मंगलवार, 2 मई 2017

"खामोश निगाहें...."


आंखों ने तेरी
फिर बेचैन किया
कभी तो इतने सवाल
और कभी प्यार ही प्यार किया
खामोश निगाहें
और लरजते होंठ
जैसे बन्द किताब कोई
फड़फड़ाती हो कोने से
यह काजल की लकीरें या
नाँव में लिपटी रस्सी कोई
खींच उसे क्यूँ
तैरा न लूँ दिल मे अपने
"आना करीब तुम
कभी इतना काश
बन्द पलकों के बीच तेरी
एक पलक मेरी भी हो"
आंखों को मूँद ही रखना
जब कभी सामने आऊं तेरे
कहीं इल्जाम न लग जाये इनपे
डुबो कर जान लेने का ।