है मुझे,
थोड़ा सा मुस्कुराई,
तो तुम भी थी।
नज़रें मिली भी,थी कई बार,
ओंठ भी लरजे,
तो थे तुम्हारे।थिरकन भी हुई थी,
कपोलों में,
नाक पर कुछ बूंदे,
पसीने की,
उभर आई थी,
शायद लाजवश।
डोल रही थी,
बालियां कान की,
मन की हाँ-ना का,
आभास कराती हुई।
कोशिश तो कम ही थी,तुम्हारी सम्भालने,
की आंचल,
शायद अभिनय ही था।
साहस कर मैनें देखा तो था,
तुम्हें उस दिन,
और मन भी,
डोल उठा था,
सच में।पर इसमें मेरा क्या,
कसूर ? ?
ना देखता,
तो अपराध करता,
सौन्दर्य की अनदेखी का।
और सबसे बड़ा सच,
तो यह है कि,
आज भी तुम,
चाहती हो,
देखूं मै तुम्हें,
चुपके चुपके।
सोंदर्य से प्रथम परिचय के वक़्त मन में उठने वाले भावों का सुंदर और सजीव चित्रण ..आपका अंदाज -ए- वयां बहुत प्रभावी है
जवाब देंहटाएंसौन्दर्य की अनदेखी का।
जवाब देंहटाएंऔर सबसे बड़ा सच,
तो यह है कि,
आज भी तुम,
चाहती हो,
देखूं मै तुम्हें,
चुपके चुपके।
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और यही चुपके -चुपके देखना आपकी जिज्ञासा को और बढा देता है ..और इस मुकाम पर यह वाजिब भी है ..बहुत सुंदर कविता ...शुक्रिया
waah kya bat hai
जवाब देंहटाएंsondraye ka bakhubi chitran kiya hai
....
... behatreen rachanaa ... bahut bahut badhaai !!
जवाब देंहटाएंkabhi yaha bhi aaye
जवाब देंहटाएं...
www.deepti09sharma.blogspot.com
बहुत खूब!
जवाब देंहटाएंसादर
बहुत खूब सुन्दर प्रस्तुति ।
जवाब देंहटाएंshaandaar
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर कविता ...शुक्रिया
जवाब देंहटाएंvery nice ...khoobsurati se likha hai..
जवाब देंहटाएंPlease visit my blog.
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मासूम सा कनफेशन और सच को बयाँ करते खूबसूरत अहसास!
जवाब देंहटाएंIt's a very beautiful poem. I liked it.
जवाब देंहटाएंबहुत ही भावपूर्ण कविता ... सुंदर प्रस्तुति...
जवाब देंहटाएंनये दशक का नया भारत ( भाग- २ ) : गरीबी कैसे मिटे ?
पर इसमें मेरा क्या,
जवाब देंहटाएंकसूर ? ?
ना देखता,
तो अपराध करता,
सौन्दर्य की अनदेखी का।
vakai main aapka koi kusur nahin hai...
sundarta hoti hi hai dekhne ke liye...!!
bas dekhnevale ki nazar achchhi honi chaahiye !!
sundar evem sadabahar rachna....!!
AAh ..BEAUTIFUL...was missing your poetry.welcome back..
जवाब देंहटाएंबहुत खूबसूरत भावों को संजोया है ... सुन्दर रचना
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर...
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