तुम्हारी ही आँखों में,
तुमने आँखें क्यों खोली |
मै तो बुन रहा था खामोशी,
अपनी नज़रों से,
तुमने जुबान क्यों खोली |
तुम मुस्कुराई थीं,
कुछ आधा सा,
सो देखो सारे फूल,
अधखिले से |
लकीरें खींच रहीं थीं,
तितलियाँ
मन पर तेरे जिस्म की,
तुमने अँगड़ाई क्यों ली |
अधर पर नयन रखूं कि,
नयन पर अधर,
कभी तो आधे अधर,
कभी आधी आँखें क्यों खोलीं |
Very good combination of words.
जवाब देंहटाएंआपकी कविता बहुत बढ़िया है ...शब्दों को चतुराई से प्रयोग किया है ... लेकिन आप भ्रमित मत होना ...शुक्रिया आपका
जवाब देंहटाएंबधाईयां... मीठी सी...
जवाब देंहटाएंआधे अधर तो कभी धर कर देखो :)
जवाब देंहटाएंसार्थक और बेहद खूबसूरत,प्रभावी,उम्दा रचना है..शुभकामनाएं।
जवाब देंहटाएंwaah ! waah ! waah! ras bhari kavitaa maadak bhi mohak bhi
जवाब देंहटाएंबन्द आँखों में समा लो, जीवन को।
जवाब देंहटाएंबहुत ही सुन्दर शब्द रचना ।
जवाब देंहटाएंशब्दों के साथ सुंदर भाव
जवाब देंहटाएंvery impressive creation !
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