साइकिल दीवार के सहारे खड़ी कर जैसे ही मै जीने पर पाँव रखता ,उसका छोटा भाई चिल्ला उठता ,दीदी तुम्हारे 'सर' आ गए । प्रारम्भ में मुझे केवल उस लड़की को पढ़ाने के लिए ही रखा गया था, पर एक दो माह बाद उनकी मम्मी और उनके नाना जी को मै कुछ ज्यादा ही भा गया था । अतः उसके भाई को भी पढाने की जिम्मेदारी मुझे मिल गई थी । पारिश्रमिक के तौर पर मुझे १०० या १५० रुपये मिलते थे, जो मेरे लिए अच्छा खासा मायने रखते थे । वो लड़की बहुत ही शरारती थी और चंचलता तो उसमें कूट कूट कर व्याप्त थी । भाई उसका छोटा था पर शैतानी में अपनी बहन का साथ बखूबी देता था ।मै स्वयं में बहुत गंभीर रह उन दोनों को पढाता था । मै स्वयं उस समय कक्षा १२ का छात्र था ।वे दोनों शायद कक्षा ९ और ८ में रहे होंगे ।मेरे लिए प्रतिदिन उन्हें पढ़ाने जाना मेरे लिए एक अच्छा खासा घबराहट भरा अनुभव हुआ करता था। बीच बीच में उन दोनों के नाना जी आकर चुपचाप मेरी पढ़ाने की शैली देखते और मुझे अत्यंत प्रोत्साहित भी करते थे । मूलतः वो परिवार व्यापार एवं कारोबार से सम्बन्ध रखता था । उनके ड्राइंग रूम में एक बड़ी सी आराम कुर्सी रखी होती थी ,जिसके बारे में वे लोग गर्व से बताया करते थे कि कभी जवाहर लाल नेहरु जी उनके इलाके में किसी सिलसिले में जब आये थे तब उसी पर बैठे थे । उनकी मम्मी भी मेरे लिए चाय अवश्य बनाती थी पर जब मेरा पढ़ाने का एक घंटा पूरा हो जाया करता था ,तभी लेकर आती थी । इसी बहाने मुझे १५ मिनट और पढ़ाने पड़ते थे । शायद यह उनके व्यापार का तजुर्बा था ।
उस लड़की से मेरी पहली मुलाक़ात इस तरह हुई थी।
शायद मैंने एक दो बरस पढ़ाया होगा । फिर मुझसे वो शहर छूट गया ।
इसके बाद मैंने इंजीनियरिंग की पढ़ाई की और बिजली विभाग की नौकरी में आ गया । नौकरी के ५/६ वर्ष पूरे करने के बाद मेरी तैनाती पहाड़ों पर उत्तरकाशी जिले में हुई । एक दिन वहीं उत्तरकाशी में अचानक शाम को मैंने उसी लड़की को मोटरसाइकिल पर किसी के साथ बैठे देखा । मुझसे रहा न गया । मैंने आवाज लगा कर रोका ,वो भी देखकर चौक गई ।उसके साथ उसके पति थे, जो मेरे ही विभाग में मेरे कलीग थे ,पर मुझसे पहले से परिचित न थे ।
लगभग १० वर्षों बाद ,यह उस लड़की से मेरी दूसरी मुलाक़ात थी ।
फिर वो मेरे घर आई ,मेरी श्रीमती जी से मिली । मैंने देखा उसकी चंचलता में अब तक कोई कमी न आई थी । वो पहले से और ज्यादा शैतान सी हो गई थी ।
दो वर्षों बाद मेरा वहां से स्थानान्तरण अन्यत्र हो गया । एक दिन अचानक खबर मिली कि, उस लड़की के पति की सड़क दुर्घटना में मृत्यु हो गई । वे उत्तरकाशी से बाइक से हरिद्वार जा रहे थे और रास्ते में दुर्घटना हो गई ।कितना स्तब्ध और जड़वत हो गया था मै ,यह समाचार सुनकर । उसकी चंचलता और उसके वैधव्य में बस हिसाब किताब करता रह गया था कि,ईश्वर का यह कैसा कारोबार है । खैर ,फिर कभी मुलाक़ात का प्रश्न भी नहीं था। बहुत दिनों बाद यह अवश्य पता चला था कि उस लड़की को मेरे ही विभाग में अनुकम्पा के तौर पर नौकरी मिल गई है ,पर उसकी तैनाती कहाँ है ,यह ज्ञात नहीं था और सच तो यह है कि जानने का भी प्रयास नहीं किया था ।
आज दिनांक ३०.१.१२ को मै अपने ही विभाग की एक अन्य यूनिट में गया ।मै अपने दोस्त के कक्ष में बैठा बातचीत कर रहा था ,तभी वहां हाथ में फ़ाइल लिए एक महिला आई । उसे देखते ही लगभग २० वर्षों पहले का चेहरा याद आ गया । यह वही लड़की थी ।
यह मेरी उस लड़की से तीसरी मुलाक़ात थी ।
मेरी समझ में नहीं आ रहा था कि उससे बात का सिलसिला कहाँ से शुरू करूं । पर अबतक शायद जीवन के झंझावात से वो बहुत कुछ सीख और समझ चुकी थी ,फ़ौरन बोल पड़ी कि आपको तो पता होगा कि मेरे हसबैंड की डेथ हो गई थी ,उन्ही की जगह पर जॉब मिल गई है और अब मैंने दूसरी शादी कर ली है ।
मेरे सामने अभी भी उसके बचपन का चंचल चेहरा कौंध रहा था । जल्दी से मैंने औपचारिकता वश मोबाइल नंबरों का आदान प्रदान किया और अपने दोस्त से जल्दी उठने का बहाना कर चाय पिए बगैर वापस अपने कार्यालय आ गया ।
आज दिन भर सोचता रहा कि उस लड़की ने तो तीन दशक में तीन जनम जी लिए, शायद ।