शुक्रवार, 31 जुलाई 2020

खलिश ....

नींद का क्या है जब आएगी तब आएगी,
ख्वाब तो उनके तस्व्वुर का पलकों पे है।

जान का क्या है जब जाएगी तब जाएगी,
खयाल तो एक शाम उनका होने का है।

उसूलों की बात जब होगी तब होगी,
रिवाज़ तो अभी मोहब्बत निभाने का है।

नाम उनकी जुबां पे जब होगा तब होगा,
हिचकी मेरे ख़्याल से रुकती तो होगी।

खुदा का ज़िक्र जब होगा तब होगा,
इबादत में बस मुराद उनकी ही होगी।

गुफ़्तगू उनसे जब हो न जाने कब हो,
अभी सिलसिले दरमियां निगाहों के हैं।

तसदीक मोहब्बत की ही होगी जब होगी,
लबों पे किस्से अभी तलक गुनाहों के है।

© अमित

(पिछली पोस्ट को विस्तार देते हुए)

मंगलवार, 14 जुलाई 2020

रसीदी टिकट....



उसकी हरेक धड़कन सुनता गया और उसकी हथेली पर रसीदी टिकट रखकर दस्तख़त कर दिया।

ताकि सनद रहे और वक़्त ज़रूरत काम आए।

जमाना ही अब लेन देन का हो चला है।

बुधवार, 1 जुलाई 2020

मंजिल.....



मकान ऊँचा था ,
इंसान इतराया,
वक्त भी बौना लगा ।

वक्त रीता ,
रीता रेत भी ,
आसमान मुस्कुराया ।

वक्त फिसल गया,
हाथ छूट गया,
इंसान बौना रह गया ।

सीमेंट रेत सरिया,
खुद मजबूत नहीं होते,
वक्त ही निभाता इन्हें ।

वक्त गर मजबूत ,
झोपड़ी को भी हासिल हुनर ,
पनाह का महलों को।

©अमित

सैलाब .....

बारिश
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बादल जब सागर का समर्पण संजोते संजोते थक जाते हैं और हवाएं भी साथ नही देती तो बारिश बन फना हो जाते हैं।

आँसू
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लम्हे जब घूंट घूंट तन्हाई पीते रहते हैं और यादें भी साथ नही देतीं तो आंसू बन घुल जाते हैं।

सैलाब
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जब बारिश और आंसू साथ साथ आ जाये तो सैलाब आता है।