रविवार, 26 मई 2013

"हाय बिजली .....हाय बिजली .....बिजली वाले हाय हाय ......"


एक अपील 

प्रचंड गर्मी का मौसम है । हाल बेहाल है । ऐसे में बिजली का संकट भी घोर चल रहा है । बिजली के अभाव में छोटे छोटे घरों में रहने वाले ,तंग गलियों में ,जहां हवा भी मयस्सर नहीं ,क्या बच्चे क्या वृद्ध सभी लोग गर्मी के कारण बीमार हो चले हैं । बिजली नहीं आती तो पानी भी नहीं आता , कुआँ / हैडपंप का अभाव है , कैसे लोग स्वस्थ रह कर जीवित रहेंगे चिंता का विषय है । अस्पतालों में मरीजों की बुरी हालत है । समय पर आपरेशन नहीं हो पा रहे हैं । सभी चिकित्सीय उपकरण बिजली से ही चलते हैं ,बिजली के अभाव में हम फिर हजारों साल पहले की दुनिया में पहुँच जाते हैं । 

यह सच है कि सरकार का / बिजली विभाग का दायित्व है कि वे सुनिश्चित करें कि उपभोक्ताओं को अच्छी गुणवत्ता की बिजली सुचारू रूप से बिना बाधा के मिलती रहे। जहाँ बिजली आने का समय सारिणी अनुसार है वहां बिजली सारिणी के अनुसार आनी चाहिए । यह कडवा सच है कि विभाग और सरकार इस काम को उपभोक्ताओं की अपेक्षा के अनुसार नहीं कर पा रही है ।

कारण बहुत सरल और स्पष्ट है : जिस गति से बिजली के तंत्र से दिन प्रतिदिन बिकने वाले बिजली के उपकरण जुड़ते चले जा रहे हैं उसके अनुपात में बिजली विभाग का ढांचा मजबूत नहीं हो पा रहा है । यह सच है कि विभाग को समय रहते यह सब 'होम वर्क' कर लेना चाहिए परन्तु ऐसा हो नहीं पाता। 

यह भी सच है कि (अधिकतर) कोई भी व्यक्ति ईमानदारी से बिजली का बिल जमा नहीं करना चाहता और न जमा करता है । अभी अभियान चला कर बिजली के मीटरों की जांच की गई तब बड़े चौकाने वाले परिणाम सामने आये । ९० प्रतिशत मीटरों में चोरी किये जाने के प्रमाण मिले । प्रजातांत्रिक सेट अप में बहुत अधिक सख्ती किया जाना संभव भी नहीं होता ,जब क़ानून भी सख्त न हो । ले देकर गलती बिजली वालों की ही बताई जाती है ।  

जहां सामग्री और कार्य की कुशलता की गुणवत्ता की बात आती है ,वहां भी बिजली विभाग के लोगों को जिम्मेदार ठहराया जाता है । जबकि बड़े बड़े ठेकेदार और सप्लायर इस कदर ऊंचे राजनैतिक कद के हैं कि उनके आगे अधिकारी बौने साबित होते हैं ।बिजली की समस्या इतना विकराल रूप धारण कर लेने वाली है सोच कर घबराहट सी होती है । कोई शंका नहीं कि किसी दिन इस संकट को लेकर विभाग के लोगों के साथ पब्लिक का दुरव्यवहार इस कदर न हो जाए कि उन्हें अपनी जान बचाने के लाले पड़ जाएँ । 

इस संकट और युद्ध जैसी स्थति में बस एक अपील : बिजली का उपयोग अत्यंत सावधानी और मितव्ययता के साथ करें और ईमानदारी से उपभोग की गई बिजली का शुल्क जमा कर दें । 

सरकार की 'मंशा' और 'विल पावर' जिस दिन स्पष्ट और मजबूत हो जायेगी २४ घंटों में स्थिति में सुधार आ सकता है ,बस मंशा तो साफ़ हो । बिजली विभाग के निजीकरण से फौरी तौर पर तो परिणाम अच्छे नज़र आयेंगे पर इतना भी तय अवश्य है कि बिजली महँगी बहुत हो जायेगी । लोग तब अत्यंत मितव्ययता से इसे इस्तेमाल करेंगे , स्थिति में अपने आप सुधार आ जाएगा और लोग कहेंगे ,देखो निजीकरण से स्थिति में सुधार आ गया। 

              "जिनके पास अधिकार हैं ,वे उत्तरदायी नहीं  और जो उत्तरदायी हैं उनके पास अधिकार नहीं "। 

गुरुवार, 23 मई 2013

...बस संजो लिया ...................."

             कहीं पर लिखा हुआ पड़ा था । पढ़ा , सच सा लगा , संजोने का मन किया तो ब्लॉग पोस्ट बना दिया । 




शनिवार, 18 मई 2013

" कहानी .......एक जोड़े की "



एक प्यारा सा जोड़ा था ,
दोनों ने तिल तिल ,
आपस में प्यार था जोड़ा ,
इस जोड़े हुए प्यार से उनकी ,
हयाते-राह खुशगवार हुई ,

जोड़ा जोड़ने की ,
ख्वाहिश लिए ,
खुद को दुनिया से,
रिश्ते तमाम जोड़ता गया  ,

हयाते-राह एक भूल हुई ,
दोनों ने प्यार के इस जोड़ में ,
अपने अपने हिस्से का प्यार ,
बराबर न जोड़ा ,

प्यार का जोड़ गलत हुआ ,
जोड़ा जोड़ में उलझ गया ,
जोड़ जोड़ खुल गया ,
प्यार तितर बितर हो गया ,
जोड़ा जड़वत हो गया । 

                              "प्यार में हिसाब कैसा ..प्यार तो बे-हिसाब होना चाहिए "

शनिवार, 11 मई 2013

" मूंछों में रखा ही क्या है ......"



         ( यह पोस्ट फेसबुक पर फोटो चस्पा करने के बाद शिवम् जी के आदेश और स्नेहिल आग्रह पर लिखी गई है ) 


बहुत छोटे छोटे बाल और एक अदद गाढ़ी मूंछ का मै हमेशा से ही दीवाना रहा हूँ और मुझे याद नहीं पड़ता कि मुझे कभी अपने बालों के लिए कंघे की आवश्यकता हुई हो । मूंछे भी मैंने हमेशा भरी पूरी रखी । कभी कभार मूंछों के प्रति मेरी दीवानगी देख श्रीमती जी ने प्रलोभन 
भी दिया कि अगर आप क्लीन शेव हो जाएँ तो ऐसा होगा या वैसा होगा परन्तु मैंने कभी समर्पण नहीं किया। इस पर उनको संदेह भी हुआ कि कोई मेरी मूंछों का जबरदस्त फैन तो नहीं । खैर हम कहाँ कुछ खुलासा करने वाले इन बातों का । 

इधर बीते कुछ दिनों से काली मूंछों के बीच कुछ गोरे दिखाई देने लगे । श्रीमती जी अचानक से खुश हो गईं और बोली अब आप क्लीन शेव हो जाइये । मैंने बगैर उन्हें सुने बड़ी तल्लीनता से आँखे फाड़ फाड़ कर एक छोटी सी नोक दार कैंची से सफ़ेद फिरंगियों को काट बाहर किया । मेरी मूंछे फिर काली कड़क और कलफदार हो गई । यह सिलसिला चल निकला । जैसे ही गोरे बाहर मुंह निकालते मैं उनका मुंह धर दबोचता और वो सब गायब । 

अब तक तो काफी हाथ सध चुका था इस काम में । परन्तु एक ही स्थान विशेष से सफेदी काटते काटते वहां दुश्मनों के बंकर जैसे कुछ स्थान बन गए थे जो किसी और को तो नहीं परन्तु मुझे अवश्य दिखते थे । आज सोचा थोड़ा कालों को भी काट छांट कर ठीक कर दूँ ।  बस इसी बराबरी करने के चक्कर में काले गोरे सब गायब हो गए और नाक और होंठों के बीच एक पिच तैयार हो गई । 

सबसे पहले हमारे मूंछ विहीन चेहरे का दर्शन लाभ श्रीमती जी ने किया । पहले तो उन्होंने देखकर इग्नोर किया फिर थोड़ा गौर किया और बोली , नहीं अच्छा लग रहा है ,आपका फेस चौड़ा लग रहा है ,मूंछे आपके फेस को सूट करती थीं। मैंने कहा , यार तुम्हारी बरसों की इच्छा को ध्यान में रखकर मै तो क्लीन शेव हो गया और तुम ऐसा कह रही हो । इस पर वह तुनक कर बोली , तब करते तो बात थी । अभी तो आप गलती से सारी मूंछ क़तर गए तो उसमें भी मेरे ऊपर एहसान । मन ही मन में सोचा मैंने बात तो ठीक ही कह रही है ,पर चुप ही रहो अभी । मैंने महकुआ आफ्टर शेव लगाया और आफिस के लिए निकल गया । रास्ते भर रियर व्यू मिरर में अपनी शकल निहारता जा रहा था ।

आफिस पहुचते ही ,
पहला कमेन्ट - आप दस साल छोटे लग रहे हैं  । 
अगला कमेन्ट -वैसे मूंछों में ज्यादा जंचते थे । 
फिर अगला कमेन्ट -कब तक सफेदी छुपाओगे ।     
अगला कमेन्ट -मूछों में रोब था , अब कोई आपसे डरेगा नहीं । 
फिर अगला - मूंछों में पता नहीं चलता कि आप गुस्से में हैं कि लाइट मूड में । 
कमेन्ट - बिना मूंछ के चेहरे का भाव पढ़ना सरल है ।  
बॉस -अमित ,तुम्हारे पास इतना समय कैसे रहता है ,नए नए एक्सपेरिमेंट करते रहते हो ! वैसे अच्छे लग रहे हो । हफ्ते में तुम दो बार तो बाल कटवाते हो अब मूंछे भी कटवाओगे रोज़ । 
मैंने कहा , मेरा बस चले तो हिन्दुस्तान के हर आदमी के बाल छोटे छोटे 'क्रू कट' करवा दूं और हर आदमी के लिए पढ़ाई के बाद ६ माह की मिलिट्री ट्रेनिंग कम्पलसरी करा दूं ।  
बॉस -अमित ,फिर तुम्हारा देश प्रेम और फ़ौज प्रेम चालू हो गया  । आज बारह बजे राष्ट्रपति महोदय आ रहे हैं । उनके कार्यक्रम में मुझे जाना है । सबको एलर्ट कर दो , तुम मूंछ रखो न रखो तुम्हारी मर्ज़ी । 


मै मन ही मन अपनी मूंछों पर ताव देता हुआ उन्हें कार में बिठा अपने कक्ष में आकर बैठ गया । 

गुरुवार, 2 मई 2013

" नापाक माटी में मौत एक पाक की ....."


वरण किया था ,
तभी मृत्यु का ,
कैद हुआ था ,
जब परदेस । 

हाँ ! याद आया ,
और बहुत याद आया ,
तेरा साया कभी  ,
कभी बच्चों का साया । 

ख्वाहिश ज़िन्दगी ,
तो न थी कभी ,
हाँ थी जरूर ,
बस इतनी । 

जान जाने से पहले ,
हो जाए दीदार,
अपनों का ,
और अपने वतन का । 

मिलूँ जब भी माटी में ,
माटी हो बस ,
तो हो ,
अपने वतन की ,

दुश्मनों ने यह भी ,
पूरा न होने दिया ,
जानता है अब ,
उनका वह खुदा भी ,

मौत ने मेरी ,
कर दिया ,
उस पाक को ,
भी नापाक  । 

                                                                  "विनम्र श्रद्धांजलि "