आज कार्यालय में पहुँचते ही खबर मिली ,गिरजाशंकर की मृत्यु हो गई | स्तब्ध सा रह गया मै | केवल आठ दिन पूर्व ही उसकी माँ की मृत्यु हुई थी और वो इसी सिलसिले में अपने गाँव गया हुआ था | वँही दिल का दौरा पड़ने से उसकी मृत्यु हो गई |
एक चपरासी किसी कार्यालय के लिए क्या मायने रखता है ? उसके रहने या ना रहने से ज्यादा कुछ फर्क नहीं पड़ता | पर गिरजाशंकर केवल एक चपरासी भर नहीं था | उसे देखते ही नीबू की चाय जैसी ताजगी दिमाग में आ जाती थी और एक सुखद इच्छा मन में प्रबल हो उठती थी कि बस अब नीबू की चाय आने वाली है | इतने स्नेह से वह चाय बना कर लाता भी था और ठंडी होने से पहले पीने को विवश भी कर जाता था | उसके चेहरे पर कभी भी कोई अवसाद नहीं दिखता था | छोटे से स्थान को उसने अपना एक पूजा स्थान , भण्डार और किचेन सब बना रखा था |
उसे तो जैसे इस बात की ललक रहती थी कि ,साहब लोगों को क्या खिलाया जाय ,कभी परिसर में ही लगे अमरुद तोड़ लिए, कभी बाज़ार से केले ,अमरुद खरीद लिए और वो उन्हें इतने सलीके और प्यार से काट कर सामने रखता था कि चाह कर भी मना करना मुश्किल होता था | कभी लंच के समय अगर कोई व्यक्ति मिलने आ जाता था या पहले से बैठा है और जल्दी जा नहीं रहा होता था ,तब वो बड़े सादगी से उनसे कह देता था ,अब आप जाए, साहब के खाना खाने का टाइम हो गया है |
अभी कुछ ही दिन पहले उसने एक छोटी सी भगवान् की तस्वीर ला कर मेरी मेज़ के शीशे के नीचे लगा दी थी | अत्यंत धार्मिक प्रवृत्ति का शख्स था वह |
अत्यंत कम वेतन पाते हुए भी और छोटे पद पर काम करते हुए भी उसने अपने बच्चों को अपनी सामर्थ्य से कहीं अधिक सुविधा मुहय्या कराई और अच्छी शिक्षा भी दिलाने का प्रयास कर रहा था | उसके परिवार को देखकर आज उसके मन की भावनाओं का भान हुआ और उसके प्रति सम्मान उमड़ पड़ रहा है | नौकरी में इतने वर्ष रहते हुए ,पहले कभी किसी कर्मचारी की मृत्यु से इतना आह़त नहीं महसूस किया ,जितना आज गिरजा शंकर के ना रहने से महसूस कर रहा हूँ |
ईश्वर से बस यही प्रार्थना है कि उस परिवार को एक साथ दो लोगों की मृत्यु से उपजे दुःख को सहन करने की शक्ति और मृत आत्माओ को शान्ति प्रदान करें |