शुक्रवार, 28 जनवरी 2011

"एक सवाल मीठा सा..........."

मै तो सो रहा था,
तुम्हारी ही आँखों में,
तुमने आँखें क्यों खोली |

मै तो बुन रहा था खामोशी,
अपनी नज़रों से,
तुमने जुबान क्यों खोली |

तुम मुस्कुराई थीं,
कुछ आधा सा,
सो देखो सारे फूल,
अधखिले से |

लकीरें खींच रहीं थीं,
तितलियाँ
मन पर तेरे जिस्म की,
तुमने अँगड़ाई क्यों ली |

अधर पर नयन रखूं कि,
नयन पर अधर,
कभी तो आधे अधर,
कभी आधी आँखें क्यों खोलीं |




10 टिप्‍पणियां:

  1. आपकी कविता बहुत बढ़िया है ...शब्दों को चतुराई से प्रयोग किया है ... लेकिन आप भ्रमित मत होना ...शुक्रिया आपका

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  2. सार्थक और बेहद खूबसूरत,प्रभावी,उम्दा रचना है..शुभकामनाएं।

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