वो हंसती थी टुकड़ो में,
बोलती थी टुकड़ो में,
लिखती थी कुछ कुछ टुकड़ो में,
शर्माती थी टुकड़ो टुकड़ो में,
पलकें उठाती थीं टुकड़ो में,
गिराती भी थी टुकड़ों में,
कभी थामा हाथ कभी उंगलियाँ,
वो भी टुकड़ो टुकड़ो में,
करती थी बहुत प्यार,
मगर टुकड़ो में,
रूठी थी कई कई बार,
वो भी टुकड़ो में,
.
.
ये सिलसिला,
मुसलसल न चल सका,
वक्त बाँट गया हमारा प्यार,
टुकड़ो टुकड़ों में,
मैं बेखबर करता रहा इंतज़ार,
टुकड़ो में,
और यादें उनकी बस बिखर ही गई,
टुकड़ो में !!!
बहुत ही प्रभावशाली प्रस्तुति
जवाब देंहटाएंऔर यादें उनकी बस बिखर ही गई,
जवाब देंहटाएंटुकड़ो में !!!
waaah jawab nahi...
टुकड़ों को खूबसूरती से लिखा है आपने.अच्छी लगी.
जवाब देंहटाएंबिखरे टुकडे भी जीवन के स्पंदन को जारी रखते हैं -मर्म भेदी प्रस्तुति!
जवाब देंहटाएंबहुत ही सुन्दर, एक अस्तित्व बन कर जिया जाये।
जवाब देंहटाएंउफ़ …………ये प्यार भी जो ना कराये कम है।
जवाब देंहटाएंऔर शायद अब जिंदगी भी गुजर जाएगी टुकड़ो में अपनी................|
जवाब देंहटाएंफुर्सत में कभी इस ब्लॉग पर भी तशरीफ़ ले आइयेगा..
पता है...
http://teraintajar.blogspot.com/
सुन्दर ...अति सुन्दर.
जवाब देंहटाएंटुकड़ों को सुन्दर संजोया है आपने ...
जवाब देंहटाएं.
जवाब देंहटाएंये सिलसिला,
मुसलसल न चल सका,
वक्त बाँट गया हमारा प्यार,
टुकड़ो टुकड़ों में,...
very touching lines...
hope all is well ..
.
बहुत ही खूबसूरत,टुकड़ों में
जवाब देंहटाएंeverything - easy installments
जवाब देंहटाएंऔर हमारा दिल भी टुकड़े-टुकड़े हो गया....!!
जवाब देंहटाएंसुन्दर भाव संजोये हैं आपने.....!!!
जवाब देंहटाएंnice.....
जवाब देंहटाएंटुकड़ा टुकड़ा दास्तान ....सुंदर रचना
जवाब देंहटाएंटुकड़ों वाली कहानी पास कर दी निवेदिताजी ने! बधाई!
जवाब देंहटाएंकल 14/02/2012 को आपकी यह पोस्ट नयी पुरानी हलचल पर लिंक की जा रही हैं.आपके सुझावों का स्वागत है .
जवाब देंहटाएंधन्यवाद!
वाकई, बहुत सुन्दर भावपूर्ण रचना!
जवाब देंहटाएंकदाचित इस निर्मम संसार में प्यार की यही परिणति होती है ! बस यही कामना है आप उन्हें याद करें तो मुकम्मल तौर पर टुकड़ों टुकड़ों में नहीं ! बहुत ही मर्मस्पर्शी रचना ! शुभकामनायें !
जवाब देंहटाएंबहुत ही बेहतरीन और भावपूर्ण रचना है....
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