गुरुवार, 11 अक्टूबर 2012

" चूहे दानी ......"


आज ऑफिस में एक महत्वपूर्ण फ़ाइल मांगने पर स्टाफ जब फ़ाइल लाया तब मैंने देखा , उसके कुछ पन्ने कुतुरे हुए से थे | मैं थोड़ा चकित हुआ और घबराया भी कि लगता है ऑफिस में चूहे हो गए हैं जो अच्छा खासा नुकसान कर सकते हैं | मेरी व्यथा देख सबने विचार विमर्श के बाद ऑफिस में ' रैट किल ' डालने को कहा | परन्तु मैं चूहों के प्राण लेने में साझीदार नहीं बनना चाह रहा था | अतः मैंने स्टाफ से एक चूहेदानी लाने को कहा | मैंने कहा उसमें चूहा कैद हो जाएगा , फिर उसे दूर कहीं छोड़ देना | इस पर सब लोग सहमत हो गए | और वे एक चूहेदानी बाज़ार से ले आये |

मैं कौतूहलवश चूहेदानी को हाथ में लेकर देख कर रहा था कि इसमें चारा कहाँ लगाते हैं और कैसे चूहे के दाँत लगते ही चूहेदानी अपने आप बंद हो जाती है और एक आवाज़ जोर से होती है जिससे मालूम चल जाता है कि फँसा एक चूहा | सोचते सोचते मैं चूहे की मानसिकता के बारे में सोचने लगा कि जहां कहीं भी चूहे दानी को लगाते हैं वहां चूहे को खाने लिए चूहे दानी के आलावा बहुत कुछ खाने और कुतुरने के लिए होता है , फिर वह चूहा उसमें क्यों जा कर फंस जाता है | जवाब मिला :" लालच " | हाँ ! लालच के ही कारण चूहा उसमें घुसकर अपनी जान की आफत मोल ले लेता है | 

मैंने प्रयोग के तौर पर जो चारा चूहेदानी में लगाया उसी खाद्य पदार्थ को उस चूहे दानी के आस पास और भी अधिक मात्रा में बिखेरने को कहा  | फिर भी अगले दिन चूहे दानी में चूहा फँसा मिला | निष्कर्ष "लालच" | कितना ही पेट भरा हो चूहे का , फिर भी अपनी आदत वश कुछ नया पाने को , नया खाने को , नया कुतुरने को वह लालच वश उस चूहे दानी में घुसता है और कैद हो जाता है और कुछ माउस ट्रैप तो ऐसे होते हैं जिसमें चूहे मर भी जाते हैं | "लालच कितनी बुरी बला है" ,यह कितनी आसानी से सिद्ध हो जाता है , केवल चूहे दानी को देखने से ही |

एक पलांश की लालच और उम्र भर की सज़ा या मौत | मेरा तो मानना है कि प्रत्येक कार्यालय में दीवारों पर गांधी जी के चित्र भले ही न हो परन्तु चूहे दानी का चित्र अवश्य लगाना चाहिए | इसे देखकर लोगों को लालच से अवश्य छुटकारा मिल सकता है | लालच के दुष्परिणाम को समझने के लिए इससे शोर्ट तरीका और कोई नहीं | केजरीवाल को अपनी पार्टी का चुनाव प्रतीक भी 'चूहेदानी' ही रखना चाहिए | बच्चों को भी घर और स्कूलों में चूहेदानी के डेमो से लालच के बारे में समझाया जाना चाहिए |

मनुष्य भी अच्छी खासी ज़िन्दगी जीते जीते अकस्मात एक लालच के चक्कर में ऐसे ही अक्सर फंस जाता है और खुशहाल जीवन से हाथ धो बैठता है | रास्ता तय करते वक्त लोग चढ़ाई पर कभी नहीं गिरते हैं ,जब भी गिरते हैं ढलान पर ही गिरते हैं अर्थात सरल आकर्षण प्रायः चूहेदानी समान ही होते हैं |

यह आकर्षण धन , वैभव , जायदाद या सौन्दर्य कुछ भी हो सकता है |

16 टिप्‍पणियां:

  1. बहुत सटीक बात कही है ...अपना सुझाव केजरीवाल के पास तक पहुंचाइए ...... हम भी इस लालच में कि शायद देश से भ्रष्टाचार खत्म नहीं तो कम तो हो सके .....वोट चूहेदानी पर ही दे आएंगे ... :)

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  2. नजर का फ़रक है। चूहा इसे धोखा कहेगा। कहेगा हमको चैम्बर मे बहाने से बुलवा के फ़ंसा दिया।

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  3. बस.... चूहे अनजाने में फंसते हैं और इन्सान जान जानबूझकर, पूरा हिसाब लगाकर

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  4. चूहे और चूहेदानी दोनों ही समाज के अभिन्न अंग बन गए है . चूहेदानी में फसने के बाद भी चूहा की नैतिकता(?) साथ नहीं छोड़ती और वो एकदिन पाक साफ बाहर होता है .

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  5. मुझे चूहे सख्त नापसंद है इसलिए तस्वीर देखि भी नहीं जा रही :). पर कांसेप्ट गज़ब है आपका ये दुनिया चूहेदानी और हम सब चूहे.
    बढ़िया पोस्ट है.

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  6. हाथ बढ़ाने के पहले एक बार सोचना तो अवश्य हो...

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  7. "लालच कितनी बुरी बला है" ,यह कितनी आसानी से सिद्ध हो जाता है ,..... केवल चूहे दानी को देखने से ही |
    बहुत बढ़िया लेख....

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  8. इस कलयुग में लोगों को लालच का फल मीठा ही मिलता है, एक राजनेता के लालच का सुफल उसके सातों पुश्त भोगते हैं।

    चूहे ही बेचारे रह गए हैं, जो अपनी लालच की सजा पा जाते हैं।

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  9. रोचक ! हमेशा की तरह ! और शिक्षाप्रद भी !
    वैसे... वो special चूहेदानी market में आने के पहले से ही चूहे उसमें फँसने लगे हैं...

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  10. बढ़िया लगी आपकी पोस्ट। रोचक भी और प्रेरक भी।

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  11. सच में यह जगत चूहेदानी में फंसा है भीं भिन्न भिन्न प्रकार की !

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  12. वाह! बहुत सटीक उदाहरण..
    खोजी प्रवृत्ति के लगते हैं आप

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