सोमवार, 10 जनवरी 2011

"कुछ दिल की"



दिल से अपने पूछा,
एक बार और,
परख लूं उन्हें।
बड़ी मासूमियत से,
बोला परख ना लो,
पर कितनी बार।
मैने कहा,
शायद इस बार,
मैं ही गलत होऊं।
मेरा दिल बोला,
कितने भोले हो तुम,
अपने नरम दिल को,
हवाले करते हो उनके,
बार बार।
निचुड़ से जाते हो,
हो जाते हो,
लहु लुहान और,
परखने के फ़ेर में,
शायद तुम्ही,
परखे जाते हो,
हर बार।

9 टिप्‍पणियां:

  1. ''..शायद तुम्ही,
    परखे जाते हो,
    हर बार"

    यही तो सच है

    सादर

    जवाब देंहटाएं
  2. amit ji
    bahut khoob kya badhiya rachna prastut ki hai,aapki kavita ki antim panktiyan hi saari rachnao ka nichod hain .bahut hi sachaur bahut hi badhiya---
    badhai pahli bar aapke blog par aai hun par man bahut hi prasannta se bhar utha,sach me.
    atishyokti na samjhiyega------
    poonam

    जवाब देंहटाएं
  3. मेरा दिल बोला,
    कितने भोले हो तुम,
    अपने नरम दिल को,
    हवाले करते हो उनके,
    बार बार।
    निचुड़ से जाते हो,
    हो जाते हो,
    लहु लुहान और,
    परखने के फ़ेर में,

    बार बार यूँ ही परखा जाता है और मिलती है एक आह ... अच्छी प्रस्तुति

    जवाब देंहटाएं