'कन्वर्जिंग ट्रैफिक' का बोर्ड प्रायः दिख जाता है ,बड़े शहरों में ,जहां अनेक सडकें आते आते कुछ कम सडकों में विलीन हो जाती हैं । यहाँ जो ट्रैफिक प्रारम्भ से ही मुख्य धारा में आ रहा होता है वह बड़ी सरलता से आगे निकल जाता है जबकि बायें /दायें से आने वाले ट्रैफिक को बहुत प्रतीक्षा तो करनी ही पड़ती है ,उनकी गति भी अत्यंत कम हो जाती है ।
ऐसा ही कुछ दिखाई पड़ता है ,जब बच्चे कक्षा १० उत्तीर्ण कर कक्षा ११ में प्रवेश हेतु स्कूल का चयन करते हैं । बहुत अधिक संख्या में बच्चे दसवीं कक्षा उत्तीर्ण कर नामी गिरामी स्कूलों में प्रवेश पाना चाहते हैं परन्तु संख्या अधिक होने के कारण प्रायः मन वांछित स्कूलों में प्रवेश नहीं हो पाता या होता भी है तो मन पसंद विषय नहीं मिल पाते । जबकि जो बच्चे दसवीं में बहुत अच्छा परिणाम प्राप्त किये होते हैं या पहले से ही अच्छे स्कूलों में होते हैं वे मुख्य धारा के ट्रैफिक की तरह तीव्र गति से आगे बढ़ते रहते हैं ।
कक्षा ११ में स्कूल के चयन से पहले आवश्यक है विषयों का चयन और विषयों के चयन से पहले आवश्यक है ,बच्चे की क्षमता ,पसंद और लगन का आकलन । प्रत्येक माँ-बाप को अपने बच्चे की क्षमता और प्रतिभा का एकदम सही आकलन लगभग रहता है ।कक्षा दस तक आते आते बच्चे की पढ़ाई करने की क्षमता ,लगन और रुझान लगभग स्पष्ट हो ही जाता है ।अमूमन हर माँ-बाप अपने बच्चे को विज्ञान के विषय दिलाकर ही उसे आगे पढ़ाना चाहते है जो कि कतई उचित नहीं है । गणित और विज्ञान अगर उसे समझ में नहीं आता या उसे रूचिकर नहीं लगते तब यह निश्चित समझ लें कि ट्यूशन लगा कर उस बच्चे को कभी भी अच्छे बच्चों के बराबर नहीं लाया जा सकता ।
किसी भी स्कूल के परिणाम या वहां से निकलने वाले बच्चों के करियर को देखे तो पता चलता है कि बीस से पचीस प्रतिशत बच्चे ही विज्ञान के विषयों को आगे ले जा पाते हैं ,अन्य बच्चे फिर आर्ट्स या क़ानून की तरफ ही रुख कर लेते हैं । यदि कक्षा ११ के प्रारम्भ में विषय चुनते समय ही क्षमता अनुसार सही विषय चुने जाएँ और उसी के अनुसार स्कूल भी चुना जाए तब बच्चे का रुझान और लगन दोनों बने रहते है और ऐसे बच्चे आगे चल कर बहुत अच्छे परिणाम देते हैं ।
शिक्षा के इस भाग के लिए स्कूल का चयन कुछ इस प्रकार करें :
१. कक्षा दस तक के स्कूल को बिना आवश्यक कारण के परिवर्तित न करें । स्कूल बदलने पर बच्चे पर नए स्थान का मनोवैज्ञानिक दबाव बढ़ता है ।
२.स्कूल के चयन से पहले वहां से उत्तीर्ण हुए बच्चों के विषय में जानकारी प्राप्त करें । भले ही बारहवीं में उनके अंक अच्छे रहे हों परन्तु उन बच्चों ने विभिन्न प्रतियोगी परीक्षाओं में कैसा प्रदर्शन किया ,यह अधिक महत्वपूर्ण है ।
३ . आजकल कुछ स्कूल निजी कोचिंग संस्थानों से 'टाई -अप' कर लेते हैं । यह भी अच्छा प्रयोग है । इसमें बच्चे को स्कूल के समय में ही गुणवत्ता की शिक्षा मिल जाती है । उसके लिए उसे अलग से समय नहीं निकालना पड़ता है । अपनी आवश्यकता के अनुसार जहां जैसी कोचिंग हो और विगत में उसके परिणाम अच्छे रहे हो उसी के अनुसार स्कूल का चयन करना चाहिए ।
४. स्कूल ऐसा हो जहां छात्रवृत्ति / विभिन्न ओलम्पियाड / सामान्य ज्ञान /विज्ञान की प्रतियोगिताएं प्रायः आयोजित की जाती हो एवं वहां के बच्चे इसमें बढ़ चढ़ कर हिस्सा लेते हों ।
५ .कक्षा ११ / १२ में पढ़ाई से अधिक आवश्यक है परीक्षाएं , छोटे छोटे पाठ पूर्ण होते ही उन पर आधारित विभिन्न प्रकार के प्रश्नावलियों से भी बच्चों को प्रायः सामना कराया जाना अत्यंत आवश्यक है ।
६.इस दरमियान बच्चा पढ़ाई से जूझता हुआ दिखाई पढ़ना चाहिए । कठिन परिश्रम का कोई विकल्प नहीं है ।
७.समय समय पर बच्चे की क्षमता का आकलन किया जाना चाहिए । जिस विषय में वह कमजोर दिख रहा हो उसके शिक्षक से मिलकर गंभीरता से विचार विमर्श कर समाधान किया जाना चाहिए ।
८. इस स्तर पर आकर विषय के बारे में ज्ञान होने के साथ साथ आवश्यक है परीक्षा में अच्छे अंक प्राप्त करना क्योंकि बच्चे को कितना भी अच्छा ज्ञान उस विषय का क्यों न हो परन्तु परीक्षा /प्रतियोगी परीक्षा में तो अंक ही निर्धारित करते हैं कि कौन श्रेष्ठ है । अतः स्कूल में परीक्षा में कम समय में कैसे अधिक अंक प्राप्त किया जाय इस पर भी बल दिया जाना चाहिए ।
९.बच्चे के जीवन का यह वह काल है जब बच्चा गलत संगत में पड़कर सही रास्ते से विमुख हो सकता है । अतः स्कूल में अनुशासन बहुत सख्त होना चाहिए और माँ-बाप को इस समय अपने बच्चे की हर गतिविधि पर नज़र रखने की आवश्यकता होनी चाहिए । प्रायः अपने बच्चे की बुराई सुनकर माँ-बाप यह कहते सुने जाते हैं कि उनका बच्चा ऐसा नहीं कर सकता और फिर वे बच्चे ही आगे चलकर बिगड़ जाते हैं । अगर कोई सूचना अपने बच्चे के बारे में मिलती है तब उस पर गौर कर उसकी सच्चाई का पता लगाना चाहिए और आवश्यकता के अनुसार बच्चे के साथ उस सम्बन्ध में दृढ़ता से बात करनी चाहिए ।
१०.इस अवस्था में स्कूल में शिक्षकों को बच्चे में आत्मविश्वास स्थापित करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभानी चाहिए ।
कक्षा १२ तक आते आते बच्चे वयस्क हो जाते हैं । उनसे दोस्त बनकर उनकी उम्र में खुद को ढाल कर उनकी मनोदशा को समझते हुए ही उनसे व्यवहार कर उन्हें समझना और समझाना चाहिए । यह अवस्था अत्यंत नाजुक होती है ।
माँ-बाप को अपने बच्चों से बहुत अपेक्षाएं होती है और उससे अधिक दबाव उन बच्चों पर उन अपेक्षाओं पर खरा उतरने का होता है ।
चुने हुए सही विषय / लगन /परिश्रम इन तमाम बच्चों के आगे के भविष्य को संवार सकते है और यही बच्चे आगे चल कर डाक्टर /इंजीनियर /कानूनविद /प्रशासनिक सेवक /उद्योगपति /वैज्ञानिक और न जाने क्या क्या बन सकते हैं ।