रविवार, 3 जनवरी 2016

"अज्ञात ही ज्ञात है ,ज्ञात तो अज्ञात है .......|"


इतना हो ज्ञात अगर ,
कि अज्ञात क्या ,
रातें सारी जाग लीं ,
फिर सुबह क्या ,
दुश्मन भी हॅंस दिए ,
फिर दोस्त क्या ,
मिथ्या यह शरीर ,
फिर जगत क्या ,
ताकता तो है न ,
वह प्यार से ,
फिर गूढ़ क्या ,
और अवसान क्या ।