गर,
सुकूँ माँ है तो,
गोद माँ की,
पुरसुकून है |
कभी एक मुठ्ठी,
छाँव है,
कभी एक मुठ्ठी,
धूप है |
विस्तार कभी,
आसमाँ का,
गोद कभी,
धरती माँ सी |
कभी लगाती,
पंख समय के,
कभी पंखों का,
कवच बनाती |
कभी मिटाती थकान,
समय की,
कभी समय को,
मात दिलाती |
हाँ !!
गोद माँ की पुरसुकून है |
.
.
.
काश !
नींद लम्बी हो,
जब कभी ? ?
सिर मेरा हो,
गोद माँ की हो |
सारी चिन्ता हर लेती है माँ की गोद।
जवाब देंहटाएंभावविभोर करने वाली रचना ,आभार.
जवाब देंहटाएंबहुत खूब सर!
जवाब देंहटाएंसादर
bahut umda rachna , aabhar
जवाब देंहटाएंbahut sundar bhaav sanjoye hain.
जवाब देंहटाएंहाँ !!
जवाब देंहटाएंगोद माँ की पुरसुकून है...
सबको हो नसीब गोद माँ की...
जवाब देंहटाएंक्या बात है।
जवाब देंहटाएंगोद माँ की....
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