गुरुवार, 31 मई 2012

" अलिखित से लिखित......."


अधूरा चित्र सा,
ही तो था मैं ,
कुछ उकेरा सा,
और कुछ धुंधला सा ,
वो तो ,
उंगलियाँ थीं तुम्हारी,
जो जब छूती थीं ,
मुझको अक्सर,
मैं पूर्ण होने को,
हो जाता था तत्पर,
उस छुवन में रोमांच था,
और कुछ रोमांस भी,
धीरे धीरे,
चित्र मेरा होता गया ,
अलिखित से लिखित ,
अक्स मेरा जब ,
लिपटने लगा ,
तुम्हारे ही नाम से,
शरमा उठीं तुम और ,
लाल मेरे होंठ हो गए,
अब इतनी सी,
ख्वाहिश बस और है,
अपनी आँखों का नील,
भर दो मेरी आँखों में,
फिर थाम कर,
अपनी बाहों में,
कर दो मुझे मुक्त ,
इस कैनवस की दुनिया से |

मंगलवार, 29 मई 2012

"एक पगडण्डी नई ............"



राह हो, न हो, 
रहगुजर हो, न हो,
साथ हो, न हो , 
साथी हो, न हो ,
साया हो , न हो,
रौशनी हो, न हो,
सितारे हो ,न हो,
पंछी बोले , न बोले ,
नदी थमे या रुके पवन,
पौ फटे , न फटे,
पग उठ जाते हैं अब ,
चल पड़ने को रोज़,
तलाशने एक ,
पगडण्डी नई,
.
.
.
           "उम्र की तमाम पतली पतली पगडंडियाँ आपस में मिलने को बेताब हैं और मन है कि तलाशता कोई एक पगडण्डी नई |"


शनिवार, 26 मई 2012

मेरे " ये " एकदम वोडाफोन के "वो..." हैं



ठीक ठीक तो मुझे याद नहीं ,मै शायद नींद में था पर थोड़ा थोड़ा सुन भी पा रहा था | मेरी श्रीमती जी किसी से फोन पर बात कर रही थी | ये कोई ख़ास बात नहीं है | ख़ास बात यह थी कि बातचीत की विषयवस्तु मै था | यह आभास होते ही थोड़ा मैंने अपनी नींद पर विजय पाने की कोशिश की और तल्लीनता से उनकी एक ओर की बात सुन और दूसरे छोर पर की जा रही बातों का अनुमान लगा आनंदित होने लगा | वैसे पत्नी की बातें चोरी छिपे सुनने का मजा ही कुछ और है |

इनकी बात किसी बहुत पुरानी सहेली से हो रही थी ,जो शायद इनसे विवाह के बाद से नहीं मिली थी | पर इन दोनों लोगों ने एक दूसरे को 'फेसबुक' के जरिये ढूँढ़ निकाला था | काफी देर से इन लोगों की घर परिवार ,ससुराल .मायके की बात होती रही | फिर बात आई कि ,अरे कैसे हैं तुम्हारे 'वो' ,इनकी सहेली ने अपने 'वो' के बारे में पता नहीं क्या बताया हो पर इन्होने जो बताया वो कुछ यूं था |

अरे ! यार ,मेरे ये तो एकदम मस्त हैं | खूब हँसते हैं ,सबको हंसाते भी खूब है | बहुत केयरिंग है ,बच्चों का भी बहुत ख्याल रखते हैं | उनसे तो एकदम फ्रेंडली हैं | अपने दोस्तों में काफी लोकप्रिय तो हैं ही , मेरी सहेलियां भी काफी इम्प्रेस्ड रहती हैं |

ये सब सुनकर शायद इनकी सहेली या तो बोर हो रही थी या ईर्ष्या-डाह से ग्रसित हो रही थी | इस पर उसने फिर कहा ,अरे यार वो सब तो ठीक है | तुम्हारे साथ कैसा रहता है उनका व्यवहार और कितना समय तुम्हे देते है | अरे अपने दोस्तों और बच्चों में तो सभी मस्त रहते हैं | इस पर इन्होने कहा , अरे ये तो बस मेरे पीछे पीछे घूमते रहते हैं | अब तो बच्चे भी बाहर चले गए हैं , दोनों हॉस्टल में है  , हम ही दोनों रहते हैं यहाँ, अकेले, और बस ये तो  मेरे पीछे पीछे चिपके  रहते हैं | मै कभी कभी झल्ला भी जाती हूँ  और कहती भी हूँ ,अब तो बड़े बन जाइए | ( अब तक  ये जान चुकी थीं कि मै इनकी बात सुन रहा हूँ ) | कभी कभी छुप कर मेरी बाते सुनते रहते हैं और कभी मै जहां भी जाऊ ,वही बिना बताये प्रकट हो जाते हैं  | आसपास न भी हों पर ,पर जैसे ही मै याद करती हूँ, आवश्यकता पड़ने पर ,तुरंत उत्पन्न हो जाते हैं |

इस पर भी शायद इनकी सहेली को यह सब रास नहीं आ रहा था । वो बोली कुछ और बताओ न तफसील से उनके बारे में । इस पर ये इतरा कर बोली , अरे यार, यह समझ लो , मेरे " ये"  एकदम वोडाफोन के "वो" है।  

मेरी समझ में नहीं आ रहा  था कि  , मेरी तारीफ़ की गई या .......। मै  सोचने समझने की कोशिश  में था ,तभी कान में आवाज़ आई , उठिए चाय  रखी है और मै  नींद से जाग चुका था ।



मंगलवार, 22 मई 2012

" वो तिरछे होंठ ........"


बहुत पहले टी.वी. पर 'बलसारा' कंपनी के विज्ञापन में डा.माया अलग एक विशेष प्रकार से 'ओफ्फ ओ ' बोलती थीं ,जिसमे उनके होंठ एक ओर थोडा सा ऊपर उठ जाया करते थे | वो विज्ञापन बहुत फेमस  हो चला था । बस तभी से पता नहीं क्यों मैं तिरछे होंठों का बहुत बड़ा फैन हो गया | (जबकि उस समय मै वयस्क भी नहीं था )।

हँसते हँसते जब किसी के होंठ ज़रा सा ऊपर एक कोने में उठ जाते हैं तब उसकी  हँसी में चार चाँद से लग जाते हैं |  बात करते करते जब वे रुकने की मुद्रा में आते हैं तब उनके होंठ ठहरते ठहरते एक ओर ऊपर जाकर रुक से जाते हैं |

इस प्रकार के फीचर वाले लोग अत्यंत कम ही होते हैं ।

ऐसा लगता है ,ईश्वर  जब खूबसूरत चेहरे बना लेते हैं ,फिर उन्हें जांचते समय उन पर टिक लगाते जाते हैं कि हाँ, ये चेहरे मानक अनुसार खूबसूरत हैं और इस जांच की प्रक्रिया में 'टिक' होंठ पर लग जाता है और वह एक ओर ऊपर उठ जाता है |



आज फिर देखी,
वो मुस्कान,
तिरछी सी,
लफ़्ज़ों के मेले,
से लगे थे,
उसके लबों पे,
हर तीसरे लफ्ज़ पर,
उसके लब थिरकते,
लरजते,
और यकायक,
उठ जाते,
एक ओर,
हाँ !
हँसने पर,
लब का कोना एक,
कुछ ज्यादा ही,
उठ जाता था,
एक ओर,
गोया,
ज्वार भाटा सा,
आता हो,
लबों पे उसके,
जी किया ,
ऊपर नीचे होते ,
लबों को,
छू लूँ,
हौले से,
अपनी उँगलियों से,
और रोक दूँ ,
धड़कने ,
उसके लफ़्ज़ों की,
मगर इतना होश कहाँ ,
डूब सा जो ,
गया था मै ,
लबों के,
ज्वार भाटे  में ।


( रचना का आधार महज कल्पना ,कृपया किसी को ठेस न पहुंचे )

रविवार, 20 मई 2012

"यो -यो" एक खिलौना अथवा ......जीवन दर्शन ......"



' यो-यो ' एक अत्यंत साधारण सा खिलौना है ,जिससे बचपन में सभी ने खेला होगा । दो पतली सी चकती के
बीच  उन्हें आपस में जोड़ने वाली एक महीन सी पिन लगी होती है और उसी पर एक लंबा सा धागा बंधा होता है । खेलने के लिए शुरुआत में एक हाथ से चकती या 'यो यो' को पकड़ कर बस पूरे धागे को उस महीन पिन पर लपेटना होता है  ओर फिर उस 'यो-यो' को नीचे जमीन की और छोड़ दें ,जैसे ही पूरा धागा खुलने वाला हो ,एक झटके से 'यो-यो' को वापस ऊपर खींच ले । पूरा 'यो-यो' उसी धागे पर उलटा लिपटता हुआ ऊपर चढ़ता चलता जाता है । बार बार ऐसा करते रहें और बस आनंद आता रहता है । जो इस खेल को खेलने में सिद्धहस्त हो जाते हैं ,वे इस 'यो-यो' को किसी भी दिशा में फेंक कर चला लेते हैं । थोड़ा अभ्यास की आवश्यकता होती है फिर तो मजे ही मजे । आजकल तो ये अत्यंत रंग बिरंगे और बैटरी लगी लाइटों के साथ भी आ रहे हैं ।

इस खिलौने का सिद्धांत केवल इतना है " कन्ज़र्वैशन ऑफ़ एनर्जी एंड मूमेंटम " । अगर विज्ञान के सन्दर्भ से न देखें तो केवल इतने बात समझ में आती है कि 'यो-यो' को पुनः ऊपर लाने के लिए उसे नीचे ले जाना अत्यंत आवश्यक है और जितनी तेजी से वह नीचे जाता है पुनः उतनी ही तेजी से ऊपर चढ़ जाता है ।

यही सिद्धांत व्यक्ति के जीवन पर भी लागू होता है । ऊपर उठने लिए यदि गति चाहिए या जीवन में ठहराव आ गया है या ऐसा लगता है कि  व्यक्ति प्रगति के बजाय थोड़ा पीछे जा रहा है तब चिंता कदापि नहीं करनी चाहिए । यही बात बच्चों की शिक्षा अथवा करियर के सम्बन्ध में भी लागू होती है । जीवन में कभी कोई बिंदु अंतिम बिंदु नहीं होता । तनिक उससे पीछे लौटें, ऊर्जा  और मन को पुनः गति दें । आप पायेंगे कि  आपका जीवन भी 'यो-यो' की भांति एक नई  ऊंचाई  तक पहुँच जाएगा । 

इसे आप 'यो-यो इफेक्ट' कह सकते हैं ।


शनिवार, 19 मई 2012

" ब्लॉगर दम्पति एवार्ड........."


'दशक का ब्लॉग' , 'ब्लॉगर का दशक अथवा शतक ' या ' सदी का ब्लॉगर ' , 'नया ब्लॉगर' , 'सबसे वृद्ध ब्लॉगर', 'नवजात शिशु ब्लॉगर', 'अभिमन्यु ब्लॉगर' ( जो गर्भ से ही ब्लागिंग सीख ले ) या 'सबसे खूबसूरत चेहरे वाला ब्लॉगर' या 'सबसे सुन्दर ब्लॉग' ,'सबसे सरल ब्लॉग' या 'सबसे कठिन ब्लॉग' और न जाने क्या क्या ,ये वो शीर्षक हैं, जिनके लिए आजकल पुरस्कार दिए जाने की होड़ सी लगी है |

कैसे पंजीकरण कराना है और किसको और कहाँ वोट मांगने के लिए अपना पक्ष रखना है ,इसका प्रचार प्रसार बहुत तेजी से हो रहा है |

कुछ का मानना है ,'मैच फिक्स्ड' है अर्थात 'ब्लॉगर' का नाम तय है | कुछ का मानना है 'स्पॉट फिक्स्ड' है अर्थात 'ब्लाग पोस्ट' का नाम तय है | अच्छा खासा सभी लोग 'मैच फिक्सिंग' से वाकिफ हो चुके थे ,खामख्वाह 'स्पॉट फिक्सिंग' जैसी नई चीज़ आ गई |

ब्लागिंग की दुनिया में जो भी कटेगरी तय की जा रही है ,एवार्ड की खातिर ,बस उन्ही कटेगरियों में एक कटेगरी और बढ़ा देनी चाहिए ,जिसका नाम हो "ब्लॉगर-दम्पति एवार्ड " |

एक ही छत के नीचे ,एक मानिटर पर ,एक ही माउस से बारी बारी दो ब्लॉगर ,जो रिश्ते में पति -पत्नी लगते हो , कैसे ब्लागिंग करते होंगे | दोनों अपने को विद्वान /विदुषी समझते होंगे,एक दूसरे में व्याकरण की  त्रुटियाँ ढूँढते होंगे,उलाहना भरी नज़रों से एक दूसरे की टिप्पणियाँ पढते कम, गिनते अधिक होंगे | अपनी रचना के अगर आधे में है और किसी काम से उठना है तब कार्डलेस माउस छुपा जाते होंगे | इस तरह की तमाम तरह तरह की कल्पनाएँ 'ब्लॉगर दम्पति' के विषय में अगर पुरस्कार देने वाले कर पायें तब वे शर्तिया  'ब्लॉगर दम्पति 'एवार्ड कटेगरी में नामांकन आमंत्रित करने को राजी हो जायेंगे | ब्लागर दम्पति आपस में लड़ाई भी एक दूसरे पर टिप्पणी फेंक कर करते होंगे |

हाँ ! जब कभी 'ब्लागर दम्पति' आपस में प्यार जताते होंगे तो कुछ यूं बात करते होंगे : हम आपके ब्लॉग में रहते हैं, हम ब्लॉग दे चुके सनम , ब्लॉग वाले दुल्हनिया ले जायेंगे , ब्लॉग दे के देखो , हमें आपके ब्लॉग से प्यार है ,डर्टी ब्लॉग और न जाने क्या क्या |

तनिक 'ब्लॉगर दम्पति' के जीवन के विषय में सोंचे और सब लोग मिलकर इस कटेगरी के लिए एक पुरस्कार की घोषणा कराएं |

शुक्रवार, 18 मई 2012

'सिमरन' हाँ ! शायद यही नाम था उसका .........?



वादा था न,
लिखने का कुछ,
तो कुछ यूँ समझ लो,
तुम्हारी आवाज़ की कशिश ,
और तिरछी मुस्कान की नफासत ,
में कैद हो गया हूँ ,
तुम पलकें झुकाती रहीं,
उठाती रहीं ,
मुस्कुराती रहीं ,
और मै बेबस,
डूबता गया 
तिलस्म में ,
हुस्न के,
तुम्हारे |



"तुम तो मेरे दिल का 'सिम' चुरा कर 'रन' कर गई ।"

गुरुवार, 17 मई 2012

" अंदाज़ चाय पीने के ......"


चाय एक अत्यंत साधारण पेय है परन्तु उसे पीने पिलाने का अंदाज़ आपके और उनके बारे में बहुत कुछ कह देता है ।अमूमन सभी के दिन की शुरुआत एक प्याली चाय के साथ ही होती है या किसी के आने पर या किसी के यहाँ जाने पर चाय ऑफर करना न्यूनतम शिष्टाचार में आता है,परन्तु चाय किस प्रकार से दी गई है ,कप-सासर में या मग ( बिना प्लेट का कप ) में, और कौन उसे किस प्रकार से पी रहा है ,उन सबके मायने अलग अलग होते हैं यथा :

1. सवेरे सवेरे आप सो रहे हों और आपकी पत्नी चाय बना कर ले आयें और बेड  के पास चाय रखते हुए प्यार से आपको स्पर्श कर बोले ,उठिए चाय रखी है और अगर यह चाय कप-प्लेट में दी गई है तब यह सर्वोत्तम प्रकार की चाय भी होगी और पिलाने का अंदाज़ भी उच्च कोटि की श्रेणी में रखा जाएगा ।

2.अगर यही चाय बगैर प्लेट के केवल कप में दी गई है तब थोड़ा सा सलीके में कमी दिखती है या इसका मतलब श्रीमती जी जल्दी से चाय पिला कर स्वयं फिर से सोना चाहती है ।   

3.अगर चाय बनाने जाने से पहले ही आपको पुकार दिया गया हो कि उठ जाइए ,चाय बनाने जा रही हूँ ,इसका अर्थ हुआ कि आज उनका मूड कुछ गड़बड़ है । जब चाय बनकर आये ,उससे पहले ही आप बिस्तर पर उठे मिलें नहीं तो चाय के साथ कुछ शोर भी आपके कानों में पड़ सकता है , जो एक दिन की शुरुआत के लिए अच्छा नहीं साबित होगा । ( इसका समाधान यह है कि  चाय हाथ में लेते ही कहना शुरू कर दीजिये ,वाह ! क्या चाय है ,बस वो देख न पांए कि  बगैर पिए ही आपने तारीफ़ झोंक दी है ) ।

4.किसी के यहाँ जाने पर अगर चाय आपको आपके हाथ में दी जा रही है तब यह आत्मीयता का संकेत है और अगर बीच में मेज़ पर रख दी गई है ,इसका मतलब आपकी उनके यहाँ पुनः उपस्थिति तनिक कम वांछित है ।

5.चाय अगर ऊपर तक लबालब भर दी गई हो तब आपको  निश्चित तौर पर अनौपचारिक तौर पर लिया जा रहा है । ऐसी जगह पर आप आराम से इन्फार्मल और कैजुअल हो सकते हैं ।

6.अगर चाय पीने वाले व्यक्ति के हाथ में कप-प्लेट जरा सा भी खड खड़ा जाए ,समझिये पीने वाला व्यक्ति पिलाने वाले के सामने सहज नहीं हो पा  रहा है ।

7.चाय पीते समय पीने वाले ने अगर प्लेट मेज पर छोड़ दी और केवल कप उठाकर पी रहा हो तो इसका अर्थ हुआ कि ऐसे व्यक्ति को जीवन में माया मोह कम होगा और वह संचयी प्रकृति का नहीं होगा ।

8.पीते समय प्लेट पकडे हुए हाथ और बांह के बीच का कोण 90 अंश या उससे अधिक होना चाहिए । उससे कम होने पर साबित होता है कि पीने वाला जोखिम उठाने में घबराता है और अपना जीवन सदैव सेफ मोड़  में ही चलाना चाहता है । ऐसे लोगों में इंटरप्रेन्योरशिप लगभग न के बराबर होती है ।

9.कप को जितनी मजबूती और प्यार से पकड़ा जाए ,चाय पिलाने वाले के लिए उसी अनुपात में प्यार और सम्मान दर्शित होता है ।

10.कोई अगर चाय बहुत धीरे धीरे पीता है ,इसका अर्थ यह हुआ कि  वह चाय पिलाने वाले के साथ समय ज्यादा बिताना चाहता है और अपरोक्ष रूप से अपना लगाव प्रदर्शित कर रहा है ।

11.इसके विपरीत अगर चाय जल्दी जल्दी पी जा रही है तब अर्थ हुआ कि पीने वालो को, न पिलाने वाले में और न चाय में कोई दिलचस्पी है ।

वैसे बहुत प्यार हो दो लोगों के बीच में अगर ,तो वे एक ही कप में चाय पी लेते हैं और फिर उसमें शकर भी नहीं डालनी पड़ती । आखिर उसमे होठों की मिठास जो शामिल हो जाती है ।

एक जोक : एक बार एक साहब अपने किसी मित्र के घर गए और वहां उन्होंने चाय पीने की इच्छा जताई । इस पर उनके मित्र  ने लम्बी सांस लेते हुए कहा ," क्या बताएं यार, शकर है नहीं, चाय की पत्ती होती तो दूध पड़ोस से मांग लेते और चाय बन जाती ।" 

शनिवार, 12 मई 2012

"माँ मतलब ....."


माँ ,
मतलब,
वह ,
जिसकी नींद ,
पूरी होती है,
अपने बच्चे को सोता देख,
जिसकी भूख ,
मिटती है ,
अपने बच्चे को खाता देख,
जो खुश हो जाती है,
बस सुन किलकारी,
जिसकी थकान ,
मिट जाती है,
बस उसे कलेजे से लगाकर,

माँ ,
मतलब,
जो सोने के बाद,
बालों में हाथ फेर दे,
बस एकबार,
जो दिख जाये ,
सबसे पहले,
आँख खुलने पे,
बस एकबार,

बच्चों को तो बड़ा होना ही है ,
सो बड़े हुए और चले गए दूर,

अब ,
माँ ,
मतलब,
जो अकेले में,
निहारा करे बस,
फोटो उनकी,
और चूमा करे,
उनके मेडल ,
बार बार,
और बस ,
सुखाती रहे,
गीली आँखों के कोर,
आँचल से बारबार,

माँ ,
मतलब ,
जो हर निवाले,
से पहले सोचे,
उसने तो खा लिया,
होगा न ,

माँ ,
मतलब ,
जिसके लिए ,
उसके बच्चे की,
उम्र कभी नहीं बढती,
उसके लिए ,
तो वह बस,
हमेशा ,
बच्चा ही ,
रहता है,
थोडा जन्मा ,
थोड़ा अजन्मा ।