चाहा था छू लूं तुम्हें,
इंकार किया था तुमने,
रोम रोम से वाकिफ़ हूं अब,
मगर वो बात नही ।
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कहीं वो आकर मिटा ना दें ,
इंतज़ार का लुत्फ़,
कहीं कबूल ना हो जाए,
इलतिजा मेरी।
"शब्द भीतर रहते हैं तो सालते रहते हैं, मुक्त होते हैं तो साहित्य बनते हैं"। मन की बाते लिखना पुराना स्वेटर उधेड़ना जैसा है,उधेड़ना तो अच्छा भी लगता है और आसान भी, पर उधेड़े हुए मन को दुबारा बुनना बहुत मुश्किल शायद...।
गुरुवार, 23 सितंबर 2010
ये एम एस टी वाले
"सखी सैंयां तो बहुतै जवान हैं,
ट्रेनिया डायन खाय जात है।
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ट्रेनिया होए गई मोर सौतिया,
पिया का लाद लई गई ना।
ट्रेनिया डायन खाय जात है।
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ट्रेनिया होए गई मोर सौतिया,
पिया का लाद लई गई ना।
"सरकार"
तुम जियो मरो,सड़ो गलो,
हमें क्या,हम तो सरकार हैं,
तुम बहो बाढ़ में दबो मलबे में,
हमे क्या,हम तो सरकार है,
कॉमनवेल्थ में तुम्हे हो शरम,
हमे क्या,हम तो सरकार है,
डेमोक्रेसी चुनी तुमने,
हमे क्या,हम तो सरकार है ॥
हमें क्या,हम तो सरकार हैं,
तुम बहो बाढ़ में दबो मलबे में,
हमे क्या,हम तो सरकार है,
कॉमनवेल्थ में तुम्हे हो शरम,
हमे क्या,हम तो सरकार है,
डेमोक्रेसी चुनी तुमने,
हमे क्या,हम तो सरकार है ॥
शुक्रवार, 10 सितंबर 2010
बुधवार, 8 सितंबर 2010
सालगिरह एक ब्याह की
ब्याह के पहले,
तुम एक अपरिचित,
वर्षों ब्याह के बाद,
तुम चिर अपरिचित,
कारण-वही चिर परिचित
चाहत तुम्हारी नई सांसों की,
ज़िद मेरी,ज़द मे रहने की
विरासत की सांसो की।
तुम एक अपरिचित,
वर्षों ब्याह के बाद,
तुम चिर अपरिचित,
कारण-वही चिर परिचित
चाहत तुम्हारी नई सांसों की,
ज़िद मेरी,ज़द मे रहने की
विरासत की सांसो की।
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