रोज़ सवेरे पूजा के लिए ५ या ६ फूल गुलाब के तोड़ कर लाता हूँ और इन्हीं ५/६ फूलों को तोड़ने में हाथ की उंगलियाँ महक उठती हैं । फूल तोड़ने बहुत उत्साह से जाता हूँ परन्तु उन्हें तोड़ने में अपराध बोध सा भी होता है । जितने अच्छे वो पौधों में लगे दिखते हैं , उनसे अलग होकर उदास तो फूल भी होते हैं । अब तो मुझे लगता है पौधे भी मुझे देखकर कुछ रुष्ट सा हो जाते होंगे ।
कभी कभी तो तोड़ते समय गुलाब हथेलियों में ही बिखर जाता है । गुलाब ही एक ऐसा फूल है जो बिखरता भी पूरे मन से हैं । एक फूल बिखर इतनी पंखुड़ियां देता है जैसे उसने बिखर कर एक फूल को अनेक कर दिया हो और अपनी खुशबू चारों ओर बिखेर दी हो ।
गुलाब के अलावा सारे फूल अपने आप टहनी से गिरते तो अवश्य हैं परन्तु अलग अलग पंखुड़ियों में बिखरते कभी नहीं अर्थात सीधी सच्ची बात ,"जो बिखर जाए वही तो गुलाब है "।
जीवन में अनेक लोग मिलते हैं ,प्रेम होता भी है और नहीं भी । रिश्ते बनते हैं ,बिगड़ते हैं ,निभते हैं और टूटते भी । परन्तु कुछ लोग ऐसे होते हैं जो आप के जीवन में स्वयं को बिखेर देते हैं अथवा आप किसी दूसरे के जीवन में स्वयं को हर्षपूर्वक बिखरा जाते हैं और जो बिखरता है उसकी खुशबू सारी उम्र उस व्यक्ति को महकाती रहती है जिसके जीवन में वह स्वयं को बिखेर आता है । किसी के प्रेम में स्वयं को पंखुड़ी दर पंखुड़ी अलग कर देना ही शायद समर्पित प्यार है ।
हलकी सी बारिश में ही गुलाब बिखर उठता है और गेंदे का फूल लाटसाहब की तरह तना खडा रहता है ,ऐसा आशीष राय जी ने अपने बगीचे के हवाले से कभी लिखा था कहीं । तभी मन में यह ख्याल आया था कि बिखरने का हुनर तो ईश्वर ने केवल गुलाब को ही दिया है ।
फिर हम भी क्यों न अपने प्रिय के जीवन में बिखर कर गुलाब सा बन जाएँ ।
अब आपकी स्नेहिल टिप्पणियाँ मेरी पोस्ट में बिखर कर अपनी खुशबू अवश्य बिखरा जायेंगी ,इसी उम्मीद के साथ ........।