अक्स कुछ यूँ था उनका कि उनसे रश्क हो गया,
न जाने कब उन्हीं से क्यूँ तब इश्क हो गया ।
आँखों ही आँखों में उस दिन जब इज़हार हो गया ,
सुर्ख गाल उनका खुद इश्के-इश्तिहार हो गया ।
नज़रें मिली उन शोख नज़रों से जब मेरा तो वुज़ू हो गया ,
उनसे इश्क थी इबादत मुझको इश्क अब इबादत से हो गया ।
कल ख्वाब की नींद में एक गुनाह ख्वाहिश सा हो गया ,
पलकों को उनकी चूम लबों से एक दास्ताँ लिख गया ।
चंद अल्फ़ाज़ थे या थे कुछ हर्फ़ ,सब न जाने कहाँ खो गया ,
वक्त के रहल पे एहसास उनका एक किस्सा सजा गया ।
न जाने कब उन्हीं से क्यूँ तब इश्क हो गया ।
आँखों ही आँखों में उस दिन जब इज़हार हो गया ,
सुर्ख गाल उनका खुद इश्के-इश्तिहार हो गया ।
नज़रें मिली उन शोख नज़रों से जब मेरा तो वुज़ू हो गया ,
उनसे इश्क थी इबादत मुझको इश्क अब इबादत से हो गया ।
कल ख्वाब की नींद में एक गुनाह ख्वाहिश सा हो गया ,
पलकों को उनकी चूम लबों से एक दास्ताँ लिख गया ।
चंद अल्फ़ाज़ थे या थे कुछ हर्फ़ ,सब न जाने कहाँ खो गया ,
वक्त के रहल पे एहसास उनका एक किस्सा सजा गया ।
आपकी इस प्रस्तुति का लिंक 24-03-2016 को चर्चा मंच पर चर्चा - 2291 में दिया जाएगा
जवाब देंहटाएंधन्यवाद
सार्थक प्रस्तुति...
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