मंगलवार, 14 अप्रैल 2020

कतार यादों की .....

खेत की सूखी मेड़ पर चला जा रहा था। पांव थक चुके थे। अचानक से पांव के नीचे मेड़ की मिट्टी टूट सी गई । सख्त मेड़ भुरभुरी हो गई थी वहां, थके पांव को अचानक आराम सा आ गया और तुम्हारी याद आ गई।

धूप में एक अलग खुशबू होती है और यह खुशबू तब महकती है जब छांव मिलती है। पीपल की छांव में सुलग रही थी कोई धूप बत्ती और तुम्हारी याद आ गई।

कंकरीले रास्ते पर साइकिल चला रहा था। चलाते वक्त दोनों पहिये एक ही लकीर पर न चल पाए , थोड़ा लड़खड़ा सा गया था मैं और तुम्हारी याद आ गई।

टिफिन में बंद मुड़ी हुई रोटियां सीधी कर बारी बारी खाता गया , फिर एक रोटी बच गई और तुम्हारी याद आ गई।

"यादें" डोमिनोज़ सी कतार में लगी होती है , बिखरती हैं  तो आखिर तक पहुंच कर ही ठहरती हैं।


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