शनिवार, 28 अगस्त 2010

" शब्दों " की व्यथा


अक्षरों का समूह ’शब्द’ और शब्दों का विन्यास 'भावनायें' ,पर कभी शब्दों की भावनाओं को समझने का प्रयास नही किया गया। ’शब्द’ भी प्रयुक्त होने से पहले सच्चे  पात्र की ही तलाश मे रहते हैं,पर उन्हें  यह स्वतंत्रता  कहाँ? झूठे आदमी के मुंह से ’सच’ शब्द निकलने में लज्जित एवं अपमानित महसूस करता है ।

सच्चाई,ईमानदारी,निष्ठा,देशप्रेम,मानवता, ये सारे शब्द सदैव भयभीत रहतें हैं कि, जब भी इनका प्रयोग होगा ,कुपात्र से ही होगा और उन्हे बलात अपनी भावनाओं के विपरीत कसमसाते हुये अपने अल्प कालिक  जीवन से समझौता करते हुए मरने के लिये निकलना होगा,क्योंकि जब शब्द सुपात्र से निकलते हैं,तभी वे दीर्घायु होते हैं अन्यथा पैदा होते ही मर जाते हैं।                                                                                                                                

कहते हैं बच्चे बिल्कुल अबोध और सच्चे होते है,इसीलिये सारे ’शब्द’ भी बच्चों के मुख से निकलने के लिये ही जैसे होड़  मे रहते है और इसी होड़  मे बच्चों की तोतली भाषा का आनन्द ’शब्द’ भी लेते हैं। ’मां’ शब्द तो जैसे बेचैन रहता है बच्चों के मुहं मे ही रहने के लिये। इसीलिये सबसे अधिक दीर्घायु शब्द है ’माँ ’। अगर  शब्दों को अभिव्यक्ति  की स्वतंत्रता  मिल जाये तब शायद सारे नेता,समाज के ठेकेदार गूंगे से ही हो जाएंगे  और देश पर बच्चों की ही तोतली भाषा का राज होगा,और निश्चित ही वह एक सुखद अनुभूति  होगी।

मंगलवार, 24 अगस्त 2010

" एक सुनहरा धागा.........."


 आज रक्षा-बंधन का पर्व है। बचपन से सुनते देखते आये हैं कि इस दिन बहने बडे प्यार से अपने भाईयों की कलाई पर रंग बिरंगे धागे बांधती है। दरअसल यह बंधन होता है ,स्नेह का,विश्वास का,अधिकार का।  बांधा उसी को जा सकता है, जिस पर अधिकार हो या अधिकार जताना हो। लड़कियां विवाह के बाद अपनी ससुराल चली जाती हैं,मायके मे मां-बाप के बाद भी रिश्ता बना रहे शायद इसी लिये यह परंपरा चलन मे आ गई | ऐसा  मानना कि बहन द्वारा भाई से रक्षा की अपेक्षा मे यह बंधन मनाया जाता है,शायद इसमे भावनाएँ अधिक है,सत्यता कम।

सोमवार, 23 अगस्त 2010

"अपनापन"

                
                गांव लौटे शहर से तो सादगी अच्छी लगी,


                हमको मिट्टी के दिये की रोशनी अच्छी लगी,
                                   
                बासी रोटी सेंक कर जो नाश्ते मे मां ने दी,


                हर अमीरी से हमे वह मुफलिसी अच्छी लगी, 
                                 
                चांद तारों मे कहां ऐसी चमक,


                हमको अपने घर बच्चों की हंसी अच्छी लगी।

बुधवार, 18 अगस्त 2010

"विश्वास"

       
           आज अचानक बचपन मे मां से सुनी एवं आजमाई हुई निम्न लोक कहावत याद आ गई । जिसके अनुसार वह हर दिन अलग अलग , घर से निकलने से पहले कुछ खिला कर भेजती थी और कहती थी सब काम बन जायगा,सब आसान है,खास कर परीक्षा देने जाते समय:--                  
           
          " रवि   को पान,
           सोम को दर्पण (देखना),
           मंगल कीजे गुड अर्पण,
           बुध को धनिया,
           बीफ़े (बृहस्पतिवार) राई,
           सूक  (शुक्रवार) कहे मोहे दही सोहाई,
           सनीचर कहे  जो अदरक पाऊं,
           तीनो लोक जीत घर आऊं। "
         
            सचमुच इससे आत्मविश्वास बहुत बढ जाता था और  सब  काम आसानी से हो भी  जाते थे। पता नही यह मां का विश्वास कहावत पर था या मेरा विश्वास मां पर ।

मंगलवार, 17 अगस्त 2010

बया का घोसला

                   कुदरत ने सभी जीव, जन्तु, पशु,पक्षिऒं मे बया को सर्वश्रेषठ आर्किटॆक्ट बनाया है।बया अपना घर बनाने के लिये प्लाट का चयन ,अनुमानित आकार प्रकार का आकलन बखूबी कर लेती है।घोसला बनने के बाद उसके इर्द गिर्द कितनी जगह एवं हवा मिलेगी ,इसका निश्चित प्राविधान होता है।कहतें है नर बया ही घोंसला बनाता है फिर मादा बया तमाम बने हुए घोसलों  मे से एक को पसंद करती है और उस घोसले के आर्किटॆक्ट से जोडा बनाती है।यानी यहां भी नर  अपनी कला कॊशल से समाज मे सम्मान पाता  हॆ।                                                                                                                                                                 इसी से मिलती जुलती कहानी है "बयान का घोसला" की ,यानी फ़ेसबुक की । तिनका तिनका आप दोस्तों को जोड्तें हैं, वन फ़ाइन मार्निंग देखते हैं पूरा कुनबा बन गया दोस्तों का,वह भी तरह तरह के बयानों (status) से लबरेज,जिसमे फ़लसफ़ा है,देश प्रेम है,करुणा है,वियोग है,रोमांच भी है और रोमांस भी।विशाल घोसला बनने के दॊरान ही नये दोस्तों को आमंत्रित भी करते रहतें हैं ,लुभाने के लिये mutual freinds का बॊनस रहता हैं,कुछ सुंदर चेहरे उसमें हो तो क्या कहने,फ़िर तो वह घोसला सबसे बडा और शानदार elite class का हो गया  समझो,यहां तो आप कोटि  कोटि  प्रयास के बाद भी ignore होते रहेंगे। अभी अभी मॆने भी बिना चेहरे वाली request को ignore कर दिया
                        कभी कभी सोचता हूं अगर इस बयान के घोसले का चित्र बनाया जाये तो शायद कुछ कुछ organic chemistry मे पाये जाने वाले complex hydrocarbon के शॄंखला की शक्ल  का बनेगा जो सभी तिनकों के पासवर्ड पर टिका दिखेगा।

रविवार, 15 अगस्त 2010

एक प्रयास में "मैं" भी

         आज 15 अगस्त 2010 के दिन मुझे भी ब्लाग लिख्ने का शौक चर्रा गया,सो कोशिश आज कर रहा हूं,यह हिन्दी मे लिखने मे मात्रा उलट जाती है ,लगता है जैसे किसी ने उल्टी  मांग निकाल ली हो ,फिर उसे पहचानने मे वक्त लगता है। लोग इसे पढेंगे , हसेंगे, कमेन्ट मारेंगे, मेरा तो सोच सोच कर ही दिल 'ब्लाग ब्लाग' हो रहा है।ब्लाग लिखने मे यह फ़ायदा है कि  इसमें printers devil का भय नही है ,जो लिखो वही छपेगा। बस ! य़ह test proof  है,शुभ रात्रि ।