पर क्यों अब हम,
उन्हें मीठे नहीं लगते |
उन्हें मीठे नहीं लगते |
रिश्तों की इमारत से,
हमने तो कोई पाया नहीं खींचा ,
हमने तो कोई पाया नहीं खींचा ,
हाँ अनुपात ज़रूर एक,
एक का कर लिया था |
एक का कर लिया था |
पर शायद यह इमारत,
उनकी सपनों की इमारत ,
उनकी सपनों की इमारत ,
का एलिवेशन बिगाड़ रही थी ,
सो बड़े प्यार से,
अपने हिस्से के पाए ,
अपने हिस्से के पाए ,
उन्होंने खिसका लिए |
और अब जब,
हमारे रिश्तों की ,
हमारे रिश्तों की ,
इमारत ढही ,
तो वह भी,
उनकी ही तरफ ढही |
उनकी ही तरफ ढही |
मेरे पाए अब भी,
जस के तस हैं ,
जस के तस हैं ,
पर वह कहते हैं ,
यह इमारत तो,
खँडहर हो गई |
खँडहर हो गई |
मैं कहता हूँ ,
ढही इमारत ,
के खंडहर भी ,
ख़ूबसूरत और आकर्षक ,
लगतें है ,
अगर देखने वाला ,
उनमें बची साँसों को ,
महसूस कर पाए |
पर शायद उन्हें तो ,
फितरत है ,
हर रोज ,
नई इमारतों की ,
और ऊब से गए है ,
ढोते ढोते बासी ,
रिश्तो को ।
और ऊब से गए है ,
ढोते ढोते बासी ,
रिश्तो को ।
Excellent creation , revealing the bitter facts.
जवाब देंहटाएंजो स्नेह की नींव को हिलाए , पलड़ा उनकी तरफ का ही तो हल्का होगा ..
जवाब देंहटाएंसुन्दर भावाभिव्यक्ति !
ढही इमारत ,
जवाब देंहटाएंके खंडहर भी ,
ख़ूबसूरत और आकर्षक ,
लगतें है ,
अगर देखने वाला ,
उनमें बची साँसों को ,
महसूस कर पाए |
aakhiri dam tak saanson mein zindagi hoti hai , bas ek sparsh kee zarurat hai!
heart touching visit my blog plz
जवाब देंहटाएंDownload latest music
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बेहतरीन रचना दिल को छू गयी।
जवाब देंहटाएंदिल को छू लेने वाली बेहतरीन रचना| धन्यवाद|
जवाब देंहटाएंजब पुरानें में अपनापन नहीं दिखा तो नये का भरोसा कौन करे।
जवाब देंहटाएंएक नई सोच से लिखी गई रचना।
जवाब देंहटाएंढही इमारत ,
जवाब देंहटाएंके खंडहर भी ,
ख़ूबसूरत और आकर्षक ,
लगतें है ,
अगर देखने वाला ,
उनमें बची साँसों को ,
महसूस कर पाए |
खूब लिख है जी.
मै तो कहता हूँ कि-
अब भी बची हैं साँसे रिश्तों के खंडहर में
मन से तो कोई देखे.रिश्तों के खंडहर में..............
बेहतरीन...
जवाब देंहटाएंपर शायद उन्हें तो ,
जवाब देंहटाएंफितरत है ,
हर रोज ,
नई इमारतों की ,
और ऊब से गए है ,
ढोते ढोते बासी ,
रिश्तो को ।
बहुत सुंदर ...प्रासंगिक विचार हैं आपकी इस रचना में....
ek dam sachhi bat, hakikat
जवाब देंहटाएंपर शायद यह इमारत,
जवाब देंहटाएंउनकी सपनों की इमारत ,
का एलिवेशन बिगाड़ रही थी ,
सो बड़े प्यार से,
अपने हिस्से के पाए ,
उन्होंने खिसका लिए |......
नई उपमाओं की सुन्दर कविता के लिए बधाई...
सच है रिश्तों का बोझ आसान नही होता ढोना ... बहुत बड़ा दिल चाहिए निभाने के लिए ....
जवाब देंहटाएंToo bad that i cannot appreciate his beautiful creation in hindi.My hats are off to you.
जवाब देंहटाएंshandaar....
जवाब देंहटाएंसुन्दर भावाभिव्यक्ति !
जवाब देंहटाएंबेहतरीन प्रस्तुति ।
जवाब देंहटाएंrishton ko aaj ke sandarbh me paribhashti sundar rachna.
जवाब देंहटाएंसही कहा आपने....
जवाब देंहटाएंरिश्तों की इमारत से,
हमने तो कोई पाया नहीं खींचा ,
हाँ अनुपात ज़रूर एक,
एक का कर लिया था |
पर शायद यह इमारत,
उनकी सपनों की इमारत ,
का एलिवेशन बिगाड़ रही थी ,
सो बड़े प्यार से,
अपने हिस्से के पाए ,
उन्होंने खिसका लिए |
हमारे रिश्तों की ,
इमारत ढही ,
तो वह भी,
उनकी ही तरफ ढही |
मेरे पाए अब भी,
जस के तस हैं ,
ज़िन्दगी में कई बार ऐसा ही होता है..
जब तक आप रिश्तों को बनाने या सहेजने में लगे रहें..तभी तक !!
थोड़ी देर के लिए आप अपनी जगह स्थिर हो जाए तो रिश्तों के सारे अनुपात डगमगाने लगते हैं....आज भी लोग पुराने खंडहरों को शौक से देखने जाते हैं...और उनके भीतर वही खूबसूरती और रंगीनी पाते हैं कि थोड़ी देर के लिए बहरी दुनिया से दूर उसी समय में पहुँच जाते हैं....इंसानी रिश्ते भी ऐसे ही हैं.....लेकिन नए रिश्ते बनाने मेंलोग पुराने रिश्तों कि अहमियत भूल जाते हैं.....बहुत सुन्दर लिखा आपने..कुछ सोचने पर मजबूर करती आपकी रचना...सभी की ज़िन्दगी में ऐसे कुछ लोग होते ही हैं...आपने फिर से पुराने खूबसूरत खंडहरों में पहुंचा दिया..जहाँ साँसें तो हैं लेकिन तस्वीरें गायब हैं....बहुत ही सुन्दर रचना....!!
prabhaavshali prateekon ka prayog hai.
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर कविता के लिए बधाई...
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