शनिवार, 26 फ़रवरी 2011

"गुमसुम गुमसुम"

हाँ,सपने बुने थे मैंने,
तुम्हारे संग अपने |
उन  सपनों के ताने बाने थे ,
बस तुम्हारे इर्द गिर्द |
जिसमें थे ,
दो बोल प्यार के ,
और बहुतेरी ख़ुशी |
बिछौना था हमारी बाहों का ,
और बयार थी साँसों की |
प्राण तो हुए थे,
हर  बार अधर में |
जब भी मेरा नाम आया ,
तुम्हारे अधर पे |
इतना प्यार किया क्यों ,
गर जाना था मुझसे दूर |
छोड़ गए मुझे यूँ ,
बस गुमसुम गुमसुम |










मंगलवार, 22 फ़रवरी 2011

"सवेरे सवेरे"

तुम हो  ख़ुश्बू ,
एक प्याली चाय  की ,
सवेरे सवेरे |
तुम लगो संगीत ,
कोयल की कूक सी ,
सवेरे सवेरे |
तुम हो एक एहसास ,
मखमली धूप सी ,
सवेरे सवेरे |
जी तो करे ,
भर लूँ तुम्हे बाहों में ,
सवेरे सवेरे |
तुम्हारा लजाना यूँ ,
कह गया कहानी रात की ,
सवेरे सवेरे |

शनिवार, 19 फ़रवरी 2011

"आरक्षण" आखिर किनको और कब तक ? ?

                 यह बात तो पूरी तरह सच है कि, आरक्षण की सुविधा दिए जाने से ही आज समाज में आरक्षित वर्ग के लोगों ने जो स्थान और स्थिति प्राप्त की है ,यदि 'आरक्षण' ना होता तब वे कभी भी इतनी उन्नति और सम्मान ना हासिल कर पाते | समाज में विसंगति और अ-मनुष्यता समाप्त करने के लिए यह अत्यंत आवश्यक था और तभी हम सब आज मनुष्यता की सोच के प्रति  इतना परिवर्तनशील और प्रगति परक हो पाए हैं |
                  आरक्षण का उद्देश्य मूलतः वंचित और अभाव ग्रस्त लोगों को मुख्य धारा में लाकर विकसित करने का था और जो कि एक स्वस्थ  समाज के सर्वांगीण  विकास के लिए आवश्यक भी है |
                  परन्तु आज स्थिति थोड़ी भिन्न हो चली है |आरक्षण प्राप्त परिवार के लोग इस सुविधा के कारण लगातार आगे बढ़ते जा रहे हैं, और चूँकि इस सुविधा का प्रतिशत अथवा अनुपात तो निश्चित है, अतः सही मायने में जिन्हें सुविधा मिलनी चाहिए ,वे वंचित रह जा रहे हैं | यह कैसे तर्क संगत हो सकता है कि आरक्षित वर्ग के  एक सरकारी  अफसर के बेटे को पुनः आरक्षण का लाभ मिल जाता है  और अत्यंत गरीब और वंचित व्यक्ति इस लाभ का लाभ नहीं ले पाता, क्योंकि आरक्षित वर्ग के  छात्र को अब अपने ही वर्ग के अत्यंत समृद्ध छात्र से ही प्रतिस्पर्धा करनी होती है,जिसमें वह निश्चित तौर पर असफल हो जाता है| 
                  सामान्य वर्ग के लोगों में भी रोष तभी होता है, जब कोई प्रतियोगिता ,नौकरी अथवा अवसर आरक्षित वर्ग के उस व्यक्ति को मिलता है जो आर्थिक और सामाजिक रूप से सामान्य वर्ग के व्यक्ति से  बेहतर होता है | इस व्यवस्था से एक ऐसी स्थिति उत्पन्न होती जा रही है जिससे आरक्षण नीति अपने मिशन से इतर हो रही है,और समाज को पुनः अ-मनुष्यता जैसे भाव उत्पन्न करने की ओर ले जा रही है | इसके लिए आरक्षित वर्ग के लोगों को ही आगे आना होगा और इस व्यवस्था से समाज में  उत्पन्न होने वाली स्थिति पर गंभीरता से विचार करना होगा |
                    इसका एक और केवल एक समाधान यह हो सकता है कि आरक्षित वर्ग के लोगों को यह सुविधा एक वंश में केवल एक बार मिले ( only one time reservation  in one generation)|
                   आरक्षण इस  प्रकार से लागू किये जाने पर यह सुविधा पूर्ववत उन सभी लोगों को मिलती  रहेगी  जो सही मायने में समाज में अभी भी मुख्य धारा से विलग है, और अपने ही बंधुओं से compete नहीं कर पा रहे हैं | यह बात भी सच है की आरक्षण प्राप्त बच्चे भी अत्यंत प्रतिभाशाली होते हैं और प्रायः तमाम अवसरों पर वे सामान्य वर्ग के बच्चों से काफी बेहतर प्रदर्शन भी करते हैं ,ऐसी स्थिति में वे स्वयं भी आरक्षण प्राप्त होने के कारण अलग थलग महसूस करते हैं | व्यवस्थाएं ऐसी हों और उनका अनुपालन और क्रियान्वयन इस प्रकार से हो की हम एक उन्नत समाज की और अग्रसर हों सकें ,ना कि  राज नेताओं की divide and rule और lolypop policy का शिकार हों |
                    

मंगलवार, 15 फ़रवरी 2011

"काश ! मै टेडी बियर होता"

              'वैलेंटाइन डे' की खुशबू हवा में थी | गिफ्टों का, गुलाबों का, सुदर सुन्दर शो पीस बांटे जाने का दौर झमा झम चल रहा था| जिसे देखो वह कांख में एक अदद बुके दबाए, आँखों में चमक चमकाए और होंठो पर शरारती मुस्कान लिए चला जा रहा था | यह सब देख कर हमारी नसों में भी बचा खुचा खून कुछ खलबलाया और मन को हलोरने लगा कि हम भी किसी को कोई गिफ्ट दें और बदले में किसी नाज़ुक सी दोशीजा की शर्मीली और भारी पलकों का बोझ उठा सकें |
              बहुत सोचने के बाद भी कोई उपयुक्त पात्र नहीं नज़र आया ,फिर अचानक याद आया कि  गलती तो मेरी ही है | capital letter  के साथ capital letter  ही शोभा देता है और मै खामख्वाह small letter ढूंढ़ रहा था | इस नाजुक मौके पर मुझे capital में ही रहने वाली अपनी  निजी वा इकलौती पत्नी याद आ ही गई (जो capital भी है और italics भी ) | मैंने तय किया कि इस बार मै भी अपनी पत्नी को कोई गिफ्ट दे ही  दूँ | यह विचार आते ही पहले तो मैंने बड़ी गर्मजोशी से उन्हें  फ़ोन पे 'इजहारे-इश्क दिवस' के बारे में बताया और सच में पहली बार बड़ा रोमांस महसूस कर रहा था और रोमांच भी |पहले तो यह सोचा था कि कोई सरप्राइज गिफ्ट दे दूंगा ,फिर सोचा कि कहीं उन्हें पसंद ना आया तो पैसे की भी बर्बादी होगी सो, सोचा लाओ उन्ही से फ़ोन पर पूछ लेतें हैं | चूँकि फ़ोन पर प्यार इश्क की बात तो कभी हुई नहीं थी ,लिहाजा वह तो पहले से ही लजाई हुई थीं ,मेरे पूछने पर बड़ा मन दबाते हुए बोली कि एक टेडी बियर लेते आइयेगा ,वह भी काफी बड़ा सा |
              मैं मन ही मन यह सोच कर खुश हो रहा था कि, आज उनकी फरमाइश पूरी कर ही  देंगे ( जैसे उन्होंने नौ लखा हार माँगा हो ,और मै दिलाने जा रहा हूँ )| काफी मशक्कत के बाद पूछते पाछते मै एक गिफ्ट कार्नर पर पहुँच ही गया | वहां तो बहुत ढेर सारे ,छोटे बड़े ,रंग बिरंगे ,कुछ बड़ी बड़ी  आँखों के ,कुछ मिची मिची आँखों वाले ,कुछ के कान खड़े ,कुछ के गिरे कान और कुछ बहुत ही प्यारे से टेडी बियर अपने अपने गले में बो-टाई बांधे, बस बिकने का इंतज़ार सा कर रहे थे | तमाम सारी प्यारी प्यारी लडकियां और कुछ महिलायें भी उन बेचारे टेडी बियर को बस निहारे जा रही थीं |वे कभी किसी एक को  उठा लेती, फिर कभी हाथ से सहलाती, कभी तो अपने गाल पर लगाती, कभी चूम सा लेती और बोल उठतीं कि कितना नरम हैं, कितना  हल्का सा है, कितना cutie cutie है| मै तो एकदम स्तब्ध खडा था और मुझे तो यह लग रहा था कि इतना प्यार अगर यह लोग इस तरह करती रहेंगी तो कहीं वे टेडी बियर जीवित ना हो जाएँ |
                 उस दिन वहां दुकान पर मुझे इस टेडी बियर के बारे काफी जानकारी प्राप्त हुई ,ज्यादातर लड़कियों ने बताया कि वे उसे अपने साथ साथ हमेशा रखती हैं और कुछ तो उसे अपने साथ बिस्तर पर ही सुलाती भी है | कोई उसे कार में ले कर चलता है तो  कोई उसे परदे पर लटका देता है | कुछ लोग तो उस नामाक़ूल शो पीस को बाकायदा सोफे या कुर्सी पर विराजित करके रखते हैं ,भले ही मेहमान को ज़मीन  पर पालथी मार कर बैठना  पड़  जाय |
                  उसी समय से मुझे  टेडी बियर से इर्ष्या तो होनी शुरू हो चुकी थी ,पर क्या करता, मै अपनी मुमताज़ को एक अदद टेडी बियर लाने का वादा जो कर चुका था| सो एक बड़ा सा टेडी बियर सावले रंग का (अपने से मिलता जुलता ) लाकर मैंने अपनी श्रीमती जी को गिफ्ट किया ,वे बहुत ही प्रसन्न हुईं | अब तक वे उसे कई बार गले लगा चुकी हैं ,उसका मुहं  कई बार प्यार से नोच चुकी हैं, और लेटेस्ट यह है कि वे उसे बिस्तर के सिराहने सजा चुकी हैं और शायद मेरा बिस्तरा कहीं  सोफे वगैरह पर लगाया जा रहा है | मै शायद गुस्से में बडबडा रहा हूँ कि, मेरें मरने के बाद मेरी खाल में भी बस  नरम नरम फोम भरवा  कर टेडी बियर ही बनवा लेना, तभी शायद तुम्हारा सामीप्य और प्यार  पा सकूँ | काश ! मै टेडी बियर ही होता |

सोमवार, 14 फ़रवरी 2011

"वैलेन्टाइन डे" या "प्यार-प्रण दिवस"

जब भी मैं होऊं रिक्त,
पूर्ण करो मुझे तुम,
और तुम्हारी शून्यता,
संगीत से भरूँ मैं |
उदासी का कैनवस,
दिखे जब कभी भी,
साथ मिल भर दें,
सारी कायनात के रंग |
जुबां से पहले,
सुन ले दिल |
आँखों से पहले,
बोल दे नज़र |
प्यार कभी ना हो आहत,
बस इतना सा ख्याल रहे |
थोड़ा खट्टा थोड़ा मीठा,
अपना यूँ  व्यवहार रहे |
"happy valentine day"

बुधवार, 9 फ़रवरी 2011

"स्वेद की बूंदें स्वर्णिम सी"

स्वेद की बूंदें,
यूँ टिकी थी माथे पर,
स्वर्णिम श्रृंगार हुआ हो जैसे|
सूरज की किरणे भी,
ढूंढ़ती हों  जैसे,
अपना बिम्ब उन्हीं  में|
हवा थी कुछ मंद सी,
और खेलती थी उन बूंदों से,
खेल लुका छिपी  का|
बनती बूंदों  को मिटाना,
फिर बनते देखना,
उन स्वर्णिम स्वेद बूंदों को|
कभी बादल भी आ जाते,
हवा के साथ और तब,
मचल सी उठती किरणे,
खोता देख अपना इन्द्रधनुष|
पर इन सबसे बेखबर,
वह तो थी मगन,
लगन से जतन से,
अपने श्रम में|
हाँ कभी कभी,
निहार लेती थी,
अपने दुधमुहे बच्चे को,
खेल जो रहा था वहीँ,
पास क्रेन की छाँव में|




सोमवार, 7 फ़रवरी 2011

"एक गुलाब ऐसा भी"

मंद मंद मुस्काई कभी,
मुस्काई कभी मन ही मन|
कभी कभी तो लजाई आँखें,
पलकें भी शरमाई कभी|
हसीं तुम्हारी यूँ लगे,
जैसे हो रस्सा-कशी,
होंठ  और कपोलों में|
घुंघराले केश तुम्हारे,
जब कभी लहरे,
बिखर  सी जाती,
खुशबू तुम्हारी |
कहीं तुम गुलाब तो नहीं ?



   

शनिवार, 5 फ़रवरी 2011

"मदिरा और मनुष्य"

                     कहानी कुछ यूँ शुरू होती है कि, बहुत पहले किसी जंगल में देवता लोग चुपचाप मदिरा का निर्माण कर रहे थे | एक बहुत बड़े से आग  के चूल्हे पर काफी  बड़े बर्तन में मदिरा पकाई जा रही थी | उस बर्तन से काफी मात्रा में धुवाँ ऊपर उठ रहा था जो कि पूरे जंगल में दूर से ही दिखाई पड़ रहा था | सबसे पहले उस पर नज़र पड़ी एक तोते की, जो उसके ऊपर से उड़ कर जा रहा था | उसने बर्तन में झाँक कर देखा कि यह तो कोई बहुत अच्छी चीज़ पक रही है और वह उसे चखने की कोशिश में उसी बर्तन में गिर गया और मर गया | कुछ देर बाद वहां से मैना गुज़र रही थी,उसने भी चखने के लालच में उसी बर्तन में मदिरा में अपने प्राण न्योछावर कर दिए |
                        यह बात पूरे जंगल में फ़ैल गई कि, एक बहुत बड़े बर्तन में किसी ख़ास पेय की तैयारी हो रही है, और यह बात जंगल के राजा शेर को भी  पता चली | वह भी वहां पंहुच गया और बर्तन के चारों ओर घूम घूम कर खुशबू लेने लगा और अंत में वह भी लालच में बर्तन के अन्दर कूद गया और अपनी जान दे बैठा | इस क्रम को आगे बढ़ाते हुए अब बारी थी सुअर की | वह भी खाने पीने का और खुशबू लेने का शौक़ीन प्राणी है ,पर विवेक तो उसमे भी नहीं था ,और मदिरा की महक का लोभ संवरण वह भी नहीं कर पाया और बर्तन में छलांग लगा कर उसने भी अपनी इहिलीला समाप्त कर डाली |
                           मदिरा तो बननी थी सो वह बन कर तैयार हो चुकी थी पर देवताओं के लिए वह अशुद्ध हो चुकी थी |अतः देवताओं ने उस मदिरा को मानव जाति के लिए छोड़ दिया और तभी से मनुष्य मदिरा का सेवन करने लगा | मदिरा का पहला प्याला पीते ही मनुष्य तोते की तरह टायं टायं करने लगता है (वैसे चाहे वह कतई गूंगा हो ) ,दूसरा प्याला हलक के नीचे जाते ही वह मैना की तर्ज़ पर मै-ना, मै-ना करने लगता है और अपने बारे में बताने लगता है की मैंने यह किया ,मैंने वह किया ,मैंने कितनी बार बादल में छेद किया, मै ना होता तो जैसे आसमान टूट पड़ता | तीसरे प्याले के बाद तो उसे फिर शेर होना ही है ,कि कौन ठहर पायेगा मेरे सामने ,मै उसे गोली से उड़ा दूँगा,देखते है किसमे कितना है दम | भले ही वह डेढ़ हड्डी का आदमी हो ,पर उस समय उससे ताकतवर कोई नहीं हो सकता |अब अगर कही उसने चौथा प्याला मदिरा का पी लिया, फिर तो उसे सुअर समझिये ,उसको अपनी ही की हुई  गन्दगी में लोटने में मजा आयेगा ,अगर कोई उसकी मदद कर उसे वहां से हटाना भी चाहेगा तब भी नही हटेगा और अपने ही मल-मूत्र में पड़े पड़े आनंदित होता रहेगा |
                                अतः सिद्ध हुआ कि मदिरा पान के बाद मनुष्य द्वारा किये गए व्यवहार के लिए मदिरा ही दोषी है, इसमें मनुष्य का कोई दोष नहीं है | 

बुधवार, 2 फ़रवरी 2011

यूँ ही बस बीत गए ’ब्याह’ के इतने बरस

                       "दुल्हनियां  तो बहुत सुन्दर है" यह सुनने का सिलसिला जो मंडप से शुरू हुआ था ,वह घर वापस बारात लौटने तक रास्ते भर चलता रहा था | रास्ते भर मै तुम्हे कनखियों से देखता और लोगों की बातों से मेल कराने की कोशिश करता कि उनकी बातों में सत्य का प्रतिशत कितना है ,पर चूँकि कार तुम्हारा  देवर  चला रहा था ,वह भी रियर व्यू मिरर में पूरी नज़र मुझी पर रखे था कि, मैं कितना संयम बरत रहा हूँ, सो अपने आंकलन में सफल नहीं हो पा रहा था | मुझे घूँघट की ओट से निकलती तुम्हारी नाक और उस पर झूलती नथ और हाथों की दसों उंगलियाँ आपस में उलझी हुई गोद पर रखी,  आज भी याद हैं | तुम्हारा सुबकना बार बार मुझे अपराध बोध सा करा रहा था कि, जैसे मैंने तुम्हे रुलाने का पाप किया हो, पर दूसरे ही पल किसी ज्ञानी की तरह ज्ञान प्राप्त होने लगता कि यह तो दुनिया का दस्तूर है ,हाँ मन ही मन यह जरूर कई बार प्रण कर रहा था की, कोशिश मेरी यही होगी कि ये आंसू तुम्हारे आखिरी आंसू हों |
                       घर पहुँचने के बाद सारे रीति -रिवाज़ संपन्न होते होते बहुत देर भी हो गई थी,सच कहे तो ऊब भी गए थे और थक भी | और फिर देर शाम मेरा प्रथम परिचय हुआ था तुम्हारे सौन्दर्य से | 
                         बहू  को ससुराल में कितना भी प्यार  मिले, पर उसे अपने माएके में मिले दुलार से सदा वह कम ही लगता है और इसी के साथ  शुरुआत होती है, माएका और ससुराल में मिलने वाले माहौल और कम्फर्ट के  नापतौल की |  मै तो उस समय बहुत असहज सा रहा हूंगा  क्योंकि अचानक तुमसे मिले सामीप्य और प्यार के लिबास में एकाधिकार की मादकता में चौबीसों घंटों डूबा ही  रहता था ,कुछ हद तक ठीक भी रहा होगा शायद | क्योंकि किसी को बुरा लगा हो ऐसा किसी ने एहसास भी नहीं कराया कभी | धीर धीरे समय बीतने लगा और अब तो खटर-पटर भी होनी  शुरू हो गई  थी, जो संकेत था सफल वैवाहिक जीवन की शुरुआत का |
                         इतने बरस हो गए ब्याह को ,पर आज तक जो भी खटर पटर हुई ,सदा दूसरों के व्यवहार को लेकर ही हुई |ना मुझे तुमसे कोई शिकायत ना तुम्हे मुझसे कोई शिकवा ,पर यह दूसरे ही हमेशा तुम्हारे लिए उत्प्रेरक का काम करते रहे |इसका कारण आज तक मै नहीं समझ पाया| खैर, पता नहीं हम लोगों ने कभी कौन सा पुण्य किया था, जो हम लोगों को इतने प्यारे प्यारे दो बच्चे ईश्वर ने नवाजे और उसके बाद तुम्हारी दुनिया तो बस उनके इर्द गिर्द कसती चली गई | एक इत्तिफाक और रहा कि , भले ही तमाम मसलों में हम लोग एकराय ना रहे हों या झगड़ भी गए हों पर बच्चों की परवरिश में जैसे हम तुम एक दूसरे का ही अक्स रहे हों ,और आज उसी का नतीजा है कि  दोनों बेटे देश के सर्वोच्च संस्थान में अध्धयन रत  हैं | ईश्वर की इससे बड़ी कृपा हम लोगों  पर और कुछ  नहीं हो सकती ,बस यही प्रार्थना है उस प्रभु से, बस ऐसे ही हमें संजोए रहें |
                           ब्याह की सालगिरह पर पीछे का सब कुछ याद सा आने लगता है ,कुछ रिश्ते हमसे छूट भी गए ,और कुछ रूठ भी गए, ना चाहते हुए | पर सबका अपना अपना नजरिया है, जिंदगी जीने का भी, और निभाने का भी |
                           लोगों को ताज्जुब होता ही कि यार तुम लोगों को इतने बरस हो गए ब्याह के, पर लगता नहीं ,इसका शायद एक ही कारण है कि हम लोग हमेशा दोस्त की ही तरह रहे ,ज्यादातर कोशिश समय साथ बिताने की ही रही ,आपसी रिश्ते को हर दूसरे रिश्ते से ज्यादा महत्त्व दिया ,चाहे वह कोई भी रहा हो|
                             पीछे मुड़कर देखने पर वो कठिन  रास्ते भी बहुत अच्छे लगते हैं ,कोई शिकवा नहीं जिंदगी से | तुम्हारा साथ क्या मिला, लगता है कि, मेरी झोली ही छोटी पड़ गई ,खुशियाँ समेटने में |
                             ०३ फरवरी १९८८ को मेरी जिंदगी में पहली बार कोई लड़की आई थी और वह तुम थीं |आज हमारे ब्याह को २३ बरस हो गए ,पर सच में लगता है जैसे अभी कल ही की  बात हो |