गुरुवार, 23 सितंबर 2010

चाहत कैसी कैसी

         चाहा था छू लूं तुम्हें,
इंकार किया था तुमने,
         रोम रोम से वाकिफ़ हूं अब,
मगर वो बात नही ।
                   ।
                   ।
                   ।
           कहीं वो आकर मिटा ना दें ,
इंतज़ार का लुत्फ़,
          कहीं कबूल ना हो जाए,
इलतिजा मेरी।

ये एम एस टी वाले

"सखी सैंयां तो बहुतै जवान हैं,
ट्रेनिया डायन खाय जात है।
               ।
               ।
ट्रेनिया होए गई मोर सौतिया,
पिया का लाद लई गई ना।

"सरकार"

तुम जियो मरो,सड़ो गलो,
हमें क्या,हम तो सरकार हैं,
तुम बहो बाढ़ में दबो मलबे में,
हमे क्या,हम तो सरकार है,
कॉमनवेल्थ में तुम्हे हो शरम,
हमे क्या,हम तो सरकार है,
डेमोक्रेसी चुनी तुमने,
हमे क्या,हम तो सरकार है ॥

शुक्रवार, 10 सितंबर 2010

"ईद मुबारक"

चांद तो रोज़ निकलता है,

हर दिन ईद क्यों न हो,

गले मिले सब रोज़,

हर दिन ईद क्यों न हो,

पाकीज़गी बनी रहे हर रोज़,

हर दिन ईद क्यों न हो,

अल्लाह ईदी दे हर रोज़,

हर दिन ईद क्यों न हो,

मन्नतों का चांद आए,

 झोली में हर रोज़,

हर दिन ईद क्यों न हो॥


बुधवार, 8 सितंबर 2010

सालगिरह एक ब्याह की

ब्याह के पहले,
तुम एक अपरिचित,
वर्षों ब्याह के बाद,
तुम चिर अपरिचित,
कारण-वही चिर परिचित
चाहत तुम्हारी नई सांसों की,
ज़िद मेरी,ज़द मे रहने की
विरासत की सांसो की।

मन

मन आज क्षितिज सा हुआ जान पड़ता है,
दूर से मानो सब समाए मुझमें,
पास आने पर कोई न अपना सा ।