शुक्रवार, 28 फ़रवरी 2014

" रिटायरमेंट पार्टी ..............."


आज माह का अंतिम दिन है और फिर एक सहकर्मी को सेवा निवृत होना है | हर विभाग की  समय के साथ अपनी भी आयु बढ़ती जाती है | जब विभाग पुराना हो चलता है तब लगभग प्रत्येक माह के अंतिम दिन कोई न कोई रिटायर होता रहता है | रिटायर होने वाले कर्मी के साथी विदाई पार्टी के अयोजन में लगे हैं | गिफ्ट वगैरह का भी इंतज़ाम हो रहा है | रिटायर होने वाले कर्मी के धरम के आधार पर गीता / कुरान की भेंट की भी व्यवस्था की जाती है | खैर यह तो चलन / प्रचलन की बात है ,थोडा भाषण बाजी होगी ,तारीफ में कसीदे पढे जायेंगे ,कर्मी के रिटायर होने से होने वाली रिक्तता का दुख व्यक्त किया जाएगा | मुझे तो यह सब बहुत अव्यवहारिक और मेकेनिकल सा लगता है |

इतनी लम्बी सेवा व्यतीत करने के बाद व्यक्ति को अपार अनुभव हो जाता है | उसने अपने सेवाकाल में अनेक प्रकार की परिस्थितियों का सामना किया होता है | इस अनुभव को अगर कोई संस्था / विभाग बाज़ार से खरीदना चाहे तो उसे कन्सल्टेंट की एक बड़ी कीमत दे कर खरीदना पड़ता है |  जबकि यही अपार अनुभव रिटायर होने वाले व्यक्ति से विभाग को मुफ्त में मिल सकता है | ऐसे अवसर पर रिटायर होने वाले व्यक्ति से उसके जीवन की उपलब्धिया ,जिसे वह समझता हो , दस बारह ऐसी विषम परिस्थितिया जिनसे होकर वह गुजरा हो और कैसे उसने उनसे सामना किया ,इस सब के सम्बन्ध में विस्तार से सुनना चाहिये | अगर हो सके तो उसके अनुभवों का एक 'राइट अप' भी बना कर सभी में बांटना चाहिये | 

'हाइवे' पर सामने से आती कार पर अगर धूल पडी हो तो आगे के रास्ते के धूल भरे होने का अनुमान लग जाता है और अगर कार भीगी हो तो अनुमान हो जाता है कि आगे कहीं बारिश मिलने वाली है | इसी प्रकार लम्बी सेवा पूरी करने वाले व्यक्ति से जब संवाद होता है तब सेवाकाल के दौरान आगे आने वाली परिस्थितियों का स्पष्ट भान हो सकता है |

रिटायर होने वाला व्यक्ति अगर स्वस्थ है तब तो सारी बातें छोड़कर उससे बस स्वस्थ रहने के गुर ही सीखने चाहिये | कोई भी व्यक्ति किसी भी श्रेणी का कार्मिक क्यों न हो ,सभी में कुछ न कुछ गुण अवश्य होते हैं और कितना भी खराब कर्मचारी क्यों न हो ,कभी न कभी उसने विभाग हित में कार्य अवश्य किया होता है | रिटायरमेंट के अवसरों पर पर बस इन्ही गुणो और कार्यों को याद कर रिटायर होने वाले व्यक्ति से कोई न कोई सीख अवश्य प्राप्त करने का प्रयास किया जाना चाहिये |

रिटायर होने वाले व्यक्ति को ईश्वर का आभार व्यक्त करना चाहिये कि उसने अपनी सेवा अवधि भली भांति पूरी की | रिटायर होने के बाद भी वह अपनी और अपने परिवार की जरूरतों के अनुसार अनेक अन्य कार्य भी कर सकता है | रिटायरमेंट तो बस यह जताता है कि उस व्यक्ति के 'लिमिटेड ओवर मैच' के ओवर खत्म हो गए ,यह बिल्कुल भी नहीं जताता कि उस व्यक्ति की क्षमता का ह्रास हो गया |  

आज सेवा निवृत होने वाले श्री पी एन मिश्रा जी मेरे पास ही मेरे बड़े बाबू थे | उनकी मूँछे बहुत शानदार हैं | ईश्वर उन्हे स्वस्थ और दीर्घायु रखें |
 

शुक्रवार, 21 फ़रवरी 2014

" किसी 'कबूतर' का फोन है ........"


आफिस में आये एक आगंतुक के मोबाइल की घंटी बजी तो सहसा मेज पर मेरे सामने ही रखे उनके मोबाइल के स्क्रीन पर मेरी नज़र पड़ी तो देखा उस पर लिख कर आ रहा था ,'कबूतर कालिंग' | उनकी बात खत्म होने के बाद मैने कौतूहलवश पूछा ,यह कबूतर नाम क्या हुआ | उसने बताया ,अरे कुछ नहीं ,बस वह बातें ज्यादा करता रहता है ,गुटुर गूँ ,गुटुर गूँ की तरह ,बस उसका नाम कबूतर फीड कर लिया | कबूतर लिखा देख कर तुरंत ध्यान आ जाता है कि उससे बात जल्दी खत्म करनी है नहीं तो बहुत समय खराब हो जायेगा | 

यह बिल्कुल सच बात है कि अब लोग अपने मोबाइल की 'कॉन्टैक्ट लिस्ट' में लोगों के नंबर उनके नाम से कम उनके आचरण / व्यवहार के आधार पर अधिक रखते हैं | अगर आपको अपने विषय में जानकारी लेना हो कि आपके विषय में लोग क्या और कैसा सोचते हैं तो फौरन मौका पाते ही दूसरों के मोबाइल में आपका नाम किस तरह से संजोया गया है ,यह जानने की आवश्यकता है | मौका पाते ही उसके मोबाइल को अपने हाथ में लेकर अपने मोबाइल से रिंग करें और देखें कहीं आपका नाम 'खडूस' / 'बोर' / 'चालू' / 'कंजूस' इत्यादि तो नहीं लिखा आ रहा है |  

सबसे सीधा तरीका तो यही है कि जिसका नंबर फीड करना हो उसका ईमानदारी से पूरा नाम लिखा जाना चाहिये परंतु अधिकतर लोग यही चाहते हैं कि मोबाइल पर काल आने के साथ ही काल करने वाले व्यक्ति की सही मनोदशा भी तुरंत सामने आ जाये जिससे उसी के अनुसार उससे बात की जाये | बस इसी के चक्कर में लोग व्यक्ति के आचरण / व्यवहार के अनुसार नाम बदल कर फीड कर लेते हैं | कुछ लोग परिचय छिपाने के उद्देश्य से भी नाम बदल कर फीड करते हैं जिससे कि मोबाइल किसी और के हाथ लगने पर किसी के विषय में अनावश्यक जानकारी न हो जाये | एक साहब ने अपने किसी 'खास मित्र' के नाम के स्थान पर 'मिस्ड' लिखा हुआ था ,काल आने पर 'मिस्ड कालिंग' लिख कर आता था ,अटेंड कर लिया तो ठीक अन्यथा 'मिस्ड काल' स्क्रीन पर दिखता रहता था ,किसी के समझ से भी बाहर होगी यह बात |  

ऐसे विभाग की सेवा में हूँ कि प्रायः लोगों ने मौके बे मौके रात बिरात तंग भी किया और उलूल जुलूल भी सुनाया ,ऐसे में उनके नंबर के आगे NU लिख देता था और भविष्य में कभी उनका फोन नहीं उठाया (NU)। यह तब की बात है जब अटेंड करने के भी पैसे देने पड़ते थे । विभागीय फोन होने के कारण बंद नहीं कर सकता था । अब तो ऐसे लोगों से बचने के अनेक फीचर्स भी आ गए हैं । 

प्रेमी / प्रेमिका आपस में किस तरह से एक दूसरे का नाम फीड करते हैं ,देखकर विश्लेषण किया जाये तो बहुत कुछ सच सामने आ सकता है | जो साफ़ साफ़ नाम लिखेगा वह सच्चा होगा | जो छिपा कर लिखता है वह अवश्य कुछ न कुछ छिपा ले जाता है सारी दुनिया से भी और अपने प्रेमी / प्रेमिका से भी | 

बच्चे अपने माँ-बाप का नाम अपने फोन में किस प्रकार फीड करते हैं ,यह उनके आपस के सम्बंध को बखूबी दर्शाता है | कुछ बच्चे अपने पिता के नाम को 'मुगले-आज़म' भी लिख कर रखते हैं | कुछ 'बिग बॉस' ,तो कुछ 'थर्ड आई' भी लिखते हैं | 

अब जबसे 'व्हाट्सएप' आया एक समस्या और हो गई ,अगर किसी नें किसी दोस्त का नाम किसी अन्य नाम से फीड कर रखा है मसलन अपने किसी 'खास दोस्त' का नाम 'बसंत' लिख कर फीड किया है और जैसे ही बसंत जी 'व्हाट्सएप' पर आये उनकी फोटो यहाँ दिख गई और 'बसंत' के नाम पर फोटो असली वाली 'बसंती' की आ गई | तो दोस्तों थोड़ा ध्यान देने की आवश्यकता है ,बताना मेरा फ़र्ज़ था ,बाकी आप सब स्वयम् समझदार हैं | 

उपर चित्र में दर्शित मोबाइल निवेदिता का है जिसमें मेरा मोबाइल नंबर और आफिस का नंबर किस प्रकार से दर्ज़ है आप स्वयम् देख सकते हैं | ('बप्पा' मतलब 'बच्चों' के 'पप्पा' )

गुरुवार, 13 फ़रवरी 2014

एक चीज़ होती है ........."कनेक्ट"


तमाशाई जब तमाशा दिखाता है तो तमाशा दिखाने से पहले ऐसी बातें कहता है जिससे वहाँ भीड़ में खड़े देखने वाले लोग उस तमाशाई से अपना जुड़ाव महसूस कर सकें । जैसे ,वह कहता है सभी लोग अपनी जेब से हाथ बाहर निकाल लें ,हाथ आपस में न बांधे या उसकी आँखों में लगातार न देखें । यह सब साधारण सी बातें है और उस दौरान अगर कोई इनका पालन न करें तो कोई ख़ास बात नहीं पर ऐसा नहीं होता । सभी लोग इन्ही छोटी छोटी बातों को मान कर उस तमाशाई से जुड़ाव महसूस करते हैं और इसी जुड़ाव को "कनेक्ट" कहते हैं । बहुत साधारण सी बातें ,जिन्हे मान लेने में कोई व्यय नहीं ,कोई भार नहीं और कुछ मनोरंजन ही होता है ,ऐसे "कनेक्ट" बनाने में बहुत कारगर साबित होती हैं ।

बाबा रामदेव ने बहुत सरलता से सबको दोनों हाथों के नाखून आपस में रगड़ते रहने की सलाह यह कह कर दी कि उससे उन सभी लोगो के बाल काले हो जायेंगे । देखते ही देखते जिसे देखो वह आपस में नाखून रगड़ते नज़र आने लगा ,क्या अमीर और क्या गरीब । यह "कनेक्ट" था बाबा रामदेव का ,भीड़ के साथ और यह प्रयोग रंग लाया उनके लिए ।

लालू यादव का मसखरा पन , बोलने की शैली / अंदाज़ एक तरीका हुआ करता था जनता से "कनेक्ट" स्थापित करने का और यह काफी सफल भी रहा ,जिसने उन्हें 'आई आई एम' तक लेक्चर लेने भी पहुंचा दिया ।

अन्ना हजारे की सादगी ,लकदक सफ़ेद पहनावा ,सरल बोलचाल की भाषा ,उनका जिदपना ही "कनेक्ट" था जनता के साथ । केजरीवाल ने इस "कनेक्ट" को भलीभांति पहचान लिया और सादगी के साथ जनता की उन समस्याओं को लेकर अपनी चिंता जताने लगे जिससे वह जनता के साथ सीधा सीधा जुड़ गए । जब जनता को लगता है कि उनका नेता उन्ही की तरह बिजली ,पानी, दवा, अस्पताल, घर, बसेरा ,स्कूल आदि की समस्याओं की सार्थक बात कर रहा है तब उस नेता को वो अपने बीच का ही महसूस करते हैं और यही महसूसपना "कनेक्ट" का काम करता है ।

चाय एक बहुत ही साधारण सी चीज़ है पर मोदी ने इसकी "कनेक्ट" बनाने की क्षमता को पहचान लिया और पूरे देश भर में नमो चाय की गूँज हो गई । जो जितना स्थाई "कनेक्ट" स्थापित कर ले जाता है उसी में स्थायित्व अधिक होता है । यही बात सिनेमा को और सिनेमा में हीरो को लोकप्रिय बनाने में भी होती है । अमिताभ बच्चन में आम पब्लिक अपनी छवि देखती थी और पल भर में उनसे "कनेक्ट" स्थापित हो जाता था । इस "कनेक्ट" बनाने के गुण में जो जितना माहिर वह उतना करिश्माई सिद्ध होता है ।

राहुल गांधी इसी "कनेक्ट" के खेल में सफल नहीं हो पा रहे हैं , जबकि उनकी दादी और परनाना इस फन के सिद्धहस्त सिकंदर थे ।

यह "कनेक्ट" कुछ कुछ हिप्नोटाइज़ करने जैसा तिलस्मी होता है और चिर स्थायी नहीं होता क्योंकि पोल खुलने में देर नहीं लगती । इस "कनेक्ट" का लाभ लेकर सत्ता में आने के बाद इस मौके का सही उपयोग करने वाला ही सफल राजनीति कर सकता है , जो केजरीवाल नहीं कर पा रहे हैं । 

आज संसद में मिर्ची पाउडर स्प्रे करने में भी नेताओं का 'अपनी जनता' से सीधा सीधा "कनेक्ट" स्थापित करने का ही प्रयास था । विरोध करने वाले नेता सीधा सीधा सन्देश देना चाह रहे थे कि नया राज्य बनाने वालों की वे आँखे तक फोड़ डालेंगे भले ही उसमे उनकी स्वयं की भी आंखे चली जाएँ । अब चूंकि मिर्च एक बहुत ही साधारण सी चीज़ है और उसके प्रयोग से किसी की जान तो जाने वाली नहीं परन्तु इस घटना से उन विरोध करने वाले नेताओं का अपनी जनता से एक अच्छा और सीधा "कनेक्ट" स्थापित हो गया ।

अर्णब गोस्वामी का इंटरव्यू क्यों मोह लेता है लोगों को क्योंकि उनके सवालों में आम आदमी से एक "कनेक्ट" स्थापित होता दिखाई पड़ता है ,बिलकुल सीधा और सपाट सा ,उदाहरण के तौर पर एक इंटरव्यू में जब राहुल अर्णब गोस्वामी के सीधे सवालों के जवाब नहीं दे पाते तब आम आदमी अंदर ही अंदर खुश होता है यह सोचकर कि राहुल तो बिलकुल साधारण से इंसान है जो इतना भी नहीं बता सकते ।

रही बात सिद्धांतों के सही और गलत होने की या संवैधानिक और असंवैधानिक होने की तो, वह सब तो सापेक्ष बाते हैं ,निरपेक्ष कुछ भी नहीं ।

लेखक  / लेखिकाएं / कहानीकार / उपन्यासकार / कवि / कवियित्री / शायर / शायरा / शिक्षक / शिक्षिकाएं वही सफल और प्रसिद्द हुए हैं जिन्होंने अपने पात्रों से ,अपने पाठकों से और अपने शिष्यों से एक सधा हुआ "कनेक्ट" स्थापित किया है ।

यह बात भी सच है कि जमीन से जुड़ा हुआ और वास्तविकता को जानने वाला व्यक्ति ही एक बेहतर "कनेक्ट" स्थापित कर सकता है । 

शुक्रवार, 7 फ़रवरी 2014

" पुच्ची बनाम ............चुम्मा "


'फुरसतिया' आजकल प्रतिदिन सवेरे सूरज और उनकी किरणों के बीच होने वाली बाल सुलभ अठखेलियों का वर्णन करते हैं । उसी वर्णन के क्रम में आज उन्होंने सूरज और उनकी किरणों के मध्य 'फ़्लाइंग किस' यानि 'उड़न चुम्मा' का उल्लेख कर दिया । बाद में उन्हें आभास हुआ कि पिता-पुत्री के बीच 'चुम्मा' शब्द के स्थान पर 'पुच्ची' का प्रयोग अधिक उचित है और फिर उन्होंने अपने वर्णन में अभीष्ट संशोधन भी कर दिया ।

बस यहीं से बात चल निकली कि 'चुम्मा' और 'पुच्ची' में क्या और कितना अंतर है । स्नेह दर्शाने के लिए सर्वप्रथम किसी को पुचकारा जाता है और पुचकार शब्द पुचकारने के दौरान उपजे पुच्च पुच्च की ध्वनि से ही बना है । पुचकारने दुलराने के साथ साथ किसी को स्नेहवश गाल या माथे पर चूमने को ही 'पुच्ची' लेना कहा गया है  । 'पुच्ची' पुचकार का ही लघु रूप है । इसमें वात्सल्य रस कूट कूट कर भरा हुआ है । माताएं अपनी संतान को बलैय्या ले ले कर उनकी 'पुच्ची' लेती रहती हैं और कभी खट्टी कभी मीठी 'पुच्ची' कह कर मुग्ध होती रहती हैं । 'पुच्ची' में मातृत्व लुटा देने का भाव निहित होता है । बच्चे की 'पुच्ची' लेने में जो सुख प्राप्त होता है उससे कहीं अधिक आनन्द यदि बच्चा अपनी माँ / पिता की 'पुच्ची' ले ले तो प्राप्त होता है । मासूम से बच्चे के होंठों का स्पर्श अपने गालों पर माँ पाकर हर्षविभोर हो उठती है । 'पुच्ची' एक अत्यंत मासूम और निश्छल भाव उत्पन्न करती है । इसमें लोच है । ईश्वर के होने की अनुभूति जैसी होती है ।

'चुम्मा' सीधे सीधे चूमने / चुम्बन लेने का वृहद रूप है । वयस्कों के मध्य घटित होने वाला एक सामान्य प्रेम भाव है । प्रेम के दौरान समर्पित होने का भाव इसी से प्रकट होता है । इसमें अधिकार अधिक है और निवेदन अत्यंत कम और कभी कभी 'बलात' का भाव भी इसमें निहित होता है । प्रेम प्रक्रिया पूर्ण करने में 'चुम्मा' प्रथम सोपान है ,जबकि स्नेह की श्रेणी में 'पुच्ची' अंतिम सोपान है ।

'चुम्मा' स्मृति बन बहुत समय तक मन को मन ही मन दुलराता रहता है जबकि 'पुच्ची' का भाव बस क्षणिक होता है । अंग्रेजी में अंतर स्पष्ट करें तो 'पुच्ची' 'किस्सी'  है और 'चुम्मा' एक 'किस' । 

रविवार, 2 फ़रवरी 2014

" वो सात भैंसे ......."


अभी अभी मैने अपनी श्रीमती जी से पूछा कि अगर नाश्ते में देर हो तो मैं एक पोस्ट लिख लूँ | इस पर उन्होने पूछा क्या हो गया , अरे वो मंत्री जी क़ी भैंसे गुम हो गईं हैं न उसी पर कुछ लिखना चाह रहा था , मैने बताया | पहले आपके दिमाग में गोबर भरा रहता था , अब भैंसे आ गई , अब तो भगवान ही मालिक है आपका , श्रीमती जी मन ही मन बोली होंगी शर्तिया | 

पता चला है कि मंत्री जी क़ी सात भैंसे एकदम 'काली चिट्टी' और 'हट्टी कट्टी' बीती रात घर से गायब हो गईं | अब पता नहीं अपने आप वो सब भाग गईं या कोई उन्हे भगा ले गया | सारा पुलिस महकमा और मीडिया हलकान परेशन घूम रहा है | ज्यादातर लोगों का मानना है कि 'उनकी' भैसों को कोई भगा कर नहीं ले जा सकता , यह दुस्साहस किसी के बस का नहीं ,वो भैंसे खुद ही खूँटा तुड़ाकर भाग गई होंगी | 

अब चूंकि यह भैसे किसी एक राजनैतिक दल के मंत्री जी क़ी हैं तो लोग कयास लगा रहे हैं कि ऐसा न हो उन भैंसों का मन दल बदल करने का हो गया हो | आईपीएल (इंडियन पॉलिटीशियन लीग)-२०१४ सन्निकट हैं सो भैंसे भी बेहतर विकल्प क़ी तलाश में दायें बायें पगुराना चाह रही होंगी , आखिर बिन्नी को भी दूध पिलाया होगा इनकी बिरादरी ने कभी ,सो असर तो आना ही है न बिन्नी का उन पर |

वह 'सातों' किसी दूसरी राजनैतिक पार्टी में भी शामिल हो सकती हैं | उन पर दल बदल कानून भी नहीं लगेगा | सुना है मोदी भी फिराक़ में हैं , चाय के लिये दूध सरप्लस हो जायेगा | बसपा इन्हें रंग रोगन कर 'हाथी' बना सकती है | कांग्रेस इन्हे ले सकती है राहुल बाबा के लिये ,गाँवो को करीब से समझने के लिये , केजरी भी मौके की ताड़ में है कि कह सके , आप क़ी भैंसे 'आप' क़ी हो गईं | 


अभी अभी पता चला है मंत्री जी ने विग्यापन छपवाया है कि " प्रिय भैंसे ,तुम सब जहां कहीं भी हो ,वापस घर आ जाओ ,तुम्हे कोई कुछ भी नहीं कहेगा | तुम लोगों के बगैर घर सूना है | तुम्हे हम बिना किसी नार्को टेस्ट  / वर्जिनिटी टेस्ट के ही स्वीकार कर लेंगे " | वैसे उन्होने दूसरे दलों द्वारा किसी बड़े षड्यंत्र रचे जाने का भी आरोप लगाया है |  

यह भी खबर है कि अमेरिकन मैगज़ीन 'टाइम' ने उन सात भैसों का फोटो अपने कवर पेज पर छापने का निर्णय लिया है ,वह भी निर्वस्त्र | 

यह पोस्ट लिखे जाने तक उन सातों का कोई सुराग न मिल पाने की खबर है |