आज रक्षा-बंधन का पर्व है। बचपन से सुनते देखते आये हैं कि इस दिन बहने बडे प्यार से अपने भाईयों की कलाई पर रंग बिरंगे धागे बांधती है। दरअसल यह बंधन होता है ,स्नेह का,विश्वास का,अधिकार का। बांधा उसी को जा सकता है, जिस पर अधिकार हो या अधिकार जताना हो। लड़कियां विवाह के बाद अपनी ससुराल चली जाती हैं,मायके मे मां-बाप के बाद भी रिश्ता बना रहे शायद इसी लिये यह परंपरा चलन मे आ गई | ऐसा मानना कि बहन द्वारा भाई से रक्षा की अपेक्षा मे यह बंधन मनाया जाता है,शायद इसमे भावनाएँ अधिक है,सत्यता कम।
"शब्द भीतर रहते हैं तो सालते रहते हैं, मुक्त होते हैं तो साहित्य बनते हैं"। मन की बाते लिखना पुराना स्वेटर उधेड़ना जैसा है,उधेड़ना तो अच्छा भी लगता है और आसान भी, पर उधेड़े हुए मन को दुबारा बुनना बहुत मुश्किल शायद...।
मंगलवार, 24 अगस्त 2010
" एक सुनहरा धागा.........."
आज रक्षा-बंधन का पर्व है। बचपन से सुनते देखते आये हैं कि इस दिन बहने बडे प्यार से अपने भाईयों की कलाई पर रंग बिरंगे धागे बांधती है। दरअसल यह बंधन होता है ,स्नेह का,विश्वास का,अधिकार का। बांधा उसी को जा सकता है, जिस पर अधिकार हो या अधिकार जताना हो। लड़कियां विवाह के बाद अपनी ससुराल चली जाती हैं,मायके मे मां-बाप के बाद भी रिश्ता बना रहे शायद इसी लिये यह परंपरा चलन मे आ गई | ऐसा मानना कि बहन द्वारा भाई से रक्षा की अपेक्षा मे यह बंधन मनाया जाता है,शायद इसमे भावनाएँ अधिक है,सत्यता कम।
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