"अज्ञात ही ज्ञात है ,ज्ञात तो अज्ञात है .......|"
इतना हो ज्ञात अगर ,
कि अज्ञात क्या ,
रातें सारी जाग लीं ,
फिर सुबह क्या ,
दुश्मन भी हॅंस दिए ,
फिर दोस्त क्या ,
मिथ्या यह शरीर ,
फिर जगत क्या ,
ताकता तो है न ,
वह प्यार से ,
फिर गूढ़ क्या ,
और अवसान क्या ।
बहुत सुन्दर
जवाब देंहटाएंब्लॉग बुलेटिन की आज की बुलेटिन, सियाचिन के परमवीर - नायब सूबेदार बाना सिंह - ब्लॉग बुलेटिन , मे आपकी पोस्ट को भी शामिल किया गया है ... सादर आभार !
जवाब देंहटाएंअच्छी चिंतन प्रस्तुति
गहराई से आध्यात्मिक चिंतन किया है ।seetamni. blogspot. in
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