मुझे शिक्षण कार्य को करते हुए लगभग तीस वर्ष हो गए | एक किस्सा अक्सर याद आ जाता है | मेरी कक्षा में तीन विद्यार्थी अत्यंत मेधावी थे | तीनो ही अपने विषयों को भलीभांति पढ़ते एवं समझते थे | प्रदेश स्तर पर उनके द्वारा रैंक प्राप्त करने की संभावनाओं को देखते हुए उन्हें मैंने अपने घर पर अलग से थोड़ा समय देना प्रारम्भ कर दिया | परिणाम अच्छा रहा , उनके द्वारा अच्छी रैंक प्राप्त करने की सम्भावना प्रबल होती गई |
तीनो विद्यार्थी प्रतिदिन मुझे हाथ जोड़कर प्रणाम करते थे | अचानक से एक दिन उनमे से एक विद्यार्थी ने मेरे चरण स्पर्श कर लिए | मुझे थोड़ा आश्चर्य हुआ | धीरे धीरे उस विद्यार्थी की यह प्रतिदिन की आदत हो गई |
अब प्रतिदिन वो एक अकेला विद्यार्थी चरण स्पर्श करता जबकि अन्य दोनों विद्यार्थी हाथ जोड़कर नमस्कार करते थे | चरण स्पर्श करना उसका मुझे कुछ यूँ अच्छा लगने लगा कि अचानक से अन्य दोनों विद्यार्थी मुझे बद्तमीज लगने लगे |
यही व्यक्ति की आंतरिक कमजोरी होती है |
---एक शिक्षक के मुख से |