शुक्रवार, 10 मई 2019

" एक शब जो नज़्म बनी ........"



लफ्ज़ लफ्ज़ तेरा बेचैन करता रहा रात भर,
ख़त में लिख दे इन्हें या नज़्म का पहरा कर दे।

तकाज़ा दिल का था फिर इल्जाम जुबां पे क्यों,
मौसम बंजर बहुत इन आँखों को अब झरना कर दे।

दीदारे जुनू न रहा कोई बात नही अब 'अमित',
पलकें मचलती है बस इत्ते इल्म का सौदा कर ले।

दस्तक दें जब कभी सांसें मेरी दिल पे तेरे
लबों से चूम लेना नाम मेरा इत्ता सा वादा कर ले।