कभी इतनी रौनक,
कभी श्मशान सी,
कभी उत्सव सी,
मेरी ज़िन्दगी।
जैसे रास्ते,
कभी भीड़ भरे,कभी निर्जन,
कभी उन पर मेले,
कभी कोई ना अकेले।
जब भी उसपे कोई गुजरा,
उसे वह अपना मान बैठा,
पर वो तो मुसाफ़िर था,
उसे ठहरना कब था।
वैसे ही यह ज़िन्दगी,
जो भी मिला इसे,
उसी को प्यार कर बैठा,
पर वे सब तो थे,
तितली के मानिन्द,
पराग खत्म,
अनुराग खत्म।
भीड़ को तलाश,
नए रास्तों की,
और उन्हें तलाश,
नई ज़िन्दगी की ।
वाह क्या गज़ब है:-
जवाब देंहटाएं"भीड़ को तलाश,
नए रास्तों की,
और उन्हें तलाश,
नई ज़िन्दगी की ।
आपके ब्लाग पर पहली बार आया अच्छा लगा
बहुत ही सुन्दर ।
जवाब देंहटाएंपर वे सब तो थे,
जवाब देंहटाएंतितली के मानिन्द,
पराग खत्म,
अनुराग खत्म....
बेहद उम्दा कविता।
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par jaisee bhi jindagi ... kyon lagti pyari:)
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