गुरुवार, 23 अप्रैल 2020

नश्तर...




BCG
--------- 
1980-85 से पहले जन्मे लोगों की बांह का अगर मुआयना किया जाए तो सभी की बांह में ऊपर की ओर तीन निशान (चिलबिल की तरह) ∆ त्रिभुज के तीन कोने की तरह पाये जाएंगे।  यह BCG का जो टीका लगाया जाता था ,उसी का निशान होता है। टीका लगाए जाते समय तो उसके निशान बस तीन बिंदु की शक्ल में करीब करीब होते थे ।पर बाद में आयु बढ़ने के साथ साथ यह आपस मे सोशल डिस्टेन्स बनाते हुए दूर दूर हो जाते हैं। जितनी स्वस्थ बांहे ,उतनी दूर दूर यह निशान पाये जाते हैं।

लड़कियों को इस टीके के निशान के कारण स्लीव लेस ड्रेस पहनने में उलझन होती थी और इसलिये ऐसी ड्रेस पहनना अवॉयड करती थीं। पुरानी फिल्मों की हीरोइन अगर स्लीवलेस पहने हों तो शॉट ऐसे लिए जाते थे कि यह टीके वाली बाँह सामने न दिखाई पड़े।

इस समस्या को ध्यान में रखते हुए अब यह टीके जन्म के तुरंत बाद बच्चों के हिप पर लगाये जाने लगे।

अभी चर्चा चल रही है कि covid 19 से प्रतिरक्षा हेतु यह BCG का टीका दुबारा लगाया जाए।

अब जिसके जहां पहले लगा है ,उसी पर दुबारा यह टीका लगाया जाएगा या सबके ही अब नई प्रचलित जगह पर,राम जाने।

टीका लगने के बाद चलने फिरने में चाल गड़बड़ाई तो लोग समझेंगे कोरोना में बाहर पुलिस वाले से हेलो बोलकर आया है। 😊

एक टीका बचपन मे स्कूल में लगाया जाता था ,चेचक वाला। लाइन में लग कर सब बच्चे आगे बढ़ते रहते थे। यह टीका बाँह पर नही arm पर बीच मे लगाया जाता था। एक लेड पेन ऐसी चीज़ बस स्किन पर रख कर उसे 30 डिग्री घुमा देते थे। कचक से होता था ,दो नन्हे छेद बन जाते थे। किसी किसी का यह टीका लगाए जाने के बाद उठ जाता था। कहते थे उठ गया मतलब अगर उसे टीका न लगता तो चेचक हो ही जाती।

मेरा कभी नही उठा। उस समय उसे नश्तर कहते थे ।

मंगलवार, 21 अप्रैल 2020

और हेयर कटिंग हो गई.....

बड़े बालों से हमे हमेशा ऊब रही। अब इधर कोई चारा न था और लंबे बालों में बहुत उलझन हो रही थी। यहां बहुत सारी पति प्रेमी स्त्रियों (दुर्लभ प्रजाति) ने अपने अपने पति की कटिंग कर डालने की बात बताई और कुछ ने सुझाव भी यही दिया।

अब हमारा भी प्रेरित होना लगभग तय ही हो रहा था। आज फिर मन कड़ा करके हमने भी निवेदन कर ही डाला कि प्रिये ,  मेरे बालों को अपने नाजुक हाथों से संवार दो। मैंने साजो सामान के तौर पर अपनी शेविंग किट की छोटी कैंची, उनकी सिलाई मशीन की बड़ी कैंची, उनका कंघा (मेरे पास कंघा नही है, कभी इस्तेमाल नही करता) उन्हें सौंप दिया।

 एक पुरानी चादर  के बीचों बीच एक बड़ा सा गोला काट कर उसमें अपना सिर घुसा कर अपने चारों ओर चादर ओढ़ लिया। अगर हेलमेट लगा लेते तो चन्द्र यात्री ही लगते। खैर।

अब डाइनिंग टेबल की कुर्सी पर बैठ कर सामने एक आईना रख लिया जिसमे सारी कार्यवाही मुझे दिखती रहे।

इन्होंने मेरे पीछे खड़े होकर कटिंग करना शुरू किया तो मेरा सिर बार बार नीचे झुक जा रहा था। उन्होंने मेरा सिर ऊपर करने के लिये मेरा एक कान अपनी मुट्ठी में यूँ पकड़ लिया जैसे वो कार के गियर शिफ्ट लीवर की मुठिया हो। अब उसी कान को पकड़े पकड़े मेरा सिर हर मनचाही दिशा में घुमाती रही और बड़ी कैंची से कचर कचर बाल काटती रही।

बीच बीच मे यह भी सुनने को मिलता रहा कि हिलाइये नही, कैंची एकदम गर्दन के पास है, आपके सिर में फ़ियास बहुत,आप रोज़ नहाते नही जैसे, बाल में धूल कितनी भरी। इससे ज्यादा सॉफ्ट और साफ बाल तो चेरी (इनकी ससुराल में  बहुत पहले पली एक प्यारी सी पामेरियन )के थे।

जैसे ही मैं आइने में देखने की कोशिश करता कि कैसी कटिंग हो रही ,मेरा सिर ऊपर कर दिया जाता कि अब आखिरी में एक साथ ही देखिएगा।(एकदम आखिरी सुन डर बहुत लग रहा था)

बीच मे मैंने मोबाइल से सेल्फी लेने की कोशिश की तो वार्निंग भी मिलती रही  कि यह सब फेसबुक पर न डालना है न कुछ लिखना है।

सब होने के बाद बोलीं ,उठिए अब ,हो गया।

चौंक कर आंख खोली तो सामने उन्हें खड़ा पाया, बोल रही थीं, उठिए अब खाना लग गया। पक्की  गहरी नींद में थे और डरावना सपना टूट गया।

घबराकर आईना देखा जुल्फें जस की तस लहरा रही हैं। 😊

शुक्रवार, 17 अप्रैल 2020

लॉक डाउन के किस्से......

हाउस कीपिंग के कुछ टिप्स
-----------------------------

१.घर की धूल धक्कड़ की सफाई,झाड़ू पोछा को हमेशा हाउस कीपिंग बोलिये। पिज़्ज़ा टाइप फीलिंग आती भले ही आप चिल्ला खा रहे हों।
२.झाड़ू लगाते समय साथ मे हमेशा डस्ट पैन और डस्ट बिन रखिये। छोटे छोटे टुकड़े में झाड़ू लगाइए और तुरन्त कूड़ा उठाकर डस्ट बिन भरते चलिए। ऐसा करने से ढेरों कूड़ा एक साथ बुहारना नही पड़ेगा। सफाई ज्यादा अच्छी होगी और जल्दी होगी। एक कमरे का कूड़ा दूसरे कमरे में दखल नही दे पाएगा।
३.डस्टिंग हमेशा झाड़ू से पहले करिये जिससे डस्टिंग करने में कोई आइटम शो पीस टाइप टूट टाट कर गिर जाए तो झाड़ू बुहारने में उठ जाए।
४. पोछा वाईपर में ही कपड़ा फंसा कर लगाए। खड़े खड़े पोछा लगाना सरल होता है। बैठ कर पोछा लगाने में मोबिलिटी कम होती है।
५. पोछा लगाने में समय उतना ही खर्च कीजिये जितना कामवाली समय लगाती है नही तो सुनने को मिल सकता कि इत्ती जल्दी कैसे हो गया,कोई कमरा छूट गया क्या।
६. पोछा लगाते समय कमरा बन्द रखिये और थोड़ी देर जमीन पर पसर कर आराम कर लीजिए। पोछा लगाने का मन न हो तो खाली फिनायल या लाइज़ोल छिड़क कर पोछ दीजिये। "खुशबू अच्छे अच्छे राज़ दबा देती है।"
७.झाड़ू पोछे के दौरान बीच बीच मे कमर पर हाथ जरूर रखिये थकान दिखाने के उद्देश्य से। पूछने पर दर्द का अभिनय जरूर कीजिये।
८. इस काम मे जोश कभी न दिखाइए न ही कभी तारीफ सुन कर मुदित होइये।
९.बॉस का फोन आये तो बोलिये , होल्ड करिये सर,अभी हाथ मे झाड़ू बाल्टी होल्ड किये है।
१०.झाड़ू पोछे का काम फिजिकल व्यायाम समझ कर करिये। साथ मे म्यूजिक चला लीजिये तो ज़िन्दगी आसान हो जाएगी।

विशेष : बर्तन मांजने का प्रस्ताव या इच्छा जाहिर की जाए उस पक्ष से तो कभी स्वीकार न करें। यह काम सबसे मुश्किल है। इस काम के लिए उनकी तारीफ करते रहिए, कोशिश कीजिये कि बर्तन कम से कम जूठे करें आप, सुखी रहेंगे।

जनहित में जारी।

गुरुवार, 16 अप्रैल 2020

व्यंग्य.....

आजकल व्यंग लिखने का फैशन है। फैशन कोई भी हो तुरंत कर लेना चाहिए। सूट करे न करे कोई फ़िक्र नही करनी चाहिए। जैसे सेलेब्रिटीज़ रात में भी धूप का चश्मा लगाये रहते हैं ,हमको भी इस फैशन का शौक हुआ। कल चश्मा लगा कर रात एक शादी में गए,वहां कार से उतरते समय सड़क पर कुछ दिख ही नही रहा था ,अचानक नीचे सड़क पर हिफाजत से की गई हाजत पर पांव धंस गया तो थोड़ी देर घास पर और फिर थोड़ा स्वागत में बिछी कालीन पर 'मून वाक' किया तब जाकर आगे बढ़ पाये। इस स्थिति में यही बेस्ट सॉल्युशन होता है।

तो बात व्यंग लिखने की थी। व्यंग तो हो जाता है अपने आप, बस एहसास की जरूरत होती है। सुबह की चाय पीना शुरू ही किया था कि आवाज़ आई, कैसी बनी है । बोला मैंने ,बहुत अच्छी ,एकदम शानदार, आवाज़ में थोड़ा दम ज्यादा दिखा दिया। उधर से आवाज़ आई , अपने आप बना कर पी लिया कीजिये ,ठीक से बता भी नही सकते । मैंने तो हास्य की कोशिश की थी हो गया व्यंग।

"हास्य की प्रतिध्वनि अगर व्यंग हो तो खतरनाक साबित होती है।"
 वो पढ़ा था न विज्ञान में कि ध्वनि की तीव्रता से कांच टूट जाते हैं ,कुछ वैसे ही टूटता है फिर सब।

आईना देखा सुबह सुबह ,अचानक से अपना चेहरा ही नही अच्छा लगा। कई बार रगड़ कर देखा वैसा का वैसे ही निस्तेज काला धब्बेदार। रात को लगाया हुआ पतंजलि जेल और फेयर एंड लवली क्रीम का दाम याद आया और हो गया व्यंग। "as is where is basis" के सिद्धांत को मानकर मन ही मन स्वयं पर संतोष किया।

नहा धोकर तैयार होने के उपक्रम में पैरों में जीन्स फंसा ऊपर खींची, ऊपर आते आते पेट के नीचे रुक गई गोया चढ़ाई पर गियर बदले बिना ऊपर नही चढ़ने वाली। हो गया व्यंग्य। बमुश्किल बेल्ट कस कर लपेटी और साँस रोक कर बक्कल बाँधा , इत्मिनान की साँस ली और फिर छोड़ी। सांस छोड़ते ही बक्कल बेल्ट का साथ छोड़ गया। हो गया व्यंग्य।

नाश्ते में चने की घुघरी थी ,मेरी पसंद। खाते ही पहले कौर में एक चना दधीचि की हड्डी जैसा निकला , कड़क की आवाज़ आई दांतो  से , नानी की भी नानिया रही होंगी याद आ गया और हो गया व्यंग्य।

अब कार स्टार्ट कर निकलने वाला ही था कि देखा एक पहिया तो जमीन से चिपटा पड़ा है एकदम फ्रेंच किस करने के अंदाज़ में। अब कोशिश कर रहा हूँ दोनों को अलग करने की और यह करने में मेरे गले में बंधी टाई ज़मीन पर खिलौने वाला सांप बन आगे पीछे डोल रही है।

हो गया व्यंग्य।

मंगलवार, 14 अप्रैल 2020

कतार यादों की .....

खेत की सूखी मेड़ पर चला जा रहा था। पांव थक चुके थे। अचानक से पांव के नीचे मेड़ की मिट्टी टूट सी गई । सख्त मेड़ भुरभुरी हो गई थी वहां, थके पांव को अचानक आराम सा आ गया और तुम्हारी याद आ गई।

धूप में एक अलग खुशबू होती है और यह खुशबू तब महकती है जब छांव मिलती है। पीपल की छांव में सुलग रही थी कोई धूप बत्ती और तुम्हारी याद आ गई।

कंकरीले रास्ते पर साइकिल चला रहा था। चलाते वक्त दोनों पहिये एक ही लकीर पर न चल पाए , थोड़ा लड़खड़ा सा गया था मैं और तुम्हारी याद आ गई।

टिफिन में बंद मुड़ी हुई रोटियां सीधी कर बारी बारी खाता गया , फिर एक रोटी बच गई और तुम्हारी याद आ गई।

"यादें" डोमिनोज़ सी कतार में लगी होती है , बिखरती हैं  तो आखिर तक पहुंच कर ही ठहरती हैं।


तेरे नाम....

लिख देता हूँ तुमको रोज़
खुद को पढ़ पाने के लिए

नींद में बो देता हूँ तुमको
कुछ ख्वाब उगाने के लिए

दर्द दर्द पे बिछाता हूँ तुमको
मरहम की ठंड पाने के लिए

पूछता जब कोई हासिल क्या ज़िन्दगी में
नाम लिख के तेरा बस बता जाता हूँ मैं।


रविवार, 12 अप्रैल 2020

तेवर.....

हवाई जहाज
हवा में नही
बादल में तैरते हैं।

नाव
पानी मे नहीं
लहरों पे चलती है।

ठोकर
पाँव में नही
कदमो में लगती है।

चोट
दिल को नही
अहम को लगती है।

ज़िक्र
तेरा नही
तेरे तेवर का होता है।

*इश्क
तुझसे नही
तेरे तेवर से है।*

( आसमान पर कुछ लफ्ज़ बिखेर दिए हैं। जब तक उतरूंगा छप चुके होंगे धरती पर)

समय 17.20 (सिंगापुर)
*****14.50(लखनऊ)

गुरुवार, 9 अप्रैल 2020

सिंगापुर....

आज यहां दस दिन हो गए आये हुए। यह भी कोई देश है, न कोई शोर न हल्ला गुल्ला। सड़क पर हॉर्न कोई बजाता ही नही, क्या शो के लिए भोंपू लगा रखा है स्टीयरिंग पर।

सड़क भी पार करते है तो चींटियों की तरह कतार में। अरे भई आदमी हो झुंड में चलो, हाथ देकर किधर से भी निकल जाओ किसी के सामने से।

सड़क में और कांच में कोई फर्क ही नही, पतंजलि वाला न कोई गोबर ,न गोमूत्र ,न कोई गाय, न भैस ,न कुत्ता सड़क पर। यह बिना बछिया दान किये बैकुंठ तो जाने से रहे। चलो इसके चलते बैकुंठ में हम लोगों की सीट तो पक्की है।

पेड़ पौधे इतने उगा रखें है जैसे जंगल मे रहते हों। फ्लाई ओवर के खंभों पर वर्टिकल गार्डन चिपका रखा है। यह नही कि उसी पुल के नीचे फल, सब्जी का डेरा जमा दें। इन लोगों को अक्ल जरा भी नही कि आम पब्लिक प्लेस पर कब्जा कैसे करते हैं।

जान न पहचान , मिलने पर यूँ हँस कर हलो बोल देते है लगता है हम इनके रिश्तेदार ठहरे। एक हम लोग है कि जान पहचान वाले को भी देख कर कन्नी काट जाते है।

आपसे आगे जाने वाला बन्दा लिफ्ट हो , मॉल हो, रेस्तरां हो,आपके लिए डोर खोले रुक जाएगा।  अरे मजा तो तब आता जब वो भड़ाक से दूसरे के मुंह पर दरवाज़ा छोड़ दे।

पुलिस इतने दिनों में दिखी ही नही। पता चला सब अंडर कवर रहते हैं ,मतलब किस भेस में भगवान मिल जाये पता नही।

मैं तो अभी सड़क के किनारे खड़ा माथे पर आई पसीने की बूंद भी नीचे छिड़कने से डर रहा कहीं इनका शीशा मैला न हो जाए।

देशभक्ति का जज़्बा इतना कि बारहवीं की पढ़ाई के बाद लड़कों के लिए दो साल की मिलट्री ट्रेनिंग अनिवार्य है। जिसे देखो वही एकदम फिट फाट दिखता।

न कोई दंगा न कोई फसाद , रोड जाम, न चक्का जाम।यहां के लोगो का और पत्रकारों का ,मीडिया का मनोरंजन कैसे होता होगा। सब के सब एकदम बोर है। कोई इनोवेशन नही। क्या तरक्की करेगा यह देश।

बेटे के अपार्टमेंट में नीचे एंट्री पर कांच का डोर लगा है। वह अपने आप बन्द हो जाता, या तो कार्ड हो आपके पास नही ,तो वही डायलर है उससे फ्लैट नंबर डायल करो, बेटा अपने मोबाइल पर  कॉल अटेंड करेगा,कहीं भी हो, और डोर एक बटन मोबाइल पर ही दबा कर खोल देगा।

अब जो मजा नाम लेकर , चिल्ला कर दरवाजा खुलवाने में है या घण्टी बजाने में है, वो लुत्फ तो मिस हो गया न।

टैप वाटर ही ड्रिंकिंग वाटर है। उसी से नहाओ धोओ वही पियो ,छी छी, न आरओ न फ़िल्टर , कित्ता पिछड़ा देश है।

अभी अभी केला खाने का मन हुआ पर टाल गये, एक बार देख तो लें, यहां के लोग छिलके सहित खाते कैसे हैं केला ,क्योंकि कूड़ा देखने को तरस गये हम तो कहीं भी।

जल्दी लौटते हैं ,यहां रह गए तो बीमार होना तय।

मंगलवार, 7 अप्रैल 2020

यूं ही बस

तस्व्वुर में चूमता रहा खत तेरे यूँ,
सराबों में जैसे ढूंढे अपना अक्स कोई,
हथेलियों पे मेरे निशां तेरे लब के जो है,
वुज़ू जब भी करता है चूम लेता हूँ।


सराबों - illusion , mirage
वुज़ू    -  नमाज़ अता करने से पहले हाथ, पैर धोना

जले हुए खत

काजल से कतरे
तैरते हुए
हवा में
गोया
जले पंख
हो तितली के।

पर ये
तो खत
थे मेरे
जला कर
इश्तहार
कर दिये
तुमने।

#राखएकखतकी

मौसम

बादलों की खुशमिजाजी
यूँ ही नही होती

बेमौसम बारिश
यूँ ही नही होती

जुल्फें उड़ी होंगी
आंखे मिची होंगी

हवाओं में खुशबू
यूँ ही नही होती

कहीं कोई इश्क
मुकम्मल हुआ है
बीती रात

इतनी मासूम सुबह
यूँ ही नही होती।

 #ऑसममौसम

शनिवार, 4 अप्रैल 2020

तुम्हारा चाँद हमारा चाँद

चाँद वही, बादल भी वही,हरे रंग सारे वही,तितलियाँ,कोयल की कूक, दूब की नरमी वही।

एक दूसरे से मिलने पर आँखों के इशारे वही, मुस्कुराते होंठ भी वही।

हवा सुकून देती वैसे ही,पसीने की बूंद का लुढ़कना भी वही।

देशों के बीच दूरी कुछ नही ,धरती की सतह पर महज फासला है कुछ आड़ी बेड़ी रेखाओं का।

"फासले फर्क नही करते, फर्क ही फासले कर देते हैं शायद।"