अक्षरों का समूह ’शब्द’ और शब्दों का विन्यास 'भावनायें' ,पर कभी शब्दों की भावनाओं को समझने का प्रयास नही किया गया। ’शब्द’ भी प्रयुक्त होने से पहले सच्चे पात्र की ही तलाश मे रहते हैं,पर उन्हें यह स्वतंत्रता कहाँ? झूठे आदमी के मुंह से ’सच’ शब्द निकलने में लज्जित एवं अपमानित महसूस करता है ।
सच्चाई,ईमानदारी,निष्ठा,देशप्रेम,मानवता, ये सारे शब्द सदैव भयभीत रहतें हैं कि, जब भी इनका प्रयोग होगा ,कुपात्र से ही होगा और उन्हे बलात अपनी भावनाओं के विपरीत कसमसाते हुये अपने अल्प कालिक जीवन से समझौता करते हुए मरने के लिये निकलना होगा,क्योंकि जब शब्द सुपात्र से निकलते हैं,तभी वे दीर्घायु होते हैं अन्यथा पैदा होते ही मर जाते हैं।
कहते हैं बच्चे बिल्कुल अबोध और सच्चे होते है,इसीलिये सारे ’शब्द’ भी बच्चों के मुख से निकलने के लिये ही जैसे होड़ मे रहते है और इसी होड़ मे बच्चों की तोतली भाषा का आनन्द ’शब्द’ भी लेते हैं। ’मां’ शब्द तो जैसे बेचैन रहता है बच्चों के मुहं मे ही रहने के लिये। इसीलिये सबसे अधिक दीर्घायु शब्द है ’माँ ’। अगर शब्दों को अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता मिल जाये तब शायद सारे नेता,समाज के ठेकेदार गूंगे से ही हो जाएंगे और देश पर बच्चों की ही तोतली भाषा का राज होगा,और निश्चित ही वह एक सुखद अनुभूति होगी।