दिल से अपने पूछा,
एक बार और,
परख लूं उन्हें।
बड़ी मासूमियत से,
बोला परख ना लो,
पर कितनी बार।
मैने कहा,
शायद इस बार,
मैं ही गलत होऊं।
मेरा दिल बोला,
कितने भोले हो तुम,
अपने नरम दिल को,
हवाले करते हो उनके,
बार बार।
निचुड़ से जाते हो,
हो जाते हो,
लहु लुहान और,
परखने के फ़ेर में,
शायद तुम्ही,
परखे जाते हो,
हर बार।
... bahut khoob !!
जवाब देंहटाएं''..शायद तुम्ही,
जवाब देंहटाएंपरखे जाते हो,
हर बार"
यही तो सच है
सादर
बिल्कुल सच कहता हर एक शब्द ।
जवाब देंहटाएंbejod ehsaas
जवाब देंहटाएंamit ji
जवाब देंहटाएंbahut khoob kya badhiya rachna prastut ki hai,aapki kavita ki antim panktiyan hi saari rachnao ka nichod hain .bahut hi sachaur bahut hi badhiya---
badhai pahli bar aapke blog par aai hun par man bahut hi prasannta se bhar utha,sach me.
atishyokti na samjhiyega------
poonam
kya bat hai
जवाब देंहटाएंbahut khub
achhi rachna ke liye badhaye
....
एक खुबसूरत रचना
जवाब देंहटाएंमेरा दिल बोला,
जवाब देंहटाएंकितने भोले हो तुम,
अपने नरम दिल को,
हवाले करते हो उनके,
बार बार।
निचुड़ से जाते हो,
हो जाते हो,
लहु लुहान और,
परखने के फ़ेर में,
बार बार यूँ ही परखा जाता है और मिलती है एक आह ... अच्छी प्रस्तुति
बहुत खुबसूरत अभिव्यक्ति .....
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