मंगलवार, 11 सितंबर 2018

" चरण स्पर्श ......"


मुझे शिक्षण कार्य को करते हुए लगभग तीस वर्ष हो गए | एक किस्सा अक्सर याद आ जाता है | मेरी कक्षा में तीन विद्यार्थी अत्यंत मेधावी थे | तीनो ही अपने विषयों को भलीभांति पढ़ते एवं समझते थे | प्रदेश स्तर पर उनके द्वारा रैंक प्राप्त करने की संभावनाओं को देखते हुए उन्हें मैंने अपने घर पर अलग से थोड़ा समय देना प्रारम्भ कर दिया | परिणाम अच्छा रहा , उनके द्वारा अच्छी रैंक प्राप्त करने की सम्भावना प्रबल होती गई |

तीनो विद्यार्थी प्रतिदिन मुझे हाथ जोड़कर प्रणाम करते थे | अचानक से एक दिन उनमे से एक विद्यार्थी ने मेरे चरण स्पर्श कर लिए | मुझे थोड़ा आश्चर्य हुआ | धीरे धीरे उस विद्यार्थी की यह प्रतिदिन की आदत हो गई |

अब प्रतिदिन वो एक अकेला विद्यार्थी चरण स्पर्श करता जबकि अन्य दोनों विद्यार्थी हाथ जोड़कर नमस्कार करते थे | चरण स्पर्श करना उसका मुझे कुछ यूँ अच्छा लगने लगा कि अचानक से अन्य दोनों विद्यार्थी मुझे बद्तमीज लगने लगे |

यही  व्यक्ति की आंतरिक कमजोरी होती है |

---एक शिक्षक के मुख से |

शनिवार, 8 सितंबर 2018

" ज़िंदगी का तर्जुमा ....."


Not forever does the bulbul sing

In balmy shades of bowers,
Not forever lasts the spring
Nor ever blossom the flowers.
Not forever reigneth joy,
Sets the sun on days of bliss,
Friendships not forever last,
They know not life,who know not this.

~Khushwant Singh
Train To Pakistan


बुलबुल
रोज़ नही गाती
शजर की नरम छांव मे
वसन्त नही ठहरता
सदा के लिए
फूल खिलने के मौसम
होते है कभी कभी
उल्लास का आलिंगन
यूँ फिर कहाँ
दोस्ती कब ठहरी है
ताउम्र
इतना गर जो नही जानता
फिर वो ज़िन्दगी कहाँ जानता।
( मेरे द्वारा अनूदित )