"उनको यह शिकायत है हम कुछ नहीं कहते ,
अपनी तो यह आदत है हम कुछ नहीं कहते |"
चाय कैसी लगी ,पूछा उन्होंने | अरे चाय ख़त्म भी हो गई ,मैंने खाली कप को देखते हुए कहा | तुम्हारी यही आदत खराब है ,कितने भी मन से कुछ भी बना लो ,मगर तारीफ़ के दो बोल कभी नहीं बोलते ,कप उठाते हुए बोली वें | देखो अगर चाय तुमने दिल से बनाई है, और बनाते समय तुम्हारे ख्यालों में मै था,फिर तो चाय को उम्दा होना ही था | और चाय कैसी है ,यह सवाल तो तब उठता है जब चाय अकेले में पी जाय | जब तुम सामने हो तो चाय में तुम्हारा ही अक्स नज़र आता है , और तब चाय भी तुम्ही में घुली घुली सी लगती है |
इतना ही काफी था ,उनके लिए एक और अच्छे दिन की शुरुआत करने को |
कहते हैं , सवेरे सवेरे की पहली चाय आपके पूरे दिन के मूड को तय करती है ,इसलिए दिन की पहली चाय ख़ास अपनों के साथ होनी चाहिए |