'क्या लिखूं' , सोचने से बेहतर है यह सोचा जाए कि 'क्या न लिखूं' ।
यह बिलकुल भी नहीं लिखूंगा कि रुपये के अवमूल्यन का कारण गलत आर्थिक नीतियाँ है । अंतर्राष्ट्रीय बाजार में हमारे उत्पादों का रेंज भी कम है और जो हैं भी उनकी गुणवत्ता भी मानक अनुसार नहीं है । यह भी नहीं लिखूंगा कि चार हज़ार करोड़ रुपये के लैपटाप बांटने के बजाय कोई उद्योग लगा दिया गया होता तो अधिक लाभकारी होता । जिन्हें सच में आवश्यकता है उन्हें आर्थिक एवं अन्य प्रकार की सहायता अवश्य दी जानी चाहिए परन्तु जितना धन व्यय किया जाना है उसकी भरपाई का इंतजाम पहले कर लेना आवश्यक है । रेवन्यू जेनेरेट नहीं करेंगे तो सरकारी खजाने खाली होते रहेंगे और विश्व बैंक का मुंह ताकते ताकते हम तो औंधे मुंह गिरेंगे ही हमारा रुपया भी कहीं का नहीं रहेगा । जब तक हम उदारता बरतते रहेंगे ( वह भी उदारता कहाँ है ,वोट बैंक की राजनीति है ) और अपने खजाने को यूं ही लुटाते रहेंगे ,आर्थिक मजबूती नहीं आने वाली ।
एक छोटा सा उदाहरण : दीपावली पर पूरे देश भर में बिजली की झालरों की सजावट की जाती है ।सारे बाज़ार में चीन में निर्मित झालरें ही बिकती हैं और खूब बिकती हैं । अगर यही उद्योग हमारे यहाँ लग जाए तो क्या इस बिक्री का लाभ हमें नहीं मिलेगा।मै अर्थशास्त्री तो नहीं परन्तु इतनी छोटी सी बात तो समझ में आ ही जाती है ।
यह भी नहीं लिखूंगा कि बहुत ऊंचे स्तर पर जो भी निर्णय लिए जाते हैं वह 'कस्टमाइज्ड' होते हैं अर्थात वह किसी बड़े घराने को या किसी वर्ग विशेष को लाभ पहुचाने के उद्देश्य से लिए जाते हैं , भले ही सरकार की आय को भारी चोट पहुँच जाए ।
यह भी नहीं लिखूंगा कि हमारा देश प्रजातंत्र से चलता है और इसमें सारा श्रेय 'संख्या' को है । जिसकी 'संख्या' ज्यादा ,वह सरकार बनाता है और राज करता है । अब अगर 'संख्या' अनपढ़ों /गंवारों की अधिक है तो स्पष्ट है कि परिणाम क्या होगा । क्या सरकारों को इस पर सोचना नहीं चाहिए , आंकड़े नहीं निकाले जाने चाहिए कि आखिर दिन प्रतिदिन 'संख्या' बढ़ किसकी रही है !
यह भी नहीं लिखूंगा कि समाज में बच्चों का मानसिक विकास इस प्रकार किया जाना चाहिए कि उनके अन्दर लड़कियों और महिलाओं के प्रति सम्मान उत्पन्न हो और किसी भी तरह से यौनिक हिंसा की घटना न होने पाए । ( इससे घृणित और कुछ नहीं हो सकता जो हम आये दिन देखते और सुनते हैं ,मुझे तो पढने में भी शर्म महसूस होती है ) । मेरा एक सुझाव है ,महिलाओं और लड़कियों को बस एक शब्द अंग्रेजी का सदैव कंठस्थ रखना चाहिए ( lest : ऐसा न हो कि ) ,हर परिस्थिति में ऐसी संभावना को अगर याद कर थोड़ा सतर्क रहे तो शत-प्रतिशत ऐसी घटनाओं से बच सकती हैं । वास्तव में लडकियां और महिलाएं कल्पना नहीं कर पाती कि उनके साथ कोई ऐसा भी कर सकता है ,बस इसीलिए दुर्घटना हो जाती है ।
यह भी नहीं लिखूंगा कि लोगों के लिए अब आवश्यक है कि अंधविश्वास छोड़ कर कठिन परिश्रम करें और इस पर विश्वास करें कि किसी भी संकट का हल उनके द्वारा कर्म करके ही निकाला जा सकता है । आसाराम बापुओ के आश्रम में जाने से हल तो नहीं निकलता परन्तु ऐसी घटनाएं अवश्य हो जाती हैं । बच्चों में बचपन से ही ईश्वर में आस्था तो अवश्य उत्पन्न होने दें परन्तु किसी साधू सन्यासी के चमत्कार से उसे सदैव दूर रखें । एक पुरानी कहावत है , "दुआओं से किश्ती नहीं चलती " ।
यह भी नहीं लिखूगा कि जो लोग समाज को बदलने की बात करते हैं उन्हें पहले स्वयं अनुकरणीय कार्य करने होंगे । बिना मतदान किये सरकारों को दोष देने वालों को दंड दिए जाने का प्राविधान होना चाहिए , नहीं तो ऐसे ही नेता चुने जाते रहेंगे और होटलों में गिरफ्तार होते रहेंगे ।
यह भी नहीं लिखूंगा कि उन्नत देश जहां पहुँच गयें हैं और जो हासिल कर चुके हैं हम वैसा अभी सोच भी नहीं पा रहे है । कितना पिछडापन , इतना पिछड़ापन वह भी मानसिक रूप से ।
अंत में यह अवश्य लिखूंगा कि किसी भी निर्णय को लेने से पहले उसके दूरगामी परिणामों के विषय में सोचना अत्यंत आवश्यक है ,छोटे छोटे लक्ष्य बनाकर ,स्वार्थपूर्ति के उद्देश्य से ,हम तरक्की नहीं कर सकते और न ही आत्मनिर्भर हो सकते हैं ।