गुरुवार, 16 अप्रैल 2020

व्यंग्य.....

आजकल व्यंग लिखने का फैशन है। फैशन कोई भी हो तुरंत कर लेना चाहिए। सूट करे न करे कोई फ़िक्र नही करनी चाहिए। जैसे सेलेब्रिटीज़ रात में भी धूप का चश्मा लगाये रहते हैं ,हमको भी इस फैशन का शौक हुआ। कल चश्मा लगा कर रात एक शादी में गए,वहां कार से उतरते समय सड़क पर कुछ दिख ही नही रहा था ,अचानक नीचे सड़क पर हिफाजत से की गई हाजत पर पांव धंस गया तो थोड़ी देर घास पर और फिर थोड़ा स्वागत में बिछी कालीन पर 'मून वाक' किया तब जाकर आगे बढ़ पाये। इस स्थिति में यही बेस्ट सॉल्युशन होता है।

तो बात व्यंग लिखने की थी। व्यंग तो हो जाता है अपने आप, बस एहसास की जरूरत होती है। सुबह की चाय पीना शुरू ही किया था कि आवाज़ आई, कैसी बनी है । बोला मैंने ,बहुत अच्छी ,एकदम शानदार, आवाज़ में थोड़ा दम ज्यादा दिखा दिया। उधर से आवाज़ आई , अपने आप बना कर पी लिया कीजिये ,ठीक से बता भी नही सकते । मैंने तो हास्य की कोशिश की थी हो गया व्यंग।

"हास्य की प्रतिध्वनि अगर व्यंग हो तो खतरनाक साबित होती है।"
 वो पढ़ा था न विज्ञान में कि ध्वनि की तीव्रता से कांच टूट जाते हैं ,कुछ वैसे ही टूटता है फिर सब।

आईना देखा सुबह सुबह ,अचानक से अपना चेहरा ही नही अच्छा लगा। कई बार रगड़ कर देखा वैसा का वैसे ही निस्तेज काला धब्बेदार। रात को लगाया हुआ पतंजलि जेल और फेयर एंड लवली क्रीम का दाम याद आया और हो गया व्यंग। "as is where is basis" के सिद्धांत को मानकर मन ही मन स्वयं पर संतोष किया।

नहा धोकर तैयार होने के उपक्रम में पैरों में जीन्स फंसा ऊपर खींची, ऊपर आते आते पेट के नीचे रुक गई गोया चढ़ाई पर गियर बदले बिना ऊपर नही चढ़ने वाली। हो गया व्यंग्य। बमुश्किल बेल्ट कस कर लपेटी और साँस रोक कर बक्कल बाँधा , इत्मिनान की साँस ली और फिर छोड़ी। सांस छोड़ते ही बक्कल बेल्ट का साथ छोड़ गया। हो गया व्यंग्य।

नाश्ते में चने की घुघरी थी ,मेरी पसंद। खाते ही पहले कौर में एक चना दधीचि की हड्डी जैसा निकला , कड़क की आवाज़ आई दांतो  से , नानी की भी नानिया रही होंगी याद आ गया और हो गया व्यंग्य।

अब कार स्टार्ट कर निकलने वाला ही था कि देखा एक पहिया तो जमीन से चिपटा पड़ा है एकदम फ्रेंच किस करने के अंदाज़ में। अब कोशिश कर रहा हूँ दोनों को अलग करने की और यह करने में मेरे गले में बंधी टाई ज़मीन पर खिलौने वाला सांप बन आगे पीछे डोल रही है।

हो गया व्यंग्य।

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