शुक्रवार, 31 जनवरी 2014

" इंडियन पॉलिटिशियन लीग (आई पी एल)--२०१४ ......"


क्रिकेट का खेल पहले 'जेंटलमेंस गेम' कहलाता था । शाही लोग खेलते थे और देख कर आनंद लेने वाले भी शाही ही होते थे । किसी निर्णय के विवाद की स्थिति में अम्पायर की भूमिका कभी भी संदिग्ध नहीं मानी जाती थी । तब यह खेल एक शौक भर था और बहुत 'एटिकेट' और औपचारिकताओं के साथ खेल जाता था ।

आज की स्थिति कुछ ऐसी है कि खिलाडियों की नीलामी हो रही है । जिसके जितने अधिक दाम उसके उतने वैसे तेवर या कहें जैसे तेवर वैसे दाम या फिर जितना दम उतना दाम । अम्पायर पर किसी को भरोसा नहीं ,उसकी ऐसी तैसी करने को थर्ड अम्पायर और चैलेन्ज किये जाने का नियम । चौकों / छक्कों पर पैसों की बारिश ,सट्टेबाजी से लेकर मैच फिक्सिंग तक पैसा ही पैसा । इस पैसों की बारिश का आनंद आईपीएल ने और बढ़ा दिया ,कई नामचीन लोग टीमों के मालिक बन गए ,खरीद लिया खिलाडियों को घोड़ों की तरह और उन्हें रेस में दौड़ा कर खूब पैसा कमाने में लग गए । जो घोडा धड़ाम से गिरा उसके भाव भी अगली बार गिर गए । खिलाडियों की रेटिंग बन गई। 'शेयर मार्केट' की तरह 'प्राइसिंग' हो गई , मजे ही मजे हो गए घोड़ों के भी और उनके मालिकों के भी । जबकि इन मालिकों का क्रिकेट के खेल से दूर दूर तक कोई वास्ता नहीं ।

राजनीति में भी आईपीएल की तर्ज पर प्रयोग कर के देखा जा सकता है । बड़े बड़े नामचीन लोग चाहे वे राजनीति के पुरोधा हो या चाहे राजनीति का ककहरा भी न जानते हों पर धन कुबेर हो ,बड़े उद्द्योगपति हों ,ऐसे लोग अपनी अपनी टीम बना लें और राजनीति के माहिर नेताओं की बोली लगा कर उन्हें खरीद कर लें पांच सालों के लिए ,उदाहरण के लिए एक टीम सोनिया गांधी की हो ,दूसरी अडवाणी की ,तीसरी ममता बनर्जी की , टाटा / बिरला / अम्बानी की भी हो , मुलायम ,मायावती भी अब मालिक बनने का दम दिखा सकते हैं । नीलामी के लिए  मोदी , राहुल , केजरीवाल ,अखिलेश , राजनाथ , कपिल सिब्बल , वृंदा करात , कनिमोझी जैसों की मार्केटिंग की जाए । किसी भी टीम का मालिक किसी को भी अधिक बोली लगा कर खरीद सके । पार्टी की कोई बाध्यता न हो । अधिकतम बोली की कोई सीमा न हो ,आखिर पैसा कमाना ही तो मुख्य उद्देश्य है । 

जाहिर है जो पिछले कई वर्षों से चुनाव जीतते आ रहे हैं उनकी रेटिंग ऊपर होगी ,उनकी बोली अधिक लगेगी और जो हारते हैं या हारने की उम्मीद रखते हैं उन्हें कम पैसे मिलेंगे । हो सकता है सोनिया सबसे अधिक बोली लगा कर मोदी को अपनी टीम के लिए खरीद लें और पीएम के लिए उन्हें नामित कर दें । अडवाणी जान बूझ कर केजरीवाल को ले लें जिससे उनकी टीम हार जाए । कुछ मालिक ऐसे भी होते हैं जो भले ही कितना आर्थिक नुकसान हो जाए पर उन्हें अपनी टीम की हार बहुत अच्छी लगती है , भाजपा में ऐसे लोगों की कमी नहीं । अन्ना , किरण बेदी को भी कोई 'सहारा' टाइप ले ही लेगा । समस्या राहुल को ले कर आएगी । पता चला उन्हें किसी ने लिया ही नहीं और उन्हें लालू के साथ 'डग आउट' में बैठना पड़ गया । नए खिलाड़ियों में राखी बिडलान , कुमार विश्वास , बिन्नी सब बिक जायेंगे । भारतीय राजनीति में बिकने को कौन नहीं तैयार ,बस खरीदने वाला होना चाहिए । विदेशों से भी भारी स्पॉन्सरशिप मिल जायेगी । अब आईपीएल होना है तो चीयर गर्ल्स भी होनी चाहिए । उसके लिए प्रियंका , स्मृति ईरानी ,उमा भारती ,या राज्य सभा वाली रेखा, जया, हेमा जैसे लोगों को बोली लगा कर ले सकते हैं ।

जब इस तरह से टीम (पार्टी) बन जाएँ तब टीम के नाम पर चुनाव कराये जाएँ । चुनाव से पहले हर टीम अपनी तरफ से प्रस्तावित मुख्यमंत्री / प्रधानमन्त्री के नाम की घोषणा कर दे । स्पष्ट रूप से जिसकी बोली सबसे ज्यादा लगी होगी ,उसे ही उन पदों के लिए नामित किया जायेगा । देश की जनता बस पार्टी ,जाति , धर्म , वर्ग , क्षेत्र से ऊपर उठ कर खेल भावना और स्वस्थ तरीके से वोट देकर अपना नेता चुने । वही नेता कभी एक टीम से कभी दूसरी टीम से खेल सकता है । बिन्नी जैसे तमाम लोग तो पार्टियों में हमेशा से ऐसा ही करते रहे हैं । इस 'आईपीएल' का प्रारम्भ २०१४ के चुनाव से ही क्यों न किया जाए । 

बस एहतियात एक ही बरतना होगा कि यह नेता ही बिकते रहे ,यह देश न बिकने पाए । 

मंगलवार, 14 जनवरी 2014

"......तो बात बने है "


अशआर यूँ तो सारे पढ़ लिए मैंने तेरे ,
अल्फाज़ एक दो कह दो तो बात बने है ।

दीदार जाने कब हो  रब ही जाने जब हो ,
तसव्वुर में आके  न जाओ तो बात बने है ।

मोहब्बत मैंने की है आँखें तो तर ही होंगी ,
थोड़ा तुम भी तर-बतर हो लो तो बात बने है ।

मरते थे तुम पे  कब से अब मर ही मिटेंगे ,
यूँ तुम भी जी कर देखो तो बात बने है ।

बदनाम था तो यूँ भी कुछ और हो कर देखूँ ,
कुछ नाम तुम भी कर दो तो बात बने है । 

रविवार, 12 जनवरी 2014

'पेंसिल' बनाम 'पेन'


अमूमन मैं आफिस में 'पेन' का इस्तेमाल केवल दस्तखत करने में ही करता हूँ । उसके अलावा किसी मातहत के द्वारा टाइप कर लाई गईं पत्रावलियों पर दस्तखत करने से पहले अगर उसमें कोई गलती नज़र आ गई तो उसे दुरुस्त करने का काम हमेशा 'पेन्सिल' से करता हूँ । किसी के द्वारा किये हुए काम में अगर कोई गलती हो और अगर उसे 'पेन्सिल' से निशान लगा कर दुरुस्त कर दिया जाए तब उस काम को करने वाले को उतना बुरा नहीं लगता जितना अगर उसके द्वारा की गई गलती को 'पेन' से काट कर दर्शाया जाए ।

'पेन्सिल' से लगाए गए निशान स्थायी नहीं होते और 'रबर' से मिटाये जा सकते हैं जबकि 'पेन' से घेर देना या उसे काट कर 'पेन' से सही कर देना उस पर हंमेशा के लिए एक निशान छोड़ देता है और यही बात मनोवैज्ञानिक तौर पर काम करने वाले को चुभती है । भले ही दोनो स्थितियों में काम दुबारा ही करना पड़े परन्तु 'पेन्सिल' से इंगित की गई गलती उसे ठेस कम पहुंचाती है । बच्चों की स्कूल की कॉपी जांचते समय शिक्षकों को इस बात का विशेष ध्यान रखना चाहिए । कुछ शिक्षकों को मैंने देखा है और अनुभव भी किया है कि वे लाल स्याही से बड़ा बड़ा गोल निशान लगा कर पूरे काम की ऐसी तैसी कर डालते हैं जो बच्चे के कोमल मन पर विपरीत असर करती है । मुख्य परीक्षा के अलावा बच्चों के द्वारा किये गए काम को कभी भी लाल स्याही से तो जांचना ही नहीं चाहिए और केवल 'पेन्सिल' का ही प्रयोग किया जाए तो बहुत ही बेहतर है ।

आफिस में अपने उच्च अधिकारियों के लिए भी अगर मै कोई आंकड़े / प्रस्ताव रखना चाहता हूँ तो उसके लिए भी मै 'पेन्सिल' का ही प्रयोग करता हूँ । इससे उन्हें मेरे प्रस्ताव में तनिक कांट -छांट करने में कोई हिचक नहीं होती ।

गलतियां करना ,उन गलतियों से सीख कर आगे बढ़ना और फिर कुछ बेहतर करना यही प्रगतिशील जीवन है परन्तु किसी के द्वारा उस कार्य को अच्छी तरह से पूरा करने में कितनी गलतियां हुईं हैं और उन्हें कब कब ठीक किया गया है इसका हिसाब किताब दिखाई नहीं पड़ना चाहिए ,अन्यथा कार्य करने वाला हमेशा अपने अच्छे परिणाम से  खुश होकर आगे बढ़ने की बजाय उन गलतियों को कोसता रहता है और गलतियां ढूंढने वालों की नज़र में खुद को हमेशा बौना महसूस करता रहता है जो उसके व्यक्तित्व के विकास के लिए बहुत ही घातक साबित हो सकता है ।  इसके विपरीत कुछ लोग हमेशा जोर शोर से यह कह कर खुश होते रहते हैं कि अगर उन्होंने गलती की तरफ ध्यान न दिलाया होता तो काम करने वाले को कुछ भी हासिल न होता ।(कुछ माँ-बाप भी अपने बच्चों के बारे में ऐसा कहते पाये जाते हैं जो उचित नहीं है ) ।  

बात कुछ ख़ास तो नहीं पर अपने हाथ में 'पेन' की जगह 'पेन्सिल' पकड़ कर देखें ,अच्छा महसूस होगा ।