गुझिया की प्लेट बढ़ाई जा रही थी । सभी लोग क्रम से एक एक कर के ले रहे थे । मौका था एक दोस्त के यहाँ होली मिलन के कार्यक्रम का । मेरे पास आते आते प्लेट में एक अंतिम गुझिया बची थी ( अन्य कोई विकल्प नहीं था ,नोटा की भांति ) , मैंने उठाया तो ,आकार के अनुपात में वह अंतिम गुझिया बहुत हलकी लगी मुझे । मैंने तारीफ़ करी कि अरे यह गुझिया तो बहुत हल्की है और खाने के लिए मुँह में डाला ही था कि वह गुझिया तो दांत के हलके स्पर्श मात्र से ही पिचक कर फूट गई । पुनः हाथों में बटोर कर उसका निरीक्षण किया तो पाया कि वह गुझिया भीतर से खोखली थी । मन ही मन अपनी किस्मत को कोसते हुए मैं उस गुझिया को हाथ में लिए ताकने लगा ।
मुझे वह खोखली गुझिया अचानक से कभी अपना खाली बटुआ तो कभी नेताओं के खोखले वादे तो कभी युवाओं के खोखले इरादे सदृश लगने लगी । गुझिया बाहर से किसी से कम न थी , एकदम सुडौल और आकर्षक ,पर भीतर से एकदम खोखली । सहसा मुझे लगा यह गुझिया ही क्यों ,यहाँ तो सब कुछ इसी की तरह खोखला है । जो लोग सामने बैठे हँस रहे हैं ,उनकी हँसी खोखली है । जिस विषय पर जो चर्चा हो रही है ,वह चर्चा क्या वह विषय ही खोखला है । बार बार जम्हाई लेता मित्र ,जिसके यहाँ सब एकत्र हैं , जब दुबारा चाय को पूछ रहा है तब उसका निमंत्रण ही खोखला है ।
अच्छे खासे सफ़ेद मोटे मोटे मोती जैसे दांत में जब दर्द प्रारम्भ हुआ ,तब डाक्टर को दिखाया तो डॉक्टर बोला ,आपका दांत ही खोखला है । जिसकी जीवन भर सेवा की ,देखभाल की ,वह दांत ही भीतर भीतर बैर रखता रहा मुझसे और खोखला हो गया । माँ-बाप बचपन से लेकर आत्म निर्भर बनाने तक जिन बच्चों को लाड प्यार करते रहते हैं ,बाद में पता चलता है , बच्चों के भीतर उन माँ-बाप के प्रति सम्मान / प्यार खोखला है ।
एक लम्बी घनिष्ठ मित्रता के बाद कभी सहायता की आवश्यकता पड़ने पर ज्ञात होता है कि वह मित्रता ही खोखली थी । अच्छी अच्छी और ईमानदारी की बाते करने वाले लोग हर सरकारी विभाग में खूब मिलते हैं फिर भी उन विभागों की छवि / कार्यप्रणाली क्यों इतनी ख़राब होती है ,एक ही उत्तर ,सब भीतर से खोखले हैं ।
'आवरण संस्कृति ' का जमाना है । जो जितना बाहर से आकर्षक वह भीतर से उतना ही खोखला निकलता है । महिलाओं के सशक्तिकरण की बात करने वाले लोग ही बड़े बड़े 'एन जी ओ' में ,अनेक नारीवादी संस्थाओं में लम्बे लम्बे भाषण देते हैं और अधिक से अधिक यही लोग महिलाओं के शोषण में लिप्त पाये जाते हैं । खोखला चरित्र आज कल चरम पर है और बाज़ार में इसी की धूम है । जो जितना संस्कारी वही अत्यधिक व्यभिचारी कैसे पाया जाता है । ऐसे खोखले संस्कारों की तिलांजलि देनी होगी ।
समाचार पत्रों में , मीडिया में दिखाए जाने वाले सारे के सारे विज्ञापन भीतर से खोखले होते हैं , सरासर झूठ को रंगीनियों में लपेट कर परोसते रहते हैं बस । गली गली खुलने वाले इंजीनियरिंग और एमबीए के स्कूल / कालेज खोखली डिग्री और डिप्लोमा बाँट रहे हैं और बच्चों के भविष्य को साथ ही साथ उनके माँ-बाप के बटुओं को भी खोखला कर रहे हैं ।
आज युवाओं के सपने खोखले हैं ,बिलकुल वैसे ही जैसे उनके वालेट में रखे ढेरों क्रेडिट कार्ड भीतर से खोखले होते हैं । फेसबुक पर स्टेटस की पड़ताल करो तो स्टेटस खोखले निकलते हैं ।
चुनावों का मौसम है ,हर नेता चाशनी लगा कर आश्वासनों और विकास के वायदों की मोटी मोटी गुझिया परोस रहा है और यकीन जानिये ,यह सारी की सारी गुझिया खोखली ही निकलने वाली हैं ।
फिर भी होली के शुभ अवसर पर शुभकामनाएं तो बनती हैं । ( भले ही भीतर से खोखली हों )