रविवार, 2 जनवरी 2011

"चिड़िया"

         प्रकॄति ने चिड़िया को जितना कोमल बनाया है उतना ही उसे सशक्त एवं दार्शनिक भी बनाया है।अपना जीवन चक्र चलाने के लिये उसे कठोरतम श्रम करके घोंसला बनाना पड़ता है,फ़िर उसमें अंडों की सुरक्षा भी एक अत्यन्त दुरूह कार्य (कई बार खुद की जान भी गंवानी पड़ती है) ।जब चूजे छोटे होते हैं तब चिडिया अपनी चोंच से उन्हें खाना खिलाती है।फ़िर धीरे धीरे चूजे फ़ुदकना सीखते हैं।उस समय चिड़िया का अपने चूजों के प्रति स्नेह देखकर लगता है कि वह अपने बच्चों के बगैर नही रह पाएगी।
           पर जिस दिन उसके बच्चे उड़ना सीख लेते हैं, वह चाहती है उसके बच्चे खूब दूर तक उड़ जाएं और वह उनका वापस आने का  इन्तज़ार भी  नही करती।
            ना कोई अपेक्षा, ना कोई चाह, ना कोई लालच।ऐसा ही जीवन दर्शन मनुष्य का भी होना चाहिये।बच्चों को उत्तम शिक्षा,समाज में अच्छा स्थान, बस उसके बाद ना कोई अपेक्षा हो, ना कोई माया मोह। (एक बार उन्हें पंख लगा दें फ़िर उन्हें सारे आसमान को छूने दें) ।

8 टिप्‍पणियां:

  1. सही कहा .......
    आज के माता -पिता को यह बात समझनी चाहिए ...
    बच्चे संस्कारी होंगे तो दूर रह कर भी माता -पिता की देखभाल करेंगे
    न की आपके चाहने से .....
    बिना स्वार्थ का प्यार और स्नेह बच्चों में अपनत्व लाता है ....

    अच्छे लगे आपके सदविचार....

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  2. आपका ब्लॉग बहुत लाजवाब है, और कविता भी, बधाई स्वीकारें !
    आपको भी नव वर्ष 2011 की हार्दिक शुभकामनाएं !
    यह नव वर्ष आपके जीवन में सुख-समृद्धि और सफलता प्रदान करे ।

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  3. पाश्‍चात्‍य में यही स्थिति है, लेकिन यह देख कर आमतौर पर अफसोस ही किया जाता है.

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  4. सोचते तो हम भी वहीं हैं.... मगर चिड़िया जितना बड़ा दिल नहीं रख पाते...शायद.....
    ~सादर!!!

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