हैशटैग सा ,
हो गई थी तुम ,
प्रसंग होता मैं ,
सन्दर्भ रहती तुम ।
सूखे पत्ते हों या,
हो कटी पतंग ,
उन्हें कोई अब
हैशटैग नहीं करता ।
बालकनी पे खुलते ,
खिड़की के वो पल्ले ,
जैसे हो एक जोड़ी ,
निगाहें तुम्हारी ।
स्मृतियाँ नहीं ,
बनती मञ्जूषा ,
जानता अगर ,
तो क्यों सहेजता ।