बुधवार, 12 जनवरी 2011

"सौन्दर्य से प्रथम परिचय"

जहां तक याद,
है मुझे,
थोड़ा सा मुस्कुराई,
तो तुम भी थी।
नज़रें मिली भी,
थी कई बार,
ओंठ भी लरजे,
तो थे तुम्हारे।
थिरकन भी हुई थी,
कपोलों में,
नाक पर कुछ बूंदे,
पसीने की,
उभर आई थी,
शायद  लाजवश।
डोल रही थी,
बालियां कान की,
मन की हाँ-ना का,
आभास कराती हुई।
कोशिश तो कम ही थी,
तुम्हारी सम्भालने,
की आंचल,
शायद अभिनय ही था।
साहस कर मैनें देखा तो था,
तुम्हें उस दिन,
और मन भी,
डोल उठा  था,
सच में।
पर इसमें मेरा क्या,
कसूर ? ?
ना देखता,
तो अपराध करता,
सौन्दर्य की अनदेखी का।
और सबसे बड़ा सच,
तो यह है कि,
आज  भी तुम,
चाहती हो,
देखूं मै तुम्हें,
चुपके चुपके।

17 टिप्‍पणियां:

  1. सोंदर्य से प्रथम परिचय के वक़्त मन में उठने वाले भावों का सुंदर और सजीव चित्रण ..आपका अंदाज -ए- वयां बहुत प्रभावी है

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  2. सौन्दर्य की अनदेखी का।
    और सबसे बड़ा सच,
    तो यह है कि,
    आज भी तुम,
    चाहती हो,
    देखूं मै तुम्हें,
    चुपके चुपके।
    xxxxxxxxxxxxxxxxxxxx
    और यही चुपके -चुपके देखना आपकी जिज्ञासा को और बढा देता है ..और इस मुकाम पर यह वाजिब भी है ..बहुत सुंदर कविता ...शुक्रिया

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  3. मासूम सा कनफेशन और सच को बयाँ करते खूबसूरत अहसास!

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  4. पर इसमें मेरा क्या,
    कसूर ? ?
    ना देखता,
    तो अपराध करता,
    सौन्दर्य की अनदेखी का।
    vakai main aapka koi kusur nahin hai...
    sundarta hoti hi hai dekhne ke liye...!!
    bas dekhnevale ki nazar achchhi honi chaahiye !!
    sundar evem sadabahar rachna....!!

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  5. बहुत खूबसूरत भावों को संजोया है ... सुन्दर रचना

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