शनिवार, 30 नवंबर 2019

.....धुंधलाता गाँव



धुंधलाता गांव
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थोड़ा सा गांव ,शहर क्या गया,
कीमती हो फिर वो अनमोल हो गया।

पगडंडी सी राहों पे रुका था कभी,
सारे शहर का वो रास्ता आम हो गया।

शहर उलझा सा ,उसके पांवो में जब,
जैसे लिपटा हो सेवार, तलाब में अब।

शहर के छोर पर चमके, जब जुगनू कोई
तलाशता हो गांव जैसे, अपनी रोशनी कोई।

©अमित श्रीवास्तव


शुक्रवार, 10 मई 2019

" एक शब जो नज़्म बनी ........"



लफ्ज़ लफ्ज़ तेरा बेचैन करता रहा रात भर,
ख़त में लिख दे इन्हें या नज़्म का पहरा कर दे।

तकाज़ा दिल का था फिर इल्जाम जुबां पे क्यों,
मौसम बंजर बहुत इन आँखों को अब झरना कर दे।

दीदारे जुनू न रहा कोई बात नही अब 'अमित',
पलकें मचलती है बस इत्ते इल्म का सौदा कर ले।

दस्तक दें जब कभी सांसें मेरी दिल पे तेरे
लबों से चूम लेना नाम मेरा इत्ता सा वादा कर ले।

बुधवार, 6 मार्च 2019

" अभिनन्दन ......."


मूछों की इस अलगनी पर
टंगे थे कतार से
कितने भरोसे
कितने वादे
वक्त ऐसा हुआ जब
बस अंत था सन्निकट
मूँछो ने गुदगुदाया
जोश फिर थम न पाया
जाती है जान
तो जाय
नक्शा दुश्मन को
न मिल पाए
जहाज गिरा दुश्मन का
जमीन पर
वो नभ से
नभतर हो गया।