कभी ऐसा भी हो,
मैं कही गुम जाऊँ,
ढूंढूं खुद को,
पर ढूंढ ना पाऊँ,
हाँ ! खोजो तुम,
तुमको मिल जाऊँ,
पर तुमसे खुद को,
माँग ना पाऊँ,
खुद को छोड़,
तुम्हारे पास,
लौट आऊँ,
फ़िर याद करूँ ,
खुद को अक्सर,
तो याद तेरी भी,
आ जाये,
कभी ऐसा भी हो,
किताब पढूँ मैं जब,
अक्स उभर आये ,
पन्नों पे तेरा,
पन्ने पलटूँ जब,
लब तेरे छूँ जाये,
कभी ऐसा भी हो,
तू नींद में हो ,
और मै,
ख़्वाब में आऊँ !!
कभी ऐसा भी हो,
कुरेदो नाम ज़मीं पे मेरा,
और टिका दो ,
उस पे हथेलियाँ,
उधर वो नाम मिट जाए,
इधर मैं मिट जाऊँ !!!
समर्पण की तमन्ना ..बहुत सुन्दर.
जवाब देंहटाएंभावपूर्ण ..!
जवाब देंहटाएंकभी ऐसा भी हो,
जवाब देंहटाएंमैं कही गुम जाऊँ,
ढूंढूं खुद को,
पर ढूंढ ना पाऊँ,
हाँ ! खोजो तुम,
तुमको मिल जाऊँ,
पर तुमसे खुद को,
माँग ना पाऊँ,
Bahut sunder line..khwabo ki tarah....
कभी ऐसा भी हो,
जवाब देंहटाएंकुरेदो नाम ज़मीं पे मेरा,
और टिका दो ,
उस पे हथेलियाँ,
उधर वो नाम मिट जाए,
इधर मैं मिट जाऊँ !!!
लाजवाब...
लाजवाब प्रस्तुति ....बधाई समय मिले कभी तो आयेगा मेरी पोस्ट पर आपका स्वागत है
जवाब देंहटाएंhttp://mhare-anubhav.blogspot.com/2011/11/blog-post_20.html
कभी ऐसा भी हो,
जवाब देंहटाएंतू नींद में हो ,
और मै,
ख़्वाब में आऊँ !!
कभी ऐसा भी हो,
कुरेदो नाम ज़मीं पे मेरा,
और टिका दो ,
उस पे हथेलियाँ,
उधर वो नाम मिट जाए,
इधर मैं मिट जाऊँ !!!
khoobsoorat ehsaas...!!
बस ऐसे ही, समय कटे इस जीवन का।
जवाब देंहटाएंआह! क्या चाहत है।
जवाब देंहटाएंवाह ....बहुत खूब
जवाब देंहटाएंसुन्दर एहसास!
जवाब देंहटाएंबड़ी हसीन तम्मानायें हैं। सब पूरी हों!
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