सोमवार, 25 मार्च 2013

"होली की हार्दिक शुभकामनायें..........."



संग ले दोस्तों की टोली ,
निकले हम खेलने होली ,
कोई बड़ा कोई था छोटा ,
पर लगे सभी हमजोली ,
खूब रंगा सबको हमने ,
हमारी भी हुई खूब धुलाई ,

उड़ा जब खूब ,
पीला अबीर ,
लाल गुलाल ,
देखते बनती थी ,
सबकी चाल ,

मन में उमंग थी ,
भांग की तरंग थी ,
गरम मिजाज़ ,
थोड़ा नाराज़ हुए ,
नरम मिजाज़ ,
शर्म से लाल हुए ,

शाम ढलते ढलते ,
रंग तो उतर गया ,
मन गुझिया गुझिया हो गया ,
और प्यार ऐसा चढ़ गया ,
अब दिल बस यही बोले ,
होली हर दिन क्यों न हो ली ।

"होली की हार्दिक शुभकामनायें "

गुरुवार, 21 मार्च 2013

"कविता दिवस ................"


दस्तूर निभाना है ,
कविता लिखना है ,
सुबह से शाम हुई ,
कविता न तैयार हुई ।

तैरते ख्याल ,
न जाने डूबे कहाँ ,
टटोला दिल को ,
रूठ कर बोला ।

कभी लिख पाए हो ,
यूँ अकेले तुम,
जरा तसव्वुर में ,
'उन्हें' आने दो ,
फिर अपनी कलम,
बह जाने दो ।

बेख्याली में ख्याल,
जब उनका आया ,
खुद को कविता,
में लिपटा पाया  ।

अब कविता न अधूरी थी  ,
भर उठी खुशबू से पूरी थी ,
पायल सी वह बजने लगी ,
बोल वह गुनगुन करने लगी ।

अब कविता ,
में जान थी ,
या मेरी 'जान' ,
कविता में थी  । 


सोमवार, 18 मार्च 2013

" रात का एक पहर ,आँखों में ........."



रात सो रही है ,
पर नींद जाग रही है ,


ख़्वाब बुन रहे हैं ,
पर ख्याल उधड़ रहे हैं ,

कोई रात को जगा कर ,
मेरी नींद को सुला दे ,

पलकों में जाने कितने ,
बोझ पल रहे हैं ,
जब दुनिया जागती होगी,
सो जायेंगे एक दिन हम ,
पुकारा करेंगे 'वो' सब ,
न मुस्करायेंगे हम ।

मंगलवार, 12 मार्च 2013

" वह काला तिल .........."


नई नई मुलाकात थी ,
मुलाकात क्या बस बात थी ,
कहना उनका  ,लिखते तो अच्छा हो ,
मैंने कहा तुमने पढ़ा शायद ,
कमबख्त लिखा खुद संवर गया ,

बात चल निकली तनिक और खिंच गई ,
उनको था शौक मुस्कराने का  ,
बोले मेरे हंसने की भी अदा है ,
मैंने कहा ,मुझे क्या पता है ,

झट तस्वीर भेज दी ,
अवाक रह गया मैं ,
खूबसूरत होना एक बात है ,
पर इत्ता खूबसूरत होना ,अलग बात है ,

गौर किया तो एक काला तिल  ,
वह भी गोरे से गाल पर ,
गोया भँवरा हो ,
चांदनी के फूल पर ,

टटोला मैंने ,
इस तिल पर दिल ,
तो बहुत मिटे होंगे ,
'ऊहूँ' कर बोले मुझे क्या ,

अब मैं मान गया ,
खूबसूरत होना ,
और नकचढ़ा होना ,
दोनों एक ही बात है ,

अब आँखें खोलता हूँ ,
तस्वीर सताती है ,
मूंद लेता हूँ तब ,
वह कमबख्त तिल ,
तिल तिल सताता है ।

  इसीलिए ठीक कहा हैं किसी ने ,

"हसीनों से फकत साहब सलामत दूर की अच्छी , न इनकी दोस्ती अच्छी ,न इनकी दुश्मनी अच्छी "



रविवार, 10 मार्च 2013

'बम बम ' नाम एक यादों भरा ........'


कालेज और हास्टल के जीवन में अक्सर कुछ छात्रों और शिक्षकों के 'निक नेम' अथवा 'पेट नाम' प्रसिद्द हो जाते हैं और यह नाम इतना प्रचलित हो जाता है कि लोग मूल नाम जानते ही नहीं । खुशकिस्मत होते हैं वे लोग, जिन्हें ऐसे 'निक नेम' मिलते हैं क्योंकि पूरे बैच में ४ / ६ से अधिक लोगों को यह हासिल नहीं होता ।

उन्हीं खुशकिस्मत लोगों में से मैं भी हुआ करता था ,इंजीनियरिंग कालेज ,इलाहाबाद में । फर्स्ट इयर में मैं इतना सरल और मठ्ठर था कि सीनियर्स मेरी रैगिंग मेरे बैच के छात्रों से ही करवा देते थे । सच बात यह थी कि मैंने कभी पहचानने का प्रयास ही नहीं किया कि कौन सामने है ,बस जो कोई बोले करते रहो, एकदम भारतीय नारी की तरह ,विवाह के बाद ।

उस समय छात्रों के दो गुटों के बीच ( एक जाट ग्रुप और दूसरा बिहारी ग्रुप ) जमकर संघर्ष हुआ करता था । खूब बम कट्टे चले थे । मैं भी अक्सर खूब बम वम की बात करता था । मेरे बैच से ही इंद्र अवस्थी था ,जो हास्टल में मेरी ही विंग में पड़ा रहता भी था और सीनियर्स ( अनूप शुक्ला / फुरसतिया टाइप सीनियर्स ) में लोकप्रिय भी बहुत था । उसने मुझसे बातचीत के दौरान कभी बम वम की बात सुन ली होगी तबसे अक्सर वह मुझे ' बम बम 'कहने लगा । धीरे धीरे यह 'निक नेम' फैलने लगा । बात मेरी विंग से बाहर निकली और अब मैं अमित से हटकर 'बम बम' हो चुका था । मेरे बैच में मेरे ही नाम का एक और अमित था अतः दोनों में फर्क करने में भी अब लोगो को आसान हो गया । लोग खुले आम मुझे 'बम बम' कहने लगे ।

एक वर्ष बीत गया । जूनियर बैच आया । हद तो तब होने लगी जब कोई भी जूनियर जब मिलता तब कहता 'गुड मार्निंग बम बम सर' ,यह सारी खुराफात इंद्र अवस्थी और हाँ बिनोद गुप्ता ( मेरा विंगी और गहरा दोस्त ) की होती थी । शुरू शुरू में तो अजीब सा लगता था परन्तु धीरे धीरे मैं खुद ही अपना मूल नाम भूल गया और जूनियर्स को अपना नाम 'बम बम' बताने लगा । 

चूंकि 'बम बम' बोलना तनिक लयात्मक है तो बिजली वगैरह जाने पर पूरी लय से इसी नाम को गालियाँ भी मिलती थीं । उस समय के चारों हास्टलों में शायद ही कोई होगा जो 'बम बम' को न जानता हो भले ही मुझे न पहचानता हो ।

यहाँ तक कि मेस के कर्मचारी भी आपस में बात करते थे कि 'बम बम' साहब बैठे हैं खाना लगाओ । दरअसल मैंने मेस भी चलाई थी हास्टल में ( वहां मेस हम छात्रों में से ही कोई मैनेजर बन कर मैनेज करता था ) ,दूसरी मेस के लोग अक्सर कहते पाए जाते थे ,'बम बम' की मेस में खा लो अच्छा खाना बना है आज ।

बात यहाँ अभी ख़त्म नहीं हुई । कालेज से निकलने के बाद मेरी शादी जैसे अति पावन अवसर पर मेरे चिरकुट दोस्त मेरे घर आये और निवेदिता ( मेरी पत्नी ) को भी इस नाम से वाकिफ करा दिया । पहले तो वह खूब हंसी ,यह कैसा नाम है ,पर नाम इतना लयात्मक था कि मजा उनको भी आने लगा । अब मैं उनका भी 'बम बम' हो चुका था ।

बात अभी भी ख़त्म नहीं हुई । जब कभी दोस्तों से बात होती तो वे हाल चाल लेते और मेरे बच्चों से बातचीत में उन्हें भी मेरा नाम यही बता दिया । अब दोनों बच्चे भी कभी कभार यही कहकर आनंद लेते हैं और सच तो यह है 'बम बम ' सुनते ही मुझे भी अपने पुराने दिन जिगरी यारों के बीच गुजारे याद आ जाते हैं । 

आज फ़ुरसतिया ने अपने फेसबुक स्टेटस से मुझे याद दिलाते हुए इस नाम पर लिखने को मजबूर कर दिया ।


                           (शिवरात्रि वाले बम बम भोले से इसका कोई लेना देना नहीं )

शनिवार, 9 मार्च 2013

" खरोचें................."


खरोचें आ गईं ,
जिस्म पे मेरे,
ललक में ,
खुशबू पाने की ।

खुशबूज़दा ,
कुछ यूँ हुए ,
कि काँटों को ,
ही मसलते रहे ।

लहू जब ,
रिसने लगा ,
जिस्म से,
समझे यही दस्तूर है ।

खरोचें नहीं दस्तख़त हैं,
ख़ुशबू के उनकी ,
नही उनका,
कोई कसूर है।

बुधवार, 6 मार्च 2013

" सच " का सच ..............."


चाय कैसी बनी है ,सवेरे का पहला सवाल ? मेरा सच भरा जवाब , थोड़ी मीठी ज्यादा है । उधर से आवाज़ आई , चीनी तो रोज़ ही इतनी डालती हूँ ,आज ज्यादा मीठी क्यों लग रही है ! क्या कहूँ ,रोज़ झूठ बोल देता था , आज सच बोल दिया ।

अच्छी चाय पीनी है तो बनालो अपने आप और मुझे भी पिलाओ और सिखाओ अच्छी चाय कैसे बनती है , तमतमाया हुआ डायलाग था यह, उधर से । हो गई मेरे दिन की शुरुआत 'एक कप सच' के साथ ।

फूल लेकर उतर रहा था ,सीढियों से नीचे कि , आवाज़ सुनाई पड़ी ,हाथ तो धो लिए थे ,फूल तोड़ने से पहले ? मैंने सच कह दिया , नहीं ,हाथ तो नहीं धोये थे क्योंकि हाथ तो मेरे गंदे हुए ही नहीं अभी सवेरे से, सो हाथों को क्यों धोना । ठीक है फिर फूलों को भगवान् के पास मत रखियेगा ,मै दूसरे  तोड़ लाऊँगी ,आप के बस का कुछ नहीं । वही अगर रोज़ की तरह झूठ बोलकर 'हाँ' बोल दिया होता तो सब ठीक होता । परन्तु मेरी तो आज मति मारी गई थी जो सच बोलने का संकल्प ले रखा था।

आफिस के लिए निकलते निकलते फरमान मिला ,शाम को जल्दी आइयेगा ,रजनी ( उनकी एक सहेली ) के यहाँ चलना हैं ,उनकी बेटी का सेलेक्शन हो गया है एम.बी.ए. के लिए ,सो बधाई देने के लिए । मैंने सच कह दिया ,मैं नहीं आ पाउँगा एक मीटिंग है ( वैसे रोज की तरह कह सकता था कोशिश करूंगा ,यह जानते हुए भी कि आ नहीं सकूँगा ) ,नतीजा बिना हाय बाय के विदाई और गेट का एक जोर की आवाज़ के साथ बंद होना ....भड़ाक ...।

आफिस झुंझलाते हुए पहुंचा ( जब भी मन से 'हाय बाय' नहीं मिलती तब आफिस जाने में रास्ते भर मन खिन्न रहता है ) । वहां तमाम लोग प्रतीक्षा कर रहे थे । किसी को अपने बिजली के बिल के गलत होने की शिकायत थी , कोई बिजली चोरी में पकड़ा गया था ,कोई नया कनेक्शन न मिलने की शिकायत कर रहा था । सभी को सुनने के बाद मैंने सच सच बता दिया कि  उनका काम तत्काल हो सकने वाला नहीं है और गलत काम में जयादा मदद भी नहीं हो सकती ( अक्सर ऐसे मौकों पर मैं झूठी दिलासा देकर टाल  जाता हूँ कि  देखेंगे ,कोशिश करेंगे ) ।मेरा जवाब सुनते ही ज्यादातर लोग भड़क गए । कोई किसी माननीय विधायक से बात करने को कहता ,कोई किसी मंत्री जी के हवाले से जोर डालने लगता ,कोई कहता आप तो बिलकुल सुनते ही नहीं किसी की, और साफ़ साफ़ मना कैसे कर देते हैं आप । न करना हो, न करिए परन्तु ऐसे सच में कोई इनकार नहीं करता । अनेक लोगों ने अपने मोबाइल से तमाम सिफारिशी लोगों से बात भी कराई । जब मैंने सच सच बयान करते हुए उनके काम न हो पाने के सही वैधानिक कारण बताये ,तब उधर से उसी फोन पर मुझसे कहा गया ,अरे न हो पाए तो न करना पर इन्हें मना मत करिए । कुछ आश्वासन देकर टाल  दीजिये ,यह  सब नेता जी के क्षेत्र के आदमी हैं।

इतना सब होते होते २ घंटे व्यतीत हो गए । तभी मेरी एक स्टाफ आई और आते ही बोली ,सारी सर , आज मैं लेट हो गई , असल में बच्चों के स्कूल में पी टी एम थी । मैंने कहा , आप तो रोज लेट आती हैं ( अमूमन मैं चुप रहता हूँ और तुरंत तो कभी नहीं डांटता अपने स्टाफ को ), इतना सुनते ही वह अपना मुंह लटकाए हुए वहां से ऐसे चली गई ,जैसे कोई महिला मेक अप करा कर पार्लर से निकले और आप उससे कह दो ,कुछ दिनों से बीमार चल रही हो क्या !

शाम को बॉस ने पूछा और अमित क्या चल रहा है ,फील्ड में लोग खुश तो हैं मेरी (बास की ) वर्किंग से । मैंने छूटते ही सच कह दिया , नहीं सर , आप थोड़ा हार्श कम हुआ करिए , नहीं तो किसी दिन कोई आफिसर रीटेलियेट कर सकता है ,तब आपकी पोजीशन आकवर्ड हो जाएगी । इतना सुनकर बॉस का चेहरा लाल हो गया और मुझसे बोले ,चलो ठीक है अब घर चला जाए । शायद उन्हें भी मेरा सच जंचा नहीं ।

अभी अभी आवाज़ आ रही है , ब्लागिंग कर रहे हैं क्या ,पहले खाना खा लीजिये ,मैं वेट कर रही हूँ । मैं जोर से झूठ बोल रहा हूँ ,नहीं आफिस की मेल देख रहा हूँ । सच का साथ छोड़ कर झूठ बोलकर अगले दिन की अच्छी शुरूआत करने की तैयारी आज की रात से कर रहा हूँ ।

यह सच है कि सच में सच बोलना सबसे बड़ा झूठ है ।