जीवन की शुरुआत का |
इतने बरस हो गए ब्याह को ,पर आज तक जो भी खटर पटर हुई ,सदा दूसरों के व्यवहार को लेकर ही हुई |ना मुझे तुमसे कोई शिकायत ना तुम्हे मुझसे कोई शिकवा ,पर यह दूसरे ही हमेशा तुम्हारे लिए उत्प्रेरक का काम करते रहे |इसका कारण आज तक मै नहीं समझ पाया| खैर, पता नहीं हम लोगों ने कभी कौन सा पुण्य किया था, जो हम लोगों को इतने प्यारे प्यारे दो बच्चे ईश्वर ने नवाजे और उसके बाद तुम्हारी दुनिया तो बस उनके इर्द गिर्द कसती चली गई | एक इत्तिफाक और रहा कि , भले ही तमाम मसलों में हम लोग एकराय ना रहे हों या झगड़ भी गए हों पर बच्चों की परवरिश में जैसे हम तुम एक दूसरे का ही अक्स रहे हों ,और आज उसी का नतीजा है कि दोनों बेटे देश के सर्वोच्च संस्थान में अध्धयन रत हैं | ईश्वर की इससे बड़ी कृपा हम लोगों पर और कुछ नहीं हो सकती ,बस यही प्रार्थना है उस प्रभु से, बस ऐसे ही हमें संजोए रहें |
ब्याह की सालगिरह पर पीछे का सब कुछ याद सा आने लगता है ,कुछ रिश्ते हमसे छूट भी गए ,और कुछ रूठ भी गए, ना चाहते हुए | पर सबका अपना अपना नजरिया है, जिंदगी जीने का भी, और निभाने का भी |
लोगों को ताज्जुब होता ही कि यार तुम लोगों को इतने बरस हो गए ब्याह के, पर लगता नहीं ,इसका शायद एक ही कारण है कि हम लोग हमेशा दोस्त की ही तरह रहे ,ज्यादातर कोशिश समय साथ बिताने की ही रही ,आपसी रिश्ते को हर दूसरे रिश्ते से ज्यादा महत्त्व दिया ,चाहे वह कोई भी रहा हो|
पीछे मुड़कर देखने पर वो कठिन रास्ते भी बहुत अच्छे लगते हैं ,कोई शिकवा नहीं जिंदगी से | तुम्हारा साथ क्या मिला, लगता है कि, मेरी झोली ही छोटी पड़ गई ,खुशियाँ समेटने में |
०३ फरवरी १९८८ को मेरी जिंदगी में पहली बार कोई लड़की आई थी और वह तुम थीं |आज हमारे ब्याह को २३ बरस हो गए ,पर सच में लगता है जैसे अभी कल ही की बात हो |